शीर्षक पंक्ति आदरणीया विभा रानी श्रीवास्तव जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की चुनिंदा रचनाएँ-
साफ स्वच्छ
देखा है इसे
कुहासे में बरखा की बूँद सा
धुंधले में धुला
कांच का वर्तन सा ।
तुम बचे
रहोगे मेरे शहर के ग्रंथालय के
उन अलमारियों
में जहांँ से पढ़ी थी
मैंने
कविताएंँ विस्थापन के दर्द की
"अख़बार का प्रकाशन... एक धंधा है... व्यापार
है...। मालिक को अख़बार चलाना है तो उसे भी पैसा चाहिए..!" मित्र ने कहा।
"अख़बार तो तटस्थ होता है न! जो आँखों देखता
है उसे समाजहित में यानी समाज को सही दिशा देने की दृष्टि से ईमानदारी से
पत्रकारिता का दायित्व निभाना होता है..।" नेता जी ने कहा।
आज फेसबुक पर ''सभी मर्द एक जैसे होते हैं'' को लेकर कुछ यूं पढ़ा...आप भी देखें
पुस्तक समीक्षा - बॉयफ्रेंड ऑफ ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी
"सत्य का ईंधन कभी खत्म नहीं होगा परंतु झूठ के डीज़ल से चलने वाली बाइक एक न एक दिन अवश्य रुक जाएगी। तब तक सत्य अपनी उतरी हुई साइकल की चैन बनाने व्यस्त रहेगा। संभव है तबतक झूठ की यह डीज़लवाली बाइक हमारे शुद्ध वातावरण में इतना विष घोल चुकी होगी कि सत्य रुपी साइकल के पहीए में अशुद्ध हवा भरने के अलावा हमारे पास कोई और दूसरा विकल्प शेष नहीं बचेगा।"*****
आज का अंक
जवाब देंहटाएंबहुतै सुंदर है
आभार
सादर
शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
बहुत सुंदर अंक।
जवाब देंहटाएंअंक के सभी वेहतरीन रचनाओं के रचनाकरों को बधाई, विशेष प्रेम पर विशुद्ध प्रेम के साथ सृजन हुआ है
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को सम्मलित करने हेतु आभार यादव ज़ी
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रवींद्र जी, मेरी पोस्ट को साझाा करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन
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