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बुधवार, 1 फ़रवरी 2023

3656..चिराग जो जल रहा...

 ।।प्रातः वंदन।।

"द्वार खुले श्री ने शिशुओं के सर सूँघे, आँखें खोली,
सूर्य किरण का इंगित पा कर डाल डाल चिड़ियाँ बोलीं।

दिवा - प्रभा सब ओर दिवा की प्रभा हुआ रवि आरोही,
अन्धकार के जीव छिपे, जो रवि के नैसर्गिक द्रोही.."
पं. नरेंद्र शर्मा
प्रस्तुति क्रम के सिलसिले में आज लाई हूँ चुनिंदा लिंक जिसे आप सभी पढ़ें और चंद शब्दों से अलंकृत करें.✍️

वसंत आया देहरी पर 

सुबह हवाओं में खुशबू थी

खिले बाग़ में ढेरों फूल

कोयल कुहुक रही अमराई

पंछी रहे शाख पर झूल..

🏵️

 कई बार दरिया मेरे पास से गुज़र गया

और बात मै प्यासा का प्यासा रह गया


इक चराग़ जो जल रहा था मुसलसल 

रुखसती से उसकी वो  भी बुझ  गया ..

🏵️

डर..! सभी को लगता है

समाज में सबसे निडर फौजी जवानों को माना जाता है ! इसी विषय डर पर, 

सेना से अवकाश लेने के बाद जब 

एक साक्षात्कार में सैम मानेकशॉ से पूछा गया तो 

उन्होंने कहा कि जो इंसान..

🏵️

छलकी बदरी


छलकी क्यूं बदरी,
इक बूंद गिरी, या दुःख की जलधि!
समझ सके ना हम!

भीगे सब पात, यूं जागी रात,
हुई सजल, हर बात,

🏵️

जाएँगे हम मगर इस क़दर जाएँगे.
रख के सब की ख़बर बे-ख़बर जाएँगे.


धूप चेहरे पे मल-मल के मिलते हो क्यों,
मोम के जिस्म वाले तो डर जाएँगे...

🏵️

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

5 टिप्‍पणियां:

  1. भावभीनी हलचल … बहुत शुक्रिया मेरी ग़ज़ल को शामिल करने के लिए ..,

    जवाब देंहटाएं
  2. अप्रतिम
    प्रेमासिक्त मास की प्रथम प्रस्तुति
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. हार्दिक धन्यवाद पम्मी जी मेरी रचना को आज की हलचल में सम्मिलित करने के लिए ! क्षमाप्रार्थी हूँ विलम्ब से देख पाई ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं

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