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मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

1614.. हमेशा की तरह एक ही ब्लॉग से, गीत मेरी अनुभूतियाँ

सादर नमस्कार..

गीत 
मेरी अनुभूतियाँ
नाम अनजाना नहीं है
और ब्लॉग बंद भी नही है
पर धीमा ज़रूर है
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संगीता स्वरूप दीदी
कम ही लिखती है
ज्यादातर पढ़ती हैं
और समीक्षाएँ भी लिखती है

यहाँ पढ़िए मेरी पसंदीदा रचनाएँ..

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मोह  से  ही तो 
उपजता  है  निर्मोह 
मोह  की अधिकता 
लाती है जीवन में क्लिष्टता 
और  सोच  हो जाती  है कुंद
मोह के दरवाज़े होने लगते हैं  बंद ।

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ज़िंदगी की नाव ,मैंने 
छोड़ दी है इस 
संसार रूपी दरिया में ,
बह रही है हौले हौले ,
वक़्त के हाथों है 
उसकी पतवार ,
आगे और आगे 
बढ़ते हुये यह नाव 
छोड़ती जाती है 
पानी पर भी निशान ,

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चक्रव्यूह -
लहर का हो या हो मन का
धीरे - धीरे भेद लिया जाता है
और चक्रव्यूह भेदते ही
धीरे -धीरे हो जाता है शांत
मन भी और समुद्र भी .

सपने हों गर आँखों में तो आंसू भी होते हैं 
अपने ही हैं जो दिल में ज़ख्मों को बोते  हैं |

मन के आँगन में बच्चों  का बचपन हँसता है 
सूने नयनों से लेकिन बस पानी रिसता  है |

न्याय ....???Bodies of two girls found hanging together

आज भी किसी पेड़ पर 
टंगा है एक शव 
भीड़ भी जुटी है भव्य 
हो रही है आपस में बत कुचनी 
किसकी होगी भला ये करनी 
दांत के बीच उंगली दबाये 
दृश्य देख रहे थे लोग चकराए 
....
अब बारी है विषय की
100 सप्ताह पूरे हो रहा हैं
इस विशेषांक के..
100वाँ विषय आज के ही अंक से
न्याय
हम समझते हैं उदाहरण की आवश्यकता नहीं
आप अपने विवेक से रचनाएँ लिखिए
प्रेषण तिथिः 21 दिसम्बर 2019
शाम 3.00 बजेतक मेल द्वारा

प्रकाशन तिथिः 23 दिसम्बर 2019
सादर..

5 टिप्‍पणियां:

  1. हमेशा की तरह शानदार..
    सादर नमन दीदी को..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सादर नमन आदरणीया को
    हाइकु जानने में इनका ब्लॉग सहायक रहा
    अन्य लेखन भी बेहद पसंद आने वाला

    सराहनीय संकलन

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!!खूबसूरत अंक!चयनित सभी रचनाएँ एक से बढकर एक ...।

    जवाब देंहटाएं

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