इसी से जान गया मैं कि वक़्त ढलने लगे
मैं थक के छाँव में बैठा तो पेड़ चलने लगे
मैं दे रहा था सहारे तो एक हुजूम में था
जो गिर पड़ा तो सभी रास्ता बदलने लगे
-फरहत अब्बास शाह
गर यहीं दुनियादारी हैं तो बड़ी चुनौती भरा है खैर..हम सब निभाते भी है बड़ें अदब के साथ ..चलिये आज की लिंकों पर नज़र डालें..✍️
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पंथ निहारा, राह बुहारी
लेकिन तुम आए नहीं श्याम,
नयन बिछाए की प्रतीक्षा
बीत गए कई आठों याम !
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लो, कर लो बात ! मेरी आय बढ गई और मुझे पता ही नहीं
एक वातानुकूलित कमरा होता है ! जिसमें अंदर का बाहर और बाहर का अंदर कुछ पता नहीं चलता ! उस कमरे की एक दिवार पर एक बोर्ड़ लगा रहता है। उस पर एक आड़ी-टेढ़ी-वक्र
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वो होगा विश्वसनीय ?
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आज का अंक जबरदस्त
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुप्रभात! चौंका देने वाले शीर्षकों से सजी अनूठी बुधवारीय प्रस्तुति में 'मन पाए विश्राम जहाँ' को स्थान देने हेतु आभार पम्मी जी!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंक।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार, सम्मलित करने हेतु 🙏
जवाब देंहटाएंआदरणीय पम्मी मेम,
जवाब देंहटाएंमेरी इस लिखी रचना " वो होगा विश्वसनीय ?" इस मंच में साझा करने के लिए बहुत धन्यवाद एवम आभार ।
सादर ।