शुक्रवारीय अंक में आपसभी का
स्नेहिल अभिवादन।
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हर मौसम का अपना बसंत होता है,
गर्मियों के स्वागत में नीम,पीपल,बरगद,गुलमोहर और
अनगिनत विशाल छायादार वृक्ष नये पत्रों से
सुसज्जित हो गये हैं लू और प्रचंड ताप से पत्तियों के चंवर डुलाकर तन-मन को सुकून देने के लिए,
ठंडे तासीर वाले,रसीले, फल और स्वास्थ्य के लिए अनुकूल हल्के मसालों में पकायी जाने वाली सब्जियां तैयार हैं।
गर्मी में जब नन्हें तृण भी झुलस जाते हैं बेला,चम्पा,मधुमालती, गंधराज,शिरीष,गुुलमोहर,अमलतास जैसे पुष्पों की शोभा और सुगंध वातावरण में
अनूठी मादकता बिखेर रही है।
हर मौसम की तरह
प्रकृति ने तो गर्मियों से जूझने के लिए स्वंय को तैयार कर लिया है और हम मनुष्यों ने क्या किया है?
वातावरण को असंतुलित करने में कोई कसर छोड़ी है?
क्या प्रकृति प्रदत्त उपहारों का उपभोग करना ही हमारा कर्तव्य है क्या प्रकृति के प्रति सचमुच हमारा कोई दायित्व नहीं?
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आज के अंक में ली गयी
रचनाओं के संबंध में लिखी मेरी विवेचना मेरे समझ के अनुरूप है अगर भाव समझने में मुझसे त्रुटि हो गयी हो तो
क्षमा चाहूँगी।
आपके सुझाव सादर आमंत्रित है।
आइये आज की रचनाओं का आनंद लेते है-
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सोचिये न अगर रंग न होता तो
दुनिया कैसी लगती?
हर रंग की अपनी कहानी ,हर रंग की अपनी पहेली,
मन का मौसम रंगों की विवेचना चाहे जैसे भी करे
पर शायद रंगों की भाषा इतनी सरल होती है कि
संवाद सहज हो जाता है
जीवन दर्शन के सुंदर रंग
चटख रंगों का समाज
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अपना महत्व,अपनी क्षमता पर विश्वास करता, हमारा अंतःमन अपनी खूबियों और कमज़ोरियों को भली भाँति जानता है, दूसरों के दृष्टि में स्वयं का निरादर न हो,अनुशासन में रहकर अपनी सीमाओं के प्रति सजग आत्मसम्मान से जीना स्वाभिमान है और दूसरों को स्वयं से कमतर देखने में सुखी होना,स्वयं को श्रेष्ठ मानकर दूसरों को हेय समझना अभिमान है
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कल-कल छल-छल अल्हड़ सी
बहती नदी मात्र जलधारा नहीं होती
उसके अंतस में छुपे भाव
को समझने के लिए उसके साथ बहकर देखिए-
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सर्वस्व समर्पण के अलौकिक भावों में उलाहना भी मीठा लगता है, अपनत्व से गूँथी गयी
सरस,कोमल और स्नेहिल अभिव्यक्ति
ः
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शपथ लेते, वर्दी देह पर धरते ही
साधारण से असाधारण हो जातेबेटा,भाई,दोस्त या
पति से पहले,माटी के रंग में रंगकर
रक्त संबंध,रिश्ते सारे
एक ही नाम से पहचाने जाते।
एक सैनिक का कर्तव्य बोध मन को उद्वेलित,भावविह्वल
करता है-
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आज के लिए इतना ही-
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कल का विशेष अंक लेकर आ रही हैं
विभा दी।
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#श्वेता
शानदार अंक..
जवाब देंहटाएंसाधना दीदी की रचना
आँखें गीली कर गई
सादर नमन
मेरी लघुकथा ने आपके मन को छुआ हृदय से आभारी हूँ आपकी यशोदा जी ! जब रचना को आप जैसी संवेदनशील रचनाकार की सराहना मिल जाती है तो लगता है श्रम सार्थक हो गया ! दिल से धन्यवाद सखी !
हटाएंआपको शुभकामनाएं श्वेता जी...। बहुत जरूरी विषयों वाला अंक। सभी रचनाकारों को बधाई...।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात !
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता जी, नमस्कार ! सुंदर सारगर्भित विषयों का चयन आज के अंक की शोभा बढ़ा रहा है,आपको कोटि कोटि बधाई,मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार ।सादर ।
बहुत बहुत सुन्दर संकलन | सभी रचना कारों को बधाई व् शुभ कामनाएं |
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा के प्रारम्भ में एक गंभीर मुद्दे की ओर ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किया गया है । प्रकृति मनुष्य को क्या नहीं देती ... लेकिन स्वार्थी मनुष्य प्रकृति के दिये उपहारों का बेदर्दी से उपयोग कर खत्म करने पर लगा है । संरक्षण की ओर उसका ध्यान ही नहीं जाता ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया श्वेता इस गंभीर विषय को उठाने के लिए ।
सभी लिंक्स शानदार हैं । रंगों के महत्व को गहनता से कहा गया है तो नदी जैसी स्वयं को महसूस करना भी सुकून देता है । आलोचना और प्रशंसा दोनो को गंभीरता से लेना चाहिए । कभी कभी किसी स्तुति की जाए वो भी पसंद नहीं आती । मन की आवाज़ से मन में सैनिकों के प्रति सम्मान की भावना जागृत होती है ।
सभी रचनाएँ सार्थक । सभी रचनाकारों को शुभकामनाएँ ।
सुंदर चर्चा के लिए शुक्रिया ।
शानदार रचना प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहृदय से बहुत बहुत आभारी हूँ श्वेता जी मेरी लघुकथा को आपने आज के संकलन के लिए चुना ! अन्य सभी लिंक्स भी बहुत ही सुन्दर ! सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ! सप्रेम वन्दे सखी !
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