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बुधवार, 13 सितंबर 2017

789..विचरने लगे हैं लक्ष्यविहीन तर्क...


उषा स्वस्ति

आज़ यानी १ ३ सितंबर, दिन बुधवार है..
लिंको के माध्यम से रू-ब-रू होते हैं
 आज के रचनाकारों से
जिनके नामों को क्रमानुसार इस प्रकार से पढें.

जेन्नी शबनम जी, उदय वीर सिंह जी, शशि पुरवार जी,
 अनुराग यायावर जी, मानसराम जोगियाल जी और साधना वैद जी ..

आगे बढ़ने से पहले इन पंक्तियों पर ...

 आज़ बिताएँ कुछ पल

थोड़ी कह लें कुछ विचार लें

कि छुपी है,

 हर विचारधारा के भीतर एक और अविचार

कथ्य के भीतर एक और अकथ्य..

विचरने लगे हैं लक्ष्यविहीन तर्क

क्यूँ न
               
गुजार ले कुछ लम्हें यहीं क्योंकि...
यहाँ बातें हम बिन आवाज़ के करते हैं...  


दिल की बातों में ये हिसाब-किताब के रिश्ते  
परखते रहे कसौटी पर बेकाम के रिश्ते!

वक़्त के छलावे में जो ज़िन्दगी ने चाह की  
कतरा-कतरा बिखर गए मखमल-से ये रिश्ते!



जो बोलता वो कौन है
हैं कुंन्द विचार ग्रंथियां
जो सोचता वो कौन है
घोर तिमिर मध्य में
चिंघाड़ना है दैन्यता
शांत चित्त बोध ले

व्यंग्य के नीले आकाश में चमकते हुए सितारे संज्ञा, समास, संधि, विशेषण 
का विश्लेषण करते हुए नवरस की नयी व्याख्या लिख रहे हैं। 
परसाई जी के व्यंग्यों में विसंगतियों के तत्पुरुष थे.
 वर्तमान में व्यंग्य की दशा  कुछ पंगु सी होने लगी है। 
 हास्य और व्यंग्य की लकीर मिटाते - मिटाते व्यंग्य की दशा - दिशा
 दोनों ही नवगृह का निर्माण कर रहें हैं। व्यंग्य लिखते - लिखते
 हमारी क्या दशा हो गई है. व्यंग्य को
 खाते - पीते , पहनते - ओढ़ते 
व्यंग्य के नवरस डूबे हम ,
जैसे स्वयं की परिभाषा
 को भूलने लगे



एक थका हारा मनुष्य

आधी धूप - आधी छाँव में

नीम के पेड़ के नीचे सोता है 
सपना आया है
कि धान के खेत का पानी

सूरज ने यकायक सोख लिया है,
होगा

को मिला कितने भोले लोग है हम जो इतनी जल्दी किसी पर 
यकीन कर लेते है। बाबा राम रहीम।,बाबा रामपाल।,आशाराम बापू !!!!!!!!!!!
न जाने और भी कितने बापू है जो गरीब जनता को चूस रहे है राजाओ के ज़माने 
से भी बुरा हाल है।एक बार मेरे साथ भी एक घटना हुई, १९९८ की बात
 है मैं उत्तरकाशी में रहता था सुबह ऑफ़िस को जा रहा था
 अचानक एक साधु आया और मुझे सड़क के 
किनारे बिठाने ले गया और हाथ में पत्थर 
उठाया और उस पर मंतर जप करने 
लगा कुछ सेकेण्ड में वह 
पत्थर मिश्री दिखने लगा



ज़िंदगी की इन अंधी गलियों में 
कुछ खोया हुआ ढूँढने को 
और मन प्राण पर सवार 
कुछ अनचाहा कुछ अवांछित 
बोझ उतार फेंकने को !
थके हारे बोझिल कदमों से 
जब घर में पैर रखा तो 
अस्त व्यस्त बिखरे सामान से 
टकरा कर औंधे

आज की पेशकश यहीं तक..

इति शम
धन्यवाद

पम्मी सिंह

19 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात पम्मी बहन
    एक उत्कृष्ट अंक
    शुभ कामनाएँ
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात
    बेहतरीन प्रस्तुति
    आदर सहित

    जवाब देंहटाएं
  3. उषा स्वास्ति पम्मी जी,
    बहुत ही मनमोहक प्रस्तुति आज के अंक की,सुंदर उम्दा लिंकों का संयोजन।
    प्रारंभ में लिखी पंक्तियाँ बहुत अच्छी है।इतने सुंदर संयोजन के लिए बधाई आपको एवं सभी चयनित रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएँ मेरी।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन सूत्रों से सुसज्जित आज की प्रस्तुति ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका पम्मी जी !

    जवाब देंहटाएं
  5. नमस्ते ,
    आज गंभीर ,विचारशील,विविधतापूर्ण और शैक्षिक रचनाओं से सजाया है अंक भावपूर्ण सार्थक भूमिका के साथ आदरणीय पम्मी जी ने।
    बधाई।
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं।
    आभार सादर।

    जवाब देंहटाएं
  6. शुभप्रभात....एक यादगार, सुंदर व सुंदर लिंकों से सजी प्रस्तुति....

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह ! सदा की भांति सुंदर कथ्यों के साथ पठनीय सूत्रों का चयन..आभार !

    जवाब देंहटाएं
  8. बेहतरीन प्रस्तुति. सभी रचनाकारों को बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  9. अपनी विशेष छाप छोड़ते हुए अभिव्यक्ति के विविध आयामों से सजी उम्दा प्रस्तुति । बहुत आभार पम्मीजी का, जो हमारे लिए इन रचनाओं को खोज लाई हैं । सभी रचनाकारों का हार्दिक अभिनंदन !!!

    जवाब देंहटाएं
  10. आदरणीया पम्मी जी आज का अंक विशेष लगा बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आभार ,"एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं
  11. वाह ! खूबसूरत लिंक संयोजन ! बहुत सुंदर आदरणीया ।

    जवाब देंहटाएं
  12. post ko link karne ke liye bahut bahut dhanyabad Pammi ji
    bhut hi sumdar sanklan hai.

    जवाब देंहटाएं

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