निवेदन।


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सोमवार, 22 दिसंबर 2025

4609...शोक-संदेश


🙏अश्रुपूरित श्रद्धांजलि 🙏

कभी सोचा न था
कभी कोई दिन ऐसा भी आयेगा;
आपकी, हम सब की 
अति प्रिय यशोदा दी के लिए
शोक संदेश लिखना होगा।
टाइप करते उंगलियॉं  कॉंप रही है,
यशोदा दी की पवित्र  आत्मा 
२० दिसम्बर को 
परमात्मा में सदा के लिए लीन हो गयी।

हमारे पांच लिंक परिवार ने अपनी

जननी को हमेशा के लिए खो दिया।

आभासी दुनिया का परिचय 
आभास मात्र नहीं एक जीवंत एहसास है।

आदरणीया यशोदा अग्रवाल जी

किसी परिचय का मोहताज़ नहीं।

पाँच लिंक का बीजारोपण करने वाली

स्नेही, सहृदय,पारखी दृष्टि और धैर्य की मूर्ति

हमारी यशोदा दी।

 ब्लॉगजगत में साहित्यिक अभिरुचि रखने वाली, स्वयं का परिचय एक पाठक के रुप में देती, 

सबसे चिरपरिचित चेहरा यशोदा दी। 

कैंसर जैसी अत्यंत कष्टदायक

बीमारी से जूझते हुए,

जीवन के संघर्षों का जीवटता से सामना करती रही हैं।

साहित्य के सागर से बेशकीमती मोती चुनकर उनको 

प्रोत्साहित करती हुई सच्ची साहित्य साधना में 

लीन रहीं तमाम उम्र। 

सुगढ़ प्रस्तुति में सदैव नया का प्रयास करती,

रचनाकारों का खुले हृदय से स्वागत करती हमारी 

यशोदा दी अब सदा के लिए स्मृतियों की सुगंध

बन गयीं‌।

चिट्ठाजगत को जीवंत रखने वाली

यशोदा दी का जाना अपूर्णीय क्षति है।

चिट्ठाजगत उनका विशेष योगदान

कभी नहीं भुला पायेगा।

मन उद्विग्न है और क्या लिखे शेष फिर कभी।

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प्रिय यशोदा दी के लिए उनके कुछ साथियों ने

संदेश प्रेषित  किया है।


आदरणीया पम्मी सिंह "तृप्ति"

यह जानकर मुझे बहुत दुख हो रहा है  यशोदा अग्रवाल (दी) जी संसार को परित्याग कर पंचतत्व में विलीन हो गई। 

उनके के जाने से ब्लोग जगत में जो रिक्तता बनी है, उसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है। दस सालो का साथ , हर दिन कुछ लिखने,प्रस्तुतिकरण लिए  प्रेरित करते शब्द अनायास ही चुप हो गई। उनकी यादें हमेशा हमारे साथ रहेंगी।

ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें और परिवार को धैर्य व संबल प्रदान करें।

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आदरणीय रवीन्द्र जी 


इस दुख की घड़ी में मन से हमारे साथ हैं।

वे पारिवारिक शोक कार्य में है।


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आदरणीय सुशील सर


यशोदा चली गई श्वेता से पता चला  |
 मुलाकात नहीं थी मगर रिश्ता मजबूत था |
 मिलने की इच्छा थी सोचा था कभी भिलाई जाऊंगा दीदी से मिलने तो रायपुर जा कर मिलकर आऊँगा | निराश नहीं हूँ मिलेंगे जरूर आगे | 

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आदरणीया संगीता स्वरूप दी


आज श्वेता के संदेश द्वारा दुखद समाचार मिला  कि प्रिय यशोदा अब हमारे बीच नहीं रही । हंलांकि काफी समय से स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रही थी लेकिन अपनी इच्छाशक्ति से वक़्त को मात देने में सफल थी । जहाँ तक मैंने उसके बारे में जाना और  समझा है वो बहुत मेहनती और लगन की पक्की थी । ये उसका ही प्रयास रहा जो हलचल का ब्लॉग पांच लिंकों का आनंद  अभी तक आप तक पहुँचता रहा । 

ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को अपने चरणों में स्थान दे और परिवार को ये दुःख सहने की क्षमता दे । ॐ शांति ॐ । 🙏🏻🙏🏻


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आदरणीया विभा रानी श्रीवास्तव 


क्रूर काल किसी को रहने नहीं देगा -लेकिन किसी को अकाल ले जाता है तो कुछ कहने योग्य नहीं छोड़ता है यशोदा दिग्विजय अग्रवाल (छोटी बहना) का कल रात छीन लेना तेरा क्रूरतम निर्णय रहा 


कभी दीदी कभी माँ कह जाती थीं -बेहद प्यार सम्मान करती भी थीं-ब्लॉग जगत के लिए अपूर्णीय क्षति है उनका उपकार साहित्य जगत सदैव याद रखेगा


ब्लॉगर संगी फेसबुक साथी


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आदरणीय विश्वमोहन जी


यशोदा जी नहीं रहीं। अंदर से कंपा देने वाला अत्यंत दुखद समाचार। हम भावनात्मक रूप से अपने को इतना सबल और सक्षम नहीं पा रहे कि कुछ बोल सकें। मन मलिन है। सर चकरा रहा है। आंखे निर्निमेष और आर्द्र हैं। दृष्टिपथ धूमिल है। विचार - तंत्रिकाएं सन्निपात- सी शिथिल हैं। हमें यश देनेवाली, यशोदा अब हमारी स्मृतियों की धरोहर बन गई। सुर धाम को वह अब शांति प्रदान करें और हमें आशीष! 🙏🏻🌹🙏🏻


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आदरणीया मीना भारद्वाज जी

ब्लॉग जगत ने एक संवेदनशील स्वर, एक मौन विचारक और एक सहज लेखिका को खो दिया है ।ब्लॉग जगत की प्रिय यशोदा दी नहीं रहीं ।

     इस दुखद घटना जिस पर हृदय को यकीन ही नहीं है कि ऐसा कैसे संभव है ?लग रहा है अभी पाँच लिंकों का स्तंभ पर जाऊँगी और उनकी लगाई प्रस्तुति पढ़ने को मिलेगी । कोई पोस्ट अपने ब्लॉग पर पोस्ट करूँगी और उनका आमन्त्रण होगा -“आपकी यह रचना कल पाँच लिंकों का आनन्द में सम्मिलित की जाएगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं ।”

वे न केवल शब्दों की शिल्पी थी बल्कि मानवीय भावनाओं की मर्मज्ञ और कुशल चितेरी भी थीं ।उनका जाना,  सिर्फ एक जीवन का अंत नहीं,  बल्कि ब्लॉग जगत के एक  युग के अनुभवों का विराम है।

   मैं  श्रद्धा और संवेदना के साथ  उन्हें नमन करती हूँ और अश्रुपूरित हृदय से ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान कर अपने श्रीचरणों में स्थान दें और परिजनों के साथ पाँच लिंकों का आनन्द परिवार को दुःख सहने की शक्ति दें 🙏


शब्द मौन हैं .., दुःखी हृदय से आदरणीया यशोदा जी को अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि 🙏🙏


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आदरणीया रेणु दी


ये ह्रदय विदारक सन्देश मिला!

 बहुत दुःख हुआ जिसको शब्दों में 

 लिखना सम्भव नहीं!

 ये ब्लॉग जगत भी हमारा दूसरा

 परिवार बन चूका है! प्रभु उनकी

 आत्मा को शान्ति प्रदान करे!🙏


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आइए हम सब मिलकर 

प्रार्थना करें।

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रविवार, 21 दिसंबर 2025

4608.... ज़िन्दगी कहने को बे-माया सही

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़े 
हँसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े, 
जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी-पी के गर्म अश्क 
यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े।

मशहूर शायर 

उनकी रूहानी आवाज़ महसूस कीजिए।


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आइये आज की रचनाओं का आनंद लें।
आज के अंक में
हर  रचना के साथ कैफ़ी साहब की आवाज़ में
नज़्म और गज़ल के छोटे-छोटे वीडियो हैं।
रचनाएं लोग लिख नहीं रहे पांच कविताऍं
आसानी से मिलती ही नहीं आज की प्रस्तुति 
 एक प्रयोग भर है आप सभी साहित्य प्रेमी पाठकों के लिए ।
उम्मीद है आपको पसंद आयेगी।
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पाया भी उनको खो भी दिया चुप भी हो रहे
इक मुख़्तसर सी रात में सदियाँ गुज़र गईं

जो इक ख़ुदा नहीं मिलत तो इतना मातम क्यों
मुझे ख़ुद अपने क़दम का निशाँ नहीं मिलता



ये बुझी सी शाम ये सहमी हुई परछाइयाँ
ख़ून-ए-दिल भी इस फ़ज़ा में रंग भर सकता नहीं
आ उतर आ काँपते होंटों पे ऐ मायूस आह
सक़्फ़-ए-ज़िन्दाँ पर कोई पर्वाज़ कर सकता नहीं
झिलमिलाए मेरी पलकों पे मह-ओ-ख़ुर भी तो क्या?
इस अन्धेरे घर में इक तारा उतर सकता नहीं







ज़िन्दगी कहने को बे-माया सही
ग़म का सरमाया सही
मैं ने इस के लिए क्या-क्या न किया
कभी आसानी से इक साँस भी यमराज को अपना न दिया
आज से पहले, बहुत पहले
इसी आँगन में
धूप-भरे दामन में







ये साँप आज जो फन उठाए
मिरे रास्ते में खड़ा है
पड़ा था क़दम चाँद पर मेरा जिस दिन
उसी दिन इसे मार डाला था मैंने
ये हिन्दू नहीं है मुसलमाँ नहीं
ये दोनों का मग़्ज़ और ख़ूँ चाटता है
बने जब ये हिन्दू मुसलमान इंसाँ
उसी दिन ये कम-बख़्त मर जाएगा।






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शनिवार, 20 दिसंबर 2025

4607... एहसासों के अनुवाद को ...

शनिवारीय अंक में
आपसभी का हार्दिक अभिनन्दन।
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कभी परदा जरूरी होता है   
कहीं परदा मजबूरी होता है
सजावट तो कभी सहूलियत
परदा ओट नहीं दूरी होता है
अधिकार के चुंबकीय क्षेत्र में
परदा मन का कस्तूरी होता है
जीवन के चारों ओर घूमता

परदा मन की धुरी होता है।
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आज की रचनाऍं-

अर्थ गीता के जग में अटल हो गये


सौ की मर्यादा टूटी सुदर्शन चला
पल वो शिशुपाल के काल-पल हो गए

रूह प्रारब्ध ही बस बचा किंतु तन
अग्नि, पृथ्वी, गगन, वायु, जल हो गए

कर के नारायणी कौरवों की तरफ़
कृष्ण ख़ुद पाण्डवों की बगल हो गए




मौन का संवाद 


भाषा परिभाषित करे भी कैसे

एहसासो के अनुवाद को

अनुच्चरित शब्द भी कैसे

गढ लेते हैं संवाद को

सुनने के लिए ज़रूरी नहीं है

कानों की मौजूदगी;

कभी-कभी सन्नाटा भी

वह कह जाता है जो

शोर की भीड़ में अकसर

अनसुना रह गया.



दुश्वार ये क्षण मुक्कू



विछोह, यही असह्य,
यूं बिखर गई, अपनी जगह से हर शै,
मुक्कू, तुम क्यूं बिछड़ गए,
क्यूं पड़ गए, कम जिंदगी के क्षण,
भ्राता मेरे, तुम यूं आए, 
यूं गए...

दुश्वार बड़ा ये क्षण! मुक्कू, तुम यूं आए, 
यूं गए...




फेरीवाला और नन्ही गुड़िया



साँवरी     गोरी     पहने   लाल
गुलाबी    केसरिया    पीला   नीला
हरा   धानी    घाघरा  -   चोल
सिर    पे   ओढ़े   वो   सतरंगी    चुनर    
देती    इंद्रधनुष     को   जो   टक्कर 




स्त्रियाॅं देवियाॅं नहीं


किसी भी स्थिति में केवल स्त्री होने के नाते किसी भी रूप में दण्ड की अधिकारी हैं. जब मैं घर संभालती हूँ, खर्च बचाती हूँ, माता-पिता की सेवा करती हूँ, तो मुझे देवी कहा जाता है. पर जब गलती हो जाए या परिस्थिति बिगड़ जाए, तो वही लोग मुझे राक्षसी कहकर मारपीट करने लगते हैं. हमारे साथ यह दोहरा व्यवहार क्यों? हम स्त्रियाँ हैं, एक मनुष्य मात्र, यदि पुरुष समाज हमें भी खुद की तरह इंसान समझे और स्त्रियों के साथ समानता का व्यवहार करे. हम इसके सिवा कुछ नहीं चाहतीं।“



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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।


शुक्रवार, 19 दिसंबर 2025

4606....मैं पेड़ होना चाहती हूॅं...

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
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दिसंबर की हाड़ कँपाती सर्दियों में
अनगिनत ठिठुरते दृश्यों के साथ
कुछ अनदेखी कल्पनाएँ
मेरे मन को बैचेन करती है 
क्या आपने सोचा है कभी
सरहद के रखवालों की बर्फीली रातों के बारे में
उन्हें हृदय से नमन करती हूँ-

हिमयुग-सी बर्फीली
सर्दियों में
सियाचिन के
बंजर श्वेत निर्मम पहाड़ों 
और सँकरें दर्रों की
धवल पगडंडियों पर
चींटियों की भाँति कतारबद्ध
कमर पर रस्सी बाँधे
एक-दूसरे को ढ़ाढ़स बँधाते
ठिठुरते,कंपकंपाते,
हथेलियों में लिये प्राण
निभाते कर्तव्य

आज की रचनाऍं- 

https://ghazal-geet.blogspot.com/2025/12/blog-post_17.html?m=1




















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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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गुरुवार, 18 दिसंबर 2025

4605...पत्ते पीले हो कर, सब्ज़ नहीं होते ...

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ.(सुश्री) शरद सिंह जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

आज पढ़िए ब्लॉगर डॉट कॉम पर प्रकाशित रचनाएँ-

शायरी | रिश्तों की तासीर | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

पत्ते पीले हो कर, सब्ज़ नहीं होते 
इनसे समझो रिश्तों की तासीर कभी
*****

नानी का डंडा

*****अब नहीं लौटना
उन दोनों की लड़ाई का अंत हमेशा बच्चों पर होता. बरसों से बच्चों को माँ-बाप का प्यार नसीब नहीं हुआ था. लोग कुत्ता पालते हैं तो उससे भी दुलार जताते हैं, लेकिन रीमा तो उस दुलार से भी महरूम थी. माँ-बाप काम पर जाते तो उसे राहत मिलती. माँ बाप की लड़ाई के बीच छठी कक्षा तक ही वह पढ़ पायी थी. फिर दिन में वह वहीं झुग्गियों के बीच एक लिफाफे बनाने वाली वर्कशॉप में काम करने लगी, जहाँ उसकी तरह अधिकांश नाबालिग काम किया करते थे. वहीं वह जीतू से मिली, दोनों दोस्त बने. एक दूसरे के दर्द साझा करने लगे.*****फिर मिलेंगे। रवीन्द्र सिंह यादव 

बुधवार, 17 दिसंबर 2025

4604..क्या क्या बदलेगा..

।।प्रातःवंदन।।

 धुंध में लिपटी सर्द सुबह

बीते समय की देहरी पर ठहरी है,

कल भी सब अस्पष्ट था

आज भी वही धुंधली कहानी है।

सड़कें, रास्ते, चौखटें

अब भी तुम्हारी आहट की आस में,

मौन होकर इंतज़ार करती हैं।

(अनाम)

समयानुकूल रचना पढकर ब्लॉग पर भी आप सभी के लिए शेयर कर रही, चयनित रचनाए कुछ इस तरह है..✍️

साल की आखिरी कविता में 


 होना चाहिए इस बात का जिक्र कि 

साल के बदल जाने के बाद 

क्या क्या बदलेगा 

और क्या क्या रह जायेगा 

पहले जैसा?  .

✨️

मन पाए विश्राम जहाँ

 जीवन में हमारे साथ कुछ लोग ऐसे अवश्य होते हैं जिनसे मिलकर मन विश्राम पाता है । आज अनीता निहलानी जी जिनके ब्लॉग से ही यह शीर्षक लिया है , ग्वालियर भ्रमण पर हैं और मेरा सौभाग्य के उनके..

✨️

अभी सपनों पर पाबंदी नहीं लगी”




सपने भी देखना चाहिए

क्योंकि सपने—

ज़िंदा रहने का सबूत होते हैं।

कुछ सपने

मैं रिकमेंड करता हूँ

ज़रूर देखना—

“बिना साम्प्रदायिकता भड़काए”..

✨️

त्रिपदा छंद

 

सर पर प्रभु का हाथ

हिम्मत भी दे साथ


कोई न देगा मात !

मेरे मन के मीत..

✨️

व्यथा

 तुझको नम न मिला

और तू खिली नहीं

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्‍ति '✍️

मंगलवार, 16 दिसंबर 2025

4603..अकेला क्यों..

।।प्रातःवंदन।।

प्रस्तुतिकरण के क्रम को बढाते हुए...✍️

आधा दिसंबर गुज़र चुका है। ठंड धीरे-धीरे अपने तेवर दिखाने लगी है। कुहरे और सूरज दादा में जंग जारी है। कुछ लोग बर्फबारी का आनंद लेने के लिए पहाड़ी स्थानों की ओर रुख़ कर रहे हैं। पूरे NCR को प्रदूषण ने अपनी चपेट में ले रखा है। कुल मिलाकर शीत ऋतु का प्रभाव अलग-अलग ढंग से सबको प्रभावित कर रहा है।ठंड में अपना और अपनों का ध्यान रखते हुए आइए सर्दी वाले कुछ दोहों का आनंद लिया जाए 👇👇

दोहे सर्दी वाले 
***********
माह  दिसंबर  आ   गया,ठंड  हुई    विकराल।
ऊपर   से   करने  लगा,सूरज  भी   हड़ताल।।

हाड़   कँपाती   ठंड   से,करके   दो-दो   हाथ।
स्वार्थ  बिना   देती  रही,नित्य  रजाई   साथ।।
✨️
कुछ फटे बदरंगे अध लिखे पन्ने किताबों के संभाल रखने को दिल करता हैं l

इसकी कोई धुंधली तस्वीर जाने क्यों आज भी अक्सर अकेले में बातें करती हैं ll
✨️
स्विमिंग पूल में हार का जश्न खेलावन काका की कलम से बिहार के लोग भी अजीब बिहारी हैं। सब तरह की खुमारी है और हर जगह मारा-मारी है। मारा-मारी मतलब लाठी-डंडा नहीं बाबू, कुर्सी की। यहाँ कुर्सी ऐसी चीज़ है कि जिसको मिल जाए, वह बैठता नहीं, जम जाता है। और जम गया तो फिर पीढ़ियाँ बदल जाएँ, कुर्सी नहीं..
✨️


सबके फायदे की बात हो तो मैं लिखने से गुरेज़ नहीं करती, चाहे विषय थोड़ा संकोच वाला ही क्यों न हो, क्योंकि यह समस्या हर यात्रा करने वाली महिला की है।

सफ़र के दौरान—रेल, फ्लाइट, मॉल, ऑफिस, कहीं भी—पब्लिक टॉयलेट की साफ़-सफ़ाई सबसे बड़ी चुनौती बन जाती है।..
✨️
।।इति शम।।
धन्यवाद 
पम्मी सिंह ' तृप्‍ति '..✍️

सोमवार, 15 दिसंबर 2025

4602...चीख़े तुम सुन नहीं पाओगे

सोमवारीय अंक में
आपसभी का हार्दिक अभिनन्दन।
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स्वयं समर्थ हो तुम
जीवन का सार
संपूर्ण अर्थ हो तुम
उठाओ कटारी 
काट डालो
दुख की हर डाली 
रोक लो लौटते
सुख को
अड़ जाओ पथ पर
बाँध दो
ज़िद की ज़जीर भारी।
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आज की रचनाऍं-


पूर्वज



मन की क्षितिज पर, रमते अब भी वही, छलक उठते, ये नयन, जब भी बढ़ती नमी, यूं तो, घेरे लोग कितने, पर है इक कमी, संग, उनकी दुवाओं का, असर, वो हैं, इक नूर शब के, दूर कब हुए! वो, आसमां पे रब हुए.....


एक शख़्स मौजूद था


साथ है उसके वो 

कुछ ख़ास 

कुछ अपने 

कुछ मन पसंद 

कुछ लोग बस लोग 

मैं चुप हो गई

चुप शांत नहीं 

मेरे टुकड़े खोजती 

ना खोजती 

कहीं गुम 

कहीं खुली 

बस हूँ। 

किसी दिन बरसूँगी 

चीखें तुम नहीं सुन पाओगे। 




देश हमारा है


हर मौसम के 
रंग यहाँ 
फूलों की घाटी है ,
अनगिन 
वीर शहीदों की 
यह पावन माटी है ,
सत्यमेव जयते 
इसका 

सदियों से नारा है |



ट्रेन मिल गयी



वह लोकल पकड़कर विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन पहुँचा और पैदल गेटवे ऑफ इण्डिया तक चला गया. टिकट लिया और थोड़ी देर बाद नाव में बैठ गया. नाव तट से दूर हुई तो समुद्र की लहरें और तेज़ हवाएँ उसे रोमांचित करने लगीं. बाल हवा में उड़ रहे थे. नाव में दस-पंद्रह किशोर भी थे, जो पिकनिक के लिए एलिफेंटा जा रहे थे. नाव में ही उन से परिचय हुआ. नाव एलीफेंटा पहुँचती तब तक किशोरों से उसकी दोस्ती भी हो चुकी थी.





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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।



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