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गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

3657 ....सबके दिलों में अपने -अपने “अचल” बसते हैं

 सादर अभिवादन

प्रेम के इस अनूठे माह में
उसकी गर्दन को देखकर
चूम लेने का ख़याल आया ही नहीं था
बल्कि तस्वीर में उसकी गर्दन पर
अनगिनत बोसे रखे भी थे
लेकिन वह तस्वीर थी।

अब देखें रचनाएँ ....


आज का सच कहता है कि-
“सबके दिलों में अपने -अपने “अचल” बसते हैं”
जो दरकते हैं
तो तकलीफ़ों के साथ
कोरी टीस का ही सृजन करते हैं ॥




अपने प्यार की तुम
सदा करते हो
हम पर बरसात
कैसे समझ जाते हो तुम
हमारी खामोश
पुकार को
नहीं कहते जो
अपनी जुबां से हम
पूरी कर देते हो तुम




क़र्ज़ ए ज़िंदगी
कम नहीं, तक़ाज़ा
भी है बेहिसाब,
अक्स मुरझाया
हुआ, ओंठों पे है
खिलता गुलाब,





'छोटी जाति'
और 'बड़ी जाति'
ये दो शब्द हमें
हमारी मूर्खता का
प्रमाण देते हैं।
सृजनकर्ता ने जब
हमारे सृजन में
कोई भेद नहीं किया तो
वर्गीकरण का अधिकार
हमे किसने दिया?




मेरे गांव में उतरा करते हैं प्रेत,
जवान लड़कियों की दाग दी जाती है ज़बान,
मिर्चा और सरसों का धुँआ प्रेत भगाने का अचूक हथियार है,
औरतों के ही शरीर में पैठती है चुड़ैल,


आज बस
सादर

4 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन सूत्रों से सजी पुष्प गुच्छ सी प्रस्तुति । “पुनरावृत्ति” को आज के संकलन में सम्मिलित कर मान प्रदान करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार । सादर वन्दे!

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