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शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

1610.....जबकि पत्थर पिघल रहे हैं

शुक्रवारीय अंक में आपसभी का
स्नेहिल अभिवादन।
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राजनीति,धर्म और मीडिया की तरह असभ्य होता साहित्यिक परिवेश साहित्य के नाम पर क्या धरोहर संजो रहा और समाज एवं नवांकुरों के लिए आक्रमक एवं हिंसात्मक संदेश प्रसारित कर कैसी भूमिका निभा रहा विचारणीय है।
  साहित्यकार ख़बरनवीसों की तरह खेमों में बँटे आक्रोश और जोश में भरकर भाषा और सम्मान की मर्यादा भूलकर
 स्वयं के विचार एवं दृष्टिकोण सत्य साबित करने की होड़  में साहित्य धर्मिता से ज्यादा राजनीतिक विशेषज्ञ की तरह व्यवहार करने लगे है। बच्चों और युवा पाठकों को आधुनिक साहित्य का ऐसा रुप क्या संदेश देगा पता नहीं।


आइये आज के अंक की रचनाएँ पढ़ते हैं-


द्वेष अब दिलों में ही नहीं 
शब्दों में भी लगा था पनपने 
जातिवाद का खरपतवार 
बन्धुत्त्व की फ़सल के 
 काटने लगा था पात-पात 

★★★★★




...छूट गया है हाथ, हाथ से,


कदमताल भी नहीं रही है।
मौन हो गए, चुप्पी साधी,
बोलचाल भी नहीं रही है।
अब तो मुझे देखकर के भी,
अपने रुख को बदल रहे हैं।
वो इतने बेदर्द हो गए,
जबकि पत्थर पिघल रहे हैं।.

★★★★★




रिश्तों पर, विश्वास पर, प्रेम पर,
अपनेपन पर, आस्था पर, सपनों पर नहीं!

यकीन मानिए जो अपने हैं 
वो रोकने पर रुक जाते हैं!

छोड़कर वही जाते हैं
जिनके अपने होने में कोई स्वार्थ निहित हो!

★★★★★


चाँद के उस दीदार को
दिल ए सकून की तलाश में
खो गया तेरी गलियों की राहों में

तेरी बिदाई को मेरी रुसवाई को

छलकते दर्द की परछाई को
छिपा अरमानों की बेकरारी को
जोगी बन आया मैं दिल की तन्हाई को
हाथ छूटा मंजर टूटा

★★★★★


पलक झपकते संख्या कैसे बदल जाती है,पता ही नहीं लगता. बड़ा विस्मय होता है मुझे.


फिर मैंने निश्चय कर लिया आज देख कर ही रहूँगी.


उत्सुकता यह है कि  तत्क्षण बदलाव कैसे हो जाता है- अंक का भाग इधर से उधऱ खिसकता है या  दूसरा अंक एकदम  प्रकट होता है.



★★★★


अगर आप पटना में पासपोर्ट बनवाने कभी गए हैं तो इन परेशानियों से अवश्य रूबरू होना पड़ा होगा या भविष्य में पड़ सकता है। इसकी सभी परेशानीयाँ लगती तो केवल इसकी अपनी हैं, पर हैं सार्वभौमिक।
मसलन -  यहाँ मुख्य गेट के अन्दर तो आप अपने वाहन ले ही नहीं जा सकते हैं और बाहर सड़क पर कहीं पार्किंग की सुविधा है ही नहीं। जैसा कि अमूमन कई शहरों में या असुविधा आम है। नतीज़न - बस फुटपाथ पर किनारे आप अपनी वाहन चाहे वह दुपहिया हो या चारपहिये वाली - खड़ी कर सकते हैं। विशेषतौर से यहाँ कार्यालय के भवन के सामने की सड़क पूरी तरह खस्ताहाल में है, जहाँ बेमौसम भी जलजमाव आम दृश्य है।

★★★

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हमक़दम का विषय है
अलाव

कल का अंक पढना न भूले कल आ रहींं हैं विभा दी एक विशेष प्रस्तुति के साथ।

#श्वेता सिन्हा




9 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति..
    सादर..
    शुभ प्रभात..

    जवाब देंहटाएं
  2. आज की जो स्थिति है उसमें नई पीढ़ी को सुसंस्कार देने की चिन्ता किसे है ,घरों का कल्चर भी टीवी कलचर होता जा रहा है ,बच्चों को भी स्मार्ट बनाना है न ‍!
    कड़ियों का चुनाव रुचिकर और उफयोगी रहा है -बधाई आपको !

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!श्वेता ,सुंदर व सटीक भूमिका के साथ शानदार अंक ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर और सराहनीय प्रस्तुति प्रिय श्वेता दी.
    मेरी रचना को स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार आपका
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. अति उत्तम प्रस्तुति प्रिय श्वेता

    जवाब देंहटाएं

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