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बुधवार, 6 सितंबर 2017

782..ऊँगलियों को भींचकर आए थे हम जमीं पर,

६ सितंबर २ ० १ ७ 

ऊँ रवये नमः
मांगल्यं सुप्रभात

लफ़्ज़ ओ मंज़र में मआनी को टटोला न करो
होश वाले हो तो हर बात को समझा न करो

-महमूद अयाज़ 


विचारों को समेटते हुए 
झुक कर उठा लिया है मैंने..
कुछ विचार विमर्श है, कुछ कथाएँ
तनिक व्यंग्य पर बहुत सारी संवेदनाएँ..

चलिए मुख़ातिब होते हैं
 आज के रचनाकारों से जिनके नामों को क्रमानुसार पढें..

नीतू सिंघल जी, रवीन्द्र सिंह यादव जी,   नवीन मणि त्रिपाठी जी, सुशील कुमार जोशी जी,
 ऋता शेखर 'मधु'जी,
पुरूषोत्तम कुमार सिन्हा जी और दिगम्बर नासवा जी

सुखसाधन कर सम्पदा निसदिन बिनसत जाए || || 

शब्द -प्रहार से कभी चेतना भी रोती है।

शब्द दोस्ती-दुश्मनी याद  कराते हैं,
शब्द  ब्रह्माण्ड में  संवाद रचाते हैं।

वस्ल  के एहसास  पर   नज़रें   चुराना  फिर  कहाँ ।।

कुछ ग़ज़ल में थी कशिश कुछ आपकी आवाज थी ।
पूछता  ही   रह   गया  अगला  तराना  फिर  कहाँ ।।




सीढ़ियों का
जूतों को
अपनाना


अमृता और सरस पूजा की तैयारी में व्यस्त थे|

अचानक सरस को इमर्जेंसी कॉल आ गया | कोई ऊँची इमारत से गिर

 गया था और तुरंत इलाज की जरूरत थी
''यार अमृता, जल्दी निकलना पड़ेगा




ऊँगलियों को भींचकर आए थे हम जमीं पर,
बंद थी हथेलियों में कई चाहतें मगर!
घुटन भरे इस माहौल में ऊँगलियां खुलती गईं,
मरती गईं चाहतें, कुंठाएं जन्म लेती रहीं!




अभी निकला है दहशत से शहर सुनसान तो होगा

घुसे आये मेरे घर में चलो तस्लीम है लेकिन 
तलाशी की इजाज़त का कोई फरमान तो होगा


आज बस यहीं तक..

इति शम
धन्यवाद
पम्मी सिंह






18 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात पम्मी बहन
    बहुत ही उत्तम रचनाओं का चयन
    नव प्रयोग मन को आकर्षित करता है
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. कोमल धूप पर क़दमताल करती भीनी हलचल ...
    आभार मेरी रचना को जगह देने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  3. ऊषा स्वस्ति !
    सुन्दर रचनाओं से सजा आज का अंक मनोहारी है।
    वैचारिक विविधता के दर्शन कराता पठनीय अंक।
    बधाई पम्मी जी।
    सभी रचनाकारों को इस अंक में उनकी रचना के चयन पर बधाई एवं शुभकामनाऐं।
    मेरी रचना "छम्मकछल्लो" को विमर्श के लिए स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  4. वस्ल के एहसास पर नज़रें चुराना फिर कहाँ?
    .... आनन्दमयी प्रस्तुति।
    आज की प्रस्तुति में मेरी रचित पंक्तियों को शीर्षक के रूप में देखकर मन प्रसन्न् हो गया। आप सबों के आशीष का आकांक्षी।।।।। शुभप्रभात

    जवाब देंहटाएं
  5. गौरी लंकेश को विनम्र श्र्द्धांजलि
    अति सुंदर प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. गौरी लंकेश अब नहीं रहीं!
      दक्षिणपंथ और संकीर्णता का विरोध करता उनका लेखन कल उनकी निर्मम हत्या का कारण बना।
      कल वे गोलियों से छलनी कर दी गयीं ......!!!
      व्यक्ति मर सकता है लेकिन उसका कृतित्व नहीं।
      हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।

      हटाएं
  6. बहुत ही सुंदर आकर्षक सभी लिंक लाजवाब है पुनः आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. उषा स्वास्ति पम्मी जी,
    सुंदर पठनीय रचनओं से सजा आज का अंक बहुत अच्छा लगा।आपकी सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई।
    सभी चयनित रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएँ।

    आदरणीया गौरी लंकेश को विनम्र श्रद्धांजलि।

    जवाब देंहटाएं
  8. आदरणीय पम्मी जी आज का अंक बेहद विशेष छम्मकछल्लो विशेष तार्किक एवं आदरणीय नवीन मणि जी की गज़ल व दिगम्बर साहब की रचना अत्यंत सराहनीय है युवा कवि पुरुषोत्तम जी की रचना हृदयस्पर्शी ,लिंको का चयन उम्दा एवं प्रयोग सृजनात्मक बहुत -बहुत बधाई ,आभार "एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर प्रस्तुति। आभार पम्मी जी 'उलूक' के सूत्र को जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुन्दर संकलन पम्मी जी पठनीय ,सृजनात्मक हृदयस्पर्शी ।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सुन्दर संकलन पम्मी जी पठनीय ,सृजनात्मक हृदयस्पर्शी ।

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत रोचक अंदाज में सूत्रों का प्रस्तुतिकरण..हलचल ने वाकई नई हलचल मचा दी है

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत ही सुन्दर ,उम्दा लिंक संकलन एवं प्रस्तुतिकरण

    जवाब देंहटाएं
  14. वाह ! बेहतरीन संकलन ! बहुत खूब आदरणीया ।

    जवाब देंहटाएं
  15. बेहतरीन संकलन पम्मी जी । बधाई आपको भी और सभी चयनित रचनाकारों को भी । हम सभी को आपस में जोड़ने वाले सभी हलचल सूत्रधारों का दिल से शुक्रिया ।

    जवाब देंहटाएं
  16.  आप सभी के स्नेह, अवसर और टिप्पणी के लिए धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं

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