कहते हैं भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता
सोच नहीं होती,सोच पर पहरा नहीं होता
खीर-सेवईयाँ,गलबहियाँ भूला बैठे, अब
बिना आतिश के कोई ईद दशहरा नहीं होता
★★★★★★
बेनाम चेहरोंं की भीड़ सुनो
मेरे राम को तुम बदनाम न करो
धर्मांधता की तख़्ती पकड़ने वालों
मेरे राम का ऐसा नाम न करो
हैंं करुणानिधि करुणाकरण जो
उनके नाम पे क़त्लेआम न करो
#श्वेता
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चलिए आज की रचनाएँ पढ़ते हैं
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आदरणीय विश्वमोहन जी
कुटिल कौम!कैसी फितरत!!
★★★★★
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक..
बिना आतिश के कोई ईद दशहरा नहीं होता
सादर..
अनोखा संकलन
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन एवम हार्दिक धन्यावद
जवाब देंहटाएंअत्यंत सामयिक एवं अर्थपूर्ण आमुख से अलंकृत रचना संसार।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति और बहुत सुन्दर प्रस्तावना ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का संकलन।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का संकलन...हार्दिक धन्यावद
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