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शनिवार, 27 अक्तूबर 2018

1198... परीक्षा-परिणाम


सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
जिन्दगी का हर एक पल है
हमारी नज़र में तुम वह गम हो
बीस ओवरीय प्रतियोगिता में
देश क्या जीता
बाजार के साथ तुम्हारे हाथ लग गया
जैसे जनता को बहलाने वाला एक पपीता


परीक्षा-परिणाम

वैसे इस एक दिन वह जिस बनावटी खुशी और
जिसका श्रेय खुद लेने की खुशफहमी पालते हैं,
वह उनकी है ही नहीं। यह सब वह मकड़जाल है
 जिसमें पूरे तंत्र को उलझाकर एक हौवा बनाया हुआ है।
एक ऐसी कुव्यवस्था का इंतजाम है कि
 बढ़ते बच्चे अधिकाधिक सवाल न करें।


जब डाक आती थी

 दूर गए पति का पत्नी के लिए पत्र मे पैसा
बच्चों के परीक्षा का परिणाम
रिजल्ट पाने के लिए उसके इर्दगिर्द घूमना
डाकिया को मिठाई खिलाना
वह भी घर के सदस्य जैसा

जिंदगी सिर्फ कविता नहीं

काली सूची में डालता
पलकों को गीला करने वाले
कुटिल वाक्यों को
मैं छांट कर
उन शब्दों को
हरी दूब पर
बिखरा देता
जिन शब्दों में
बसते हैं प्यार - दुलार


कविता
रूपक से इस अर्थ में भिन्न होता है कि प्रतीक का अस्तित्व वास्तविक होता है, जबकि रूपक का चिह्न स्वेच्छाचारी बिचौलिए का होता है। यह संकेत से भी भिन्न होता है। संकेत तो जिस के बारे में कहा जा रहा है और जो कहा जा रहा है, उसमें एकता स्थापित करने को होता है। लेकिन प्रतीक में एक के भावमय से दूसरे बात की जाती है। अब शब्द स्वयं ही प्रतीक हैं, तो भी कविता में शब्द एक बिम्ब और अवधारणा को स्युक्त कर बनता है। ये व्यक्तिगत भी हो सकते हैं और सार्वजनिक भी। उनकी एक व्याख्या भी हो सकती है और अमूर्त भी। ये संरचनात्मक भी हो सकते हैं।सर्जनात्मक भी।

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फिर मिलेंगे...
हम-क़दम का बयालिसवाँ अंक का विषय..
आदरणीय मुनव्वर जी राणा का एक अश़आर
.....
उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं
क़द में छोटे हों मगर लोग बड़े रहते हैं
......
आप सभी को को इस श़ेर को दृष्टिगत रखकर
कविताएँ लिखनी है....
रचना भेजने की अंतिम तिथिः आज शनिवार 27 अक्टूबर 2018
प्रकाशन तिथिः 29 अक्टूबर
रचनाएं ब्लॉग सम्पर्क प्रारूप में ही आनी चाहिए





8 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय दीदी
    सादर नमन...
    सदा की तरह बेहतरीन प्रस्तुति
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात दी:)
    हमेशा की भाँति शानदार रचनाओं सजा जानदार अंक।
    सभी रचनाएँ बहुत अच्छी हैं।

    जवाब देंहटाएं

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