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रविवार, 19 फ़रवरी 2023

3674 ....दुर्गंध की तरह पसरी रहतीं हैं ईर्ष्याएँ, दुर्भावनाएँ, कुदृष्टि, और अकर्मण्यताएँ

 सादर अभिवादन

महाशिवरात्रि
कल मना लिए, बारात भी निकल गई
होलाष्टक लगने को है एक मार्च से..जितने भी शुभकार्य है
वो कर डालिए और अशुभ कार्यों को लिए यही आठ दिन मिलते है
हो गई बकवास शुरु....
रचनाएं देखिए..



परखी बादलों ने जौहरी सी पनघट काया बदलती रूह बीच l
तस्वीर इस मंजर की इनायतॅ आयतें लिख रही चाँद बीच ll

बेचैन अधीर मन गुमशुदा करवट बदलती रातों बीच l
पूछ रहा खुद से क्यों खो गया मेरा चाँद बदरी बीच ll


सुना था,
प्रेम, सौंदर्य, सद्भावनाएँ
शुभाशीष हैं प्रभु की
पर दुर्गंध की तरह पसरी रहतीं हैं
ईर्ष्याएँ, दुर्भावनाएँ, कुदृष्टि, और अकर्मण्यताएँ
लालच और खूंखार लालसाएं हर जगह!
और इन सबको साधतीं, सहारा देतीं स्वार्थ और कुतर्क की बैसाखियाँ!




 "उफ यह आँधी..!

"काकी द्वार बंद करलो, बहुत तेज आँधी  आने वाली है..!"आवाज सुनकर कामना चौंक कर देखती है तो सामने की छत से कपड़े समेटती बंशीलाल की बेटी निर्मला चिल्ला रही थी।

"काकी कहाँ खोई हो? बहुत तेज आँधी आने वाली है। आसमान धूल से भर गया है।
घर गंदा हो जाएगा ...!

"आने दे निर्मला,तू भीतर जा...!





छाए बहार चहुँ ओर मिटे  तामस हर इक घट का
झांकें गहन  रहस्य खोजें  खोलें  पट घूँघट का !

जो  गाए न गीत कभी ना  जिनकी लय-धुन बांधी
परिचय करें अनाम स्वरों  से  गूँजे  नयी रागिनी  !





अपना ही अस्तित्व मिटाती
करती इनका पोषण
सर्पों जैसी फितरत इनकी
करते कितना शोषण
कुछ भी मेरा रहा न अपना
दुख से हूं झुलसाई
पग-पग पर नित छली गई हूँ
सहमी हूँ घबराई।


आज बस
सादर

4 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।

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