।।प्रातः वंदन।।
अन्धकार के जीव छिपे, जो रवि के नैसर्गिक द्रोही.."
पं. नरेंद्र शर्मा
वसंत आया देहरी पर
सुबह हवाओं में खुशबू थी
खिले बाग़ में ढेरों फूल
कोयल कुहुक रही अमराई
पंछी रहे शाख पर झूल..
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कई बार दरिया मेरे पास से गुज़र गया
और बात मै प्यासा का प्यासा रह गया
इक चराग़ जो जल रहा था मुसलसल
रुखसती से उसकी वो भी बुझ गया ..
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डर..! सभी को लगता है
समाज में सबसे निडर फौजी जवानों को माना जाता है ! इसी विषय डर पर,
सेना से अवकाश लेने के बाद जब
एक साक्षात्कार में सैम मानेकशॉ से पूछा गया तो
उन्होंने कहा कि जो इंसान..
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छलकी बदरी
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जाएँगे हम मगर इस क़दर जाएँगे.रख के सब की ख़बर बे-ख़बर जाएँगे.
धूप चेहरे पे मल-मल के मिलते हो क्यों,मोम के जिस्म वाले तो डर जाएँगे...
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
भावभीनी हलचल … बहुत शुक्रिया मेरी ग़ज़ल को शामिल करने के लिए ..,
जवाब देंहटाएंअप्रतिम
जवाब देंहटाएंप्रेमासिक्त मास की प्रथम प्रस्तुति
आभार
सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद पम्मी जी मेरी रचना को आज की हलचल में सम्मिलित करने के लिए ! क्षमाप्रार्थी हूँ विलम्ब से देख पाई ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर प्रस्तुति
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