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गुरुवार, 23 नवंबर 2017

860....सिसक-सिसककर आठ पहर अपने ही आँसू पीती है...

सादर अभिवादन। 
        सत्रह साल के लम्बे अंतराल के बाद भारत में एक बार फिर हरियाणा की एक 
बेटी मानुषी छिल्लर ने डॉक्टरी की पढ़ाई करते हुए  विश्व सुंदरी 
( मिस वर्ल्ड -2017 ) का ख़िताब जीतकर दुनिया को दिखाया कि 
"ब्यूटी विद ब्रेन " के उलट "ब्रेन विद ब्यूटी " भी होता है। 
इस प्रतियोगिता के पीछे छिपी व्यावसायिक सोच को भी हमें समझना चाहिए। सौंदर्य प्रसाधनों का अंधाधुंध प्रयोग और सुंदरता के प्रति सजगता लाने के उद्देश्यों से होने वाले ऐसे आयोजन यह तय नहीं करते कि इस समय विश्व में सर्वाधिक सौन्दर्यमयी सुंदरी कौन है बल्कि यह तो इस पर निर्भर है कि जिन प्रतियोगियों ने इस अंधी दौड़ में भाग लिया उनमें आयोजकों के मानदंड पर खरा उतरने वाली प्रतियोगी 
ताज की हक़दार बनती है। 
बहरहाल मानुषी छिल्लर को बधाई एवं शुभकामनाऐं। 

चलिए अब आपको ले चलते हैं आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर -  


आजकल अख़बारों का चरित्र पूँजी ने ख़रीद लिया है।  हर अख़बार के नाम के नीचे छोटे अक्षरों में लिखा होता है निर्भीक ,निष्पक्ष ,निडर  लेकिन अपने काले कारनामों के कारण सरकार के पक्ष में खड़े हो जाते हैं और इस पर प्रकाश डालती है आदरणीय लोकेश नशीने जी की 
यह विचारणीय रचना -

रफ़्तार……लोकेश नशीने 


दूसरे दिन सुबह

शहर के प्रमुख अखबारों की हेडलाइन...

प्रशासन की लापरवाही और अदूरदर्शिता ने मासूमों की जिंदगी छीनी

सड़क निर्माण में नहीं हुआ सही मापदंडों का पालन,
सरकार ने किया सभी मृतक लड़कों के परिजनों को एक-एक करोड़ के मुआवजे का ऐलान...


ब्लॉग "उन्मुक्त" पर आदरणीय उन्मुक्त  एस जी की  
रोचक पुस्तक चर्चा पढ़िए-   

इस किताब का क्या नाम है........उन्मुक्त एस

'All that glitters is not gold; 

Often have you heard that told.

सब चमकने वाला सोना नहीं होता; यह बात अक्सर हमने सुनी है।

यहीं से बनी है कहावत 'All that glitters is not gold'. दूसरा जुमला 'love is blind' भी इसी नाटक से लोकप्रिय हुआ है। 



देवहंस पर सटीक जानकारी और आकर्षक चित्रों के साथ अपनी ताज़ातरीन कड़ी में हाज़िर हैं 
आदरणीय राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही" जी - 
फोटोग्राफी : पक्षी 36 (Photography: Bird 36)

राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"


 देश में इस समय शिक्षा -पद्धति पर बहस गर्म है।  
इस बिषय पर "रचनाकार" में  प्रकाशित 
आदरणीय राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" जी का सारगर्भित आलेख -
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आज की शिक्षा  तो रोजगारपरक है और  ही संस्कारवान बनाने में 
सक्षम। बच्चों को इतिहास की घटनाएं नहीं पढ़ाई जा रही है।  तो वह सुभाषचन्द्र बोस,भगत सिंह  चंद्रशेखर आज़ाद के बारे में 
जानते है  कभी पढ़ा है गांव के सरकारी स्कूलों के बच्चे 
गाँधीजी के अलावा किसी नेता के बारे में नहीं जानते। हमारे देश के क्रांतिकारियों के चित्र उन्होंने देखे नहीं। कैसी है हमारी शिक्षा व्यवस्था। जिन्होंने आज़ादी के लिए अपने प्राण दे दिए। जो अमर शहीद हैं। क्या आज पाठ्यक्रम में उनके पाठ हैंदेखने की आवश्यकता है  आज देश के हर विद्यालयों में क्रान्तिकातियों,महापुरुषोंसामाजिक सुधारकों,सच्चे देशसेवकों के चित्र लगाकर उनके संक्षिप्त परिचय को 
विद्यालयों में लगाने हेतु पाबंद करना चाहिए।

अपनी रोमांचक,साहसी ,रोचक ,ज्ञानवर्धक यात्राओं / फोटो ब्लॉग आदि के लिए विख्यात हुए आदरणीय नीरज मुसाफ़िर अपनी रोमांचकारी  पुस्तक की चर्चा कर रहे हैं - 
वैसे तो इसमें एक दिन के हिसाब से एक चैप्टर बनाया गया हैलेकिन कुल मिलाकर इसे 
तीन भागों में बाँट सकते हैं। नंबर एक - दिल्ली से काठमांडू और उससे भी आगे 
फाफलू और ताकशिंदो-ला तक मोटरसाइकिल से यात्रा। 
नंबर दो - ताकशिंदोला से नामचे बाज़ार होते हुए गोक्यो झीलों की यात्रा 
और नंबर तीन - गोक्यो झीलों से चोला दर्रा पार करके एवरेस्ट बेसकैंप की यात्रा 
और वापस भारत लौटने की यात्रा। यात्रा करने का यह वो मार्ग है 
जो ट्रैकर्स में बिल्कुल भी लोकप्रिय नहीं है। इस मार्ग के यात्रा-वर्णन इंटरनेट 
पर भी बहुत कम मिलते हैं। ज्यादातर ट्रैकर्स काठमांडू से लुकला तक फ्लाइट से जाते हैं और 
उसके बाद अपनी यात्रा आरंभ करते हैं। कुछ ट्रैकर्स काठमांडू से जीरी तक बस से जाते हैं 
और फिर अपनी पैदल यात्रा आरंभ करते हैं फाफलू वाला मार्ग थोड़ा अलग है 
और बहुत कम ट्रैकर्स इस मार्ग का प्रयोग करते हैं। 


आप पढ़ते हैं कविता और कहानी अलग-अलग लेकिन अपने सृजन को प्रयोगधर्मी रंग-रूप में ढालती जा रहीं आदरणीया श्वेता सिन्हा जी की एक अत्यंत मर्मस्पर्शी  रचना कथा काव्य के रूप में पेश-ए-नज़र है - 

एक लड़की.......कथा काव्य….

श्वेता सिन्हा 

जीवन जीने की कोशिश में पल-पल ख़ुद ही से लड़ती है,
हर धड़कन में गुनती है पागलहर एहसास को पीती है,
नीम अंधेरे तारों की छाँव में आज भी बैठी मिलती है,
साँझ की डूबती किरण-सी वो बहुत उदास-सी रहती है,
 हंसती  मुस्काती है बस उसका रस्ता वो तकती है,
वो पागल आज भी उन यादों को सीने से लगाये जीती है।
सिसक-सिसककर आठ पहर अपने ही आँसू पीती है। 

ज़िन्दगी के विभिन्न ख़ूबसूरत रंग बिखेरती आदरणीया तरुणा मिश्रा जी की ब्लॉग "मेरी धरोहर" पर आदरणीया यशोदा अग्रवाल जी द्वारा प्रस्तुत  एक ग़ज़ल मुलाहिज़ा कीजिये-
तुम हो मेरे , हाँ मेरे हो...
एक नहीं सौ बार लिखूँगी ;

तुम ही नहीं तो मैं काजल को...
इन पलकों पर भार लिखूँगी ;

तुम बिन जो बीतेगा 'तरुणा'...
उस पल को आज़ार लिखूँगी..!!

आज के लिए बस इतना ही। 
आपके सारगर्भित सुझावों और स्नेहमयी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में। 
फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 




14 टिप्‍पणियां:

  1. शुभप्रभात रवींद्र जी,
    आज के अंक की सारगर्भित और सार्थक भूमिका
    विचारणीय है।
    पठनीय सुंदर एवं ज्ञानवर्द्धक लिंकों का संयोजन किया है आपने। सभी रचनाएँ विशेष है। सराहनीय प्रस्तुतिकरण, आज के अंक के इस रंग बिरंगे गुलदस्ते में मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार का। सभी साथी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  2. उषा स्वस्ति रवीन्द्र जी..
    अच्छी भूमिका 'ब्रेन विद ब्यूटी' बहुत खूब रंगों का समायोजन के साथ प्रस्तुति साथ ही सभी चयनित रचनाओं
    को बधाई।
    आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत उम्दा और रचनात्मक अंक। बढिया भूमिका। सभी रचनाकारों को बधाइयाँ

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात रवीन्द्र जी,
    बेहतरीन..पठनीय संकलन..। सारी रचनाएं अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है..!सभी रचनाकारो को बधाई एंव शुभकामनायें..साथ ही आपकी संवादक भुमिका सराहनीय है...।

    जवाब देंहटाएं
  5. रचनात्मक अंक सभी रचनाकारों को बधाइयाँ

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही उम्दा संकलन
    बेहतरीन रचनायें
    मेरी रचना को स्थान देने की हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण एवं उम्दा लिंक संकलन....

    जवाब देंहटाएं
  8. संक्षिप्त और सार्थक पृष्ठभूमि के साथ उत्तम लिंकों का समायोजन रवींद्र जी।

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  9. आदरणीय रविन्द्र जी ------ आज के अंक में सराहनीय लिंक संयोजन के साथ-साथ विचारणीय भूमिका चिंतन का विषय है | आजके लिंक का शीर्षक प्रिय श्वेता जी की रचना से है तो उसके उल्ट विश्व सौन्दर्य -जगत में भारत की बेटी के विजय पताका फहराने का उत्साहवर्धक समाचार है | | दोनों ही विरोधाभासी बातें हैं| हर विजय के उत्सव के कोलाहल में सिर्फ विजेता का चेहरा प्रमुख होता हैं | एक विजय से लाखों लोग उसी सपने की पुनरावृति करने के लिए सपनों में डूब जाते हैं और बाजार उन्ही सपनों की पूर्ति के लिए दावा करते हुए अपनी दूकान सजा लेता है | लोगों के सपने पूरे हों या न हो उनके नाम पर बाजार की दूकान चल निकलती है | इसके साथ - साथ प्रारब्ध भी कोई चीज है | हजारों लड़कियां मनों पसीना बहा कर भी मन मसोस कर रह जाती हैं और विजेता बनती है केवल एक --जिसके सर विजय श्री का ताज सजता है | देश का नाम एक बेटी के कारण चमकता तो जरुर है --इसलिए भारत की इस बेटी की जीवटता और हौंसले को एक सलाम तो बनता है | तो वहीँ जो निराशा के अँधेरे में लाखों बेटियां डूबी है और सिसक सिसक कर आठों पहर अपने आंसू पीने को मजबूर हैं -- उन्हें भी रौशनी का हक है | आज के लिंक की सभी रचनाएँ पढ़ चुकी हूँ | कहने की बात नहीं सभी बेहतरीन हैं | सभी रचनाकार साथियों को बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं | अंत में आपको आज के सफल आयोजन की बहुत बधाई | सादर -------

    जवाब देंहटाएं
  10. सुंदर संकलन । सभी रचनाकारों को हृदयपूर्वक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  11. विचारोत्तेजक भूमिका के साथ बेहतरीन प्रस्तुति. सौंदर्य को बाजार का प्रशस्ति पत्र मिल जाता है तो वो ताज का हकदार बनता है. जिसे बाज़ार न पहचाने उस सौंदर्य का क्या ??? विचार जरूर करना चाहिये.
    सुंदर प्रस्तुति

    सादर

    जवाब देंहटाएं

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