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शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

1981 ...कई उलझन खुद-ब-खुद सुलझ जाती है

शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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वर्ष भर का हिसाब-किताब 
सारे महीनों के क्रियाकलाप,
रंग,धूप,सीलन, नमी गुनता
अपने हिस्से की ओस चुनता,
भारी स्मृतियों के थैले लादे
नयी उम्मीद के करता वादे,
भावहीन समय की सीढ़ी उतरता
 दर्द की परतें छिल रहा है
साल हज़ार बीस के कैलेंडर में
दिसंबर बचे दिन गिन रहा है...।

#श्वेता

आइये आज की रचनाओं का आस्वादन करें।


रसहीन उत्सव

सुबह से शाम तक
रात में भी सोने के पहले
एक चिंतन कि
कल की कल-कल
मन में असंतोष
खुशियाँ सारी समाप्त,

दर्द होंठों में दबाकर


उम्र भर संघर्ष करके
रोटियाँ अब कुछ कमाई
झोपड़ी मे खाट ताने
नींद नैनों जब समायी
नींद उचटी स्वप्न भय से
क्षीण काया जब बिलखती
दर्द होठों में दबाकर
भींच मुट्ठी रूह तड़पती...


चालाक चिड़ियाँ

चिड़िया फिर आई
प्याले पर बैठी,
इधर-उधर मुंडी हिलाई,
पूँछ उठाई फिर फुदककर 
कूद गई प्याली में!
फर्र-फर्र पंख फड़फड़ाती,
छींटे उड़ाती
पानी से
खेलती रही देर तक।


सपनों का अपराध नहीं है



चुटकी भर शब्दों की चाहत कोई विशद ग्रंथ हो जाना 
रहे व्याकरण से अनजाने संज्ञा क्या है और क्रिया क्या
क्या सम्भव है परिणति उनकी,किसने देखे नयन संजोए
जिन सपनों को कोई परिचय अपना भी मिल नहीं सका था 


नानी का लालटेन

बहुत दिन बाद आज जब मैं
अपने ननिहाल गई तो
आज भी खूंटी पर टांगा 
वो लालटेन देखा
जिसे नाना जी बड़े ही
प्यार से लाए थे नानी के लिए
कहते थे तुम्हारी आंखेंं


क्यूँ हुए विचलित


क्यूँ हुए  विचलित तुम
किसी ने तुम्हारा दिल तो नहीं दुखाया  
या मन  की गहराई में
कोई  बुरा ख्याल आया  |

"उलझन-सुलझन"


" यदि जीवन में  आपको कोई

सच्चा दोस्त मिल जाएं तो 

जीवन की आधी समस्याएं तो

यूँ ही समाप्त हो जाती है, 

कई उलझन खुद-ब-खुद सुलझ जाती है।"


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कल पढ़िए विभा दी के द्वारा

संकलित विशेष अंक


10 टिप्‍पणियां:

  1. असीम शुभकामनाओं के संग साधुवाद छुटकी
    उम्दा लिंक्स चयन

    जवाब देंहटाएं
  2. उव्वाहहहहहह
    क्या शानदार रचनाएं चुनी गई है आज
    आभार...
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर लिंकों का चयन।
    शुभकामनाएँँ

    जवाब देंहटाएं
  4. स्वेता जी बहुत ही सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बधाई
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. साल हज़ार बीस के कैलेंडर में
    दिसंबर बचे दिन गिन रहा है...।
    सुन्दर समसामयिक भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति उम्दा लिंक संकलन...। मेरी रचना को
    यहाँ स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार

    जवाब देंहटाएं

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