हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
मत दावा करो.., त्याग, सेवा और समर्पण के बिना प्रेम हो ही नहीं सकता..
तुहीं बताव विश्वास भला कोई कइसे करी,
अपना जान का आगे, जान कइसे धरी !
हम त लूटा दिहनी सब कुछ तोहरे नाम पर,
बूतल दियना अब 'संजय' भला कईसे जरी !!
गुंजित अंतर्मन की अभिलाषा,
आत्मिक प्रणय की नव रीत बनो,
आल्हादित हृदय के प्राँगण में,
तुम नूतन भावों का स्रौत बनो,
कभी-कभी तो लगता है
कोई इंसान ही नहीं बचा संसार में,
जिससे कुछ कह सकूँ
अपना हर्ष, विषाद या फिर अन्तर्भावनाओं को,
कहीं भी मन एकाग्र नहीं हो पाता।
सदा की तरह अनूठा अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
*"विरह प्रेम की जाग्रत गति है और सुषुप्ति मिलन है"*
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