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शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

798... माँ ब्रम्हचारिणी को शत शत नमन

सादर नमस्कार..
नव रात्रि का दूसरा दिन
 माँ ब्रम्हचारिणी को शत शत नमन
माँ अबलाओं व निरीह कन्याओं को
अपनी शक्ति प्रदान कीजिए

मातेश्वरी को नमन करते हुए 
चलें आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर...


माँ मेरा उद्धार करो!...विश्वमोहन
मञ्जूषा ममता की, माँ, अमृत छाया,
निमिष निमिष नित प्राण रक्त माँ पाया।
क्रोड़ करुणा कर कण कण जीवन सिंचित,
दृग कोशों से न ओझल हो तू किंचित।



तुम चुप थी उस दिन....पम्मी सिंह
जो तनहा, नहीं सरगोशियाँ थीं, कई मंजरो की,
तमाम गुजरे, पलों की फ़साने दफ़्न कर..

जिंदगी की राहों से जो गुज़री हो
जो ज़मीन न तलाश कर सकी ,
मसाइलों की क्या बात करें...
ये उम्र के हर दौर से गुज़रती है.

दुआ.....अमित जैन "मौलिक"
अब न कोई दवा असर देगी
चंद सांसें है बस दुआ देना ।।

शोर ज्यादा है तेरी गलियों का
आएंगे इक दिन पता देना ।।

टूटकर फूल शाखों से....श्वेता सिन्हा
अंजुरी में कितना जमा हो जिंदगी
बूँद बूँद पल हर पल फिसल रहे है

ख्वाहिशो की भीड़ से परेशान दिल
और हसरतें आपस में लड़ रहे है




मैं और मेरी सौतन...सुधा सिंह
डरती हूँ अपनी सौतन से
उसकी चलाकियों के आगे मैं मजबूर हूँ
कहती है वह बड़े प्यार से - "तुम जननी बनो.
गर्भ धारण करो.
अपने जेहन में एक सुंदर से बालक की तस्वीर गढ़ो.
उसका पोषण करो.
आनेवाले नौ माह की तकलीफें सहो.

हिम्मत तो की होती बुलाने की....दिलबाग सिंह विर्क
जिन्हें घर भरने से फ़ुर्सत नहीं
वो क्या करेंगे फ़िक्र ज़माने की।

हम न आते तो गिला भी करते
हिम्मत तो की होती बुलाने की।


हया की वो रात!...ये मोहब्बतें
एक ही बिस्तर पर
खिंच गयी थी तकिये की दीवार:
इस तरफ़ उसके अरमान
मुहाफ़िज़ बने बैठे थे
और दूसरी तरफ़ रातों की
रंगीनियां थी बेहिसाब,

one line suvichar in english,
ये लम्हा ये आरज़ू वो बरस दो बरस.....पुष्पेन्द्र द्विवेदी
कमाल की शायरी में जुमले कमाल के ,
ये आरज़ू ए आशिक़ी है या मौसम ए सुखन ।

मोहब्बतों की सारी उम्मीदें गर मुझी में सिमटी हों ,
मैं कैसे किसी गैर की आरज़ू करता ।

आज्ञा दें दिग्विजय को
फिर मुलाकात होगी..


सड़क में सर्कस देखिए
मात्र एक मिनट चार सेकेण्ड







20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर और संवेदना से लबरेज रचनायें.बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति. सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात
    सादर नमन
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात।
    साहित्य समाज का दर्पण है।
    समाज का आइना बनकर उभरती तस्वीर में भावबोध की कसौटी अब और चुनौतीपूर्ण हो गई है।
    व्यक्तिगत अनुभव को सार्वजनिक करने की होड़ इस हद तक बढ़ गयी है कि घर में घुसे चूहे को मारने या बाहर निकालने के लिए लोग घर को ही आग लगा देते हैं तो घर जल जाता है और बिल में घुसा चूहा बच जाता है ( मलयालम भाषा की एक कहावत ) ।
    आदरणीय दिग्विजय भाई साहब को बहुत -बहुत बधाई एक सारगर्भित ,चिंतनीय अंक प्रस्तुत करने के लिए।
    सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं।
    आभार सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपके कमेंट ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इस कमेंट पर कमेंट करने से खुद को रोक न सका। बहुत की अच्छा श्रेष्ठ कमेंट है जोकि शिक्षाप्रद है।

      हटाएं
    2. आदरणीय रवींद्रजी,
      मैं भी विनोदजी की बात से सहमत हूँ । आपके द्वारा दी गई मलयालम कहावत ने गागर में सागर का काम किया है । आप जैसे पाठक आईने के समान होते हैं किसी भी रचनाकार के लिए ।

      हटाएं
  4. सुप्रभात सर,
    बहुत सुंदर रचनाएँ है आज के संकलन में,संवेदनशील और मनभावन रचनओं का गुलदस्ता सजाया है आपने।
    मेरी रचना को मान देने के लिए अति आभार।
    सभी चयनित रचनाकारों को बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  5. वह अच्छी प्रस्तुति आज की हलचल की।

    जवाब देंहटाएं
  6. उषा स्वस्ति,सर..
    विविधताओं से भरी सुंदर संकलन।
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद साथ ही सभी रचनाकारों को बधाई।
    आभार।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर पठनीय लिंक संकलन........।

    जवाब देंहटाएं
  8. शुभ संध्या
    'कीर्ति: श्री वार्क्च नारीणां 
    स्मृति मेर्धा धृति: क्षमा।' 
    एक संग्रहणीय प्रस्तुति
    माता रानी मुझ पर कृपा करें
    आदर सहित

    जवाब देंहटाएं
  9. विविध प्रकार की रचनाएँ लेकर पेश किया गया अंक । सादर ।

    जवाब देंहटाएं

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