----
इंसानियत
..................................
दुनिया के बाज़ार में इंसान खिलौना है।
मज़हब सबसे ऊपर इंसानियत बौना है।।
बिकता है ईमान चंद कागज़ के टुकड़ों में,
दौर मतलबों का, हृदयहीनता बिछौना है।
धर्म ही धर्म दिखता है चौराहों पर आजकल,
रब के बंदे के लिए अफ़सोस नहीं कोना है।
जन्म से हे! सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ कृति कहो,
कर्म का तुम्हारे रुप क्यों घिनौना है?#श्वेता
★★★★★
तो चलिए
विलंब न करते हुये हमारे
सृजनशील,प्रतिभाशाली रचनाकारों के क़लम
से प्रवाहित
हमक़दम के
इंसानियत
अंक की रचनाएँ पढ़ते हैं।
★★★★
कविता कोश से ली गई रचनाएँ
आदरणीया अनुपमा पाठक
इंसानियत का आत्मकथ्य ...
भूलते हो जब राह तुम
घेर लेते हैं जब सारे अवगुण
तब जो चोट कर होश में लाती है
वो मार्गदर्शिका छड़ी हूँ मैं !
अटल खड़ी हूँ मैं !
मैं नहीं खोई, खोया है तुमने वजूद
इंसान बनो इंसानियत हो तुममें मौज़ूद
फिर धरा पर ही स्वर्ग होगा
प्रभु-प्रदत्त नेमतों में, सबसे बड़ी हूँ मैं !
अटल खड़ी हूँ मैं !
★★★★★★
ज़नाब सर्वत एम जमाल
इंसानियत दलदल में है.....
सच कहूँ इंसानियत दलदल में है
आदमी तो आज भी जंगल में है।
आप सोना ढूढ़ते हैं , किसलिए
आजकल गहरी चमक पीतल में है।
सारी नदियाँ चल पडी सागर की सिम्त
सिरफिरा तालाब किस हलचल में है।
★★★★★★
★
आदरणीया साधना वैद
हारती संवेदना
भाव कोमल कंठ में ही घुट गये ,
मधुर स्वर कड़वे स्वरों से लुट गये ,
है अचंभित सिहरती इंसानियत ,
क्षुब्ध होती जा रही संवेदना !
कौन सत् के रास्ते पर है चला ,
कौन समझे पीर दुखियों की भला ,
हैं सभी बस स्वार्थ सिद्धि में मगन ,
सुन्न होती जा रही संवेदना !
★★★★★
आदरणीया आशा सक्सेना
इंसानियत के ह्रास पर ....
इंसानियत के ह्रास पर
कितने भाषण सुन कर
प्रातः काल नींद से जागते ही
अखवार पर नजर डालते ही
मन का सुकून खो जाता है|
★★★★★★
आदरणीया कामिनी सिन्हा
क्या हम अपने नौनिहालों को इंसानियत का पाठ पढ़ा पाएंगे ?
" इंसानियत " यानि इंसान की नियत ,तो शायद इंसान के नियत के आधार पर ही उन्हें देवता या दानव कहा गया होगा। लेकिन जैसे जैसे हम सतयुग से द्वापर और त्रेतायुग की ओर चले देवताओ की संख्या तो वही रही पर दानवी गुणों में बढ़ोतरी होती चली गई,शायद सकारात्मक ऊर्जा से ज्यादा आकर्षक नकारात्मक ऊर्जा होती हैं। तभी तो द्वापर में एक व्यक्ति के सत्ता पाने की चाह में एक भरापूरा परिवार बिखर गया ,एक बेटे को वन वन भटकना पड़ा,अपहरण जैसे घटनाक्रम का जन्म हुआ ,एक स्त्री के चरित्र पर लांझन लगाने का दुःसाहस शुरू हुआ ,नारी को अपने सतीत्व को प्रमाणित करने को वाध्य किया गया। त्रेतायुग आते आते तो सतयुग के सारे सद्गुण धीरे धीरे विलुप्त होते जा रहे थे। त्रेतायुग में तो एक नारी को भरी सभा में नग्न करने का प्रयास किया गया और उस नारी के
सभी शुभचिंतक मूक दर्शक बने देखते रहे। नारी के मान सम्मान और पवित्रता के साथ खिलवाड़ तो त्रेतायुग से ही शुरू हो गया था। सत्ता के
लिए भाई भाई के बीच युद्ध और बटवारे की परपम्परा शुरू हो गई। त्रेतायुग में हुए महाभारत के युद्ध ने मानवता का बहुत हनन किया और मनुष्यों में "देने के गुण " में कमी आती चली गई, मनुष्य देवता
ना रहकर सिर्फ इंसान रह गया।
हैवानियत है कि इंसानियत
किसकी
रही गलती
कहाँ हो गई कमी
इंसानियत
क्यों हैवानियत
होती जा रही है
दानवों की सी
नोच खसोट जारी है
कितनी द्रोपदी
पता नहीं
कहाँ कहाँ
दुशासन की
पकड़ में
बस कसमसा रही हैं
★★★★★★
आदरणीया कुसुम कोठारी
न जाने क्या हो रहा है
संस्कार बीते युग की कहानी बन चुके
सदाचार ऐतिहासिक तथ्य बन सिसक रहे
हैवानियत बेखौफ घुम रही
नई सदी मे क्या क्या हो रहा है
इंसान इंसानियत खो के इतरा रहा है
और ऊपर वाला ना देख रहा ना सुन रहा ना बोल रहा है
जाने क्या हो रहा है जाने क्या हो रहा है।
★★★★★★
आदरणीया अनीता सैनी
ड्योढ़ी पर बैठी इंसानियत
अदृश्य में दृश्य,
ड्योढ़ी पर बैठी इंसानियत,
मटमैले रंगों का पहन परिधान,
साँसों के बहाव में बहती,
अस्थियों में आशियाना अपना बनाया |
★★★★★★★
आदरणीया अनुराधा चौहान
(दो रचनाएँ)
★
इंसानियत को भूलकर
इंसानियत को ताक पर रखकर
हरदम उनका उत्पीड़न किया
बाहर तिरछी नज़र कर व्यंग्य कसे
ढहना ही था उस घर को एक दिन
संस्कार बिना खोखली थी उसकी नींव
★
घर एक मंदिर
बड़ों का आशीष अमृत बरसाए
जड़ों की मजबूत पकड़
बाँधे रिश्तों को बड़े प्यार से
नैतिक नियमों का मूल्य सिखाएँ
इंसानियत का मोल बताएँ
स्त्री का सम्मान जहाँ पर
बेटी की खुशियाँ वहाँ पर
प्रेम जिसका आधार प्रथम हो
बेटों को संस्कार दिए हों
★★★★★★
आदरणीया अभिलाषा चौहान
इंसानियत ही रीढ़ है...
इंसानियत ही रीढ़ है,
इस मानव समाज की।
होते हैं ऐसे लोग भी,
जो बचाते मानवता की लाज भी।
जिनके दम से ये समाज,
सिर उठाकर जी रहा।
जो स्वयं गरल नीलकंठ ,
बन के है पी रहा।
★★★★★
आदरणीया शुभा मेहता
इंसानियत ....
गुड्डे -गुडि़या खेल -खिलौने
खेलने थे जब ...
नोंच -नोंच कर खा गए
इंसान के खोल में
गिद्ध ,चील ,कौवे
कहाँ का इंसान
और कहाँ की इंसानियत ।
-*-*-*-
आज का यह हमक़दम का अंक
आपको कैसा लगा?
आपकी प्रतिक्रियाओं की
सदैव प्रतीक्षा रहती है।
हम-क़दम का अगला विषय
जानने के लिए कल का
अंक पढ़ना न भूले।
#श्वेता सिन्हा
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंकिसकी
रही गलती
कहाँ हो गई कमी
इंसानियत
क्यों हैवानियत
होती जा रही है
दानवों की सी
नोच खसोट जारी है
बेहतरीन अंक..
साधुवाद..
शानदार प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंशानदार संकलन |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंश्वेता ,बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति । मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार ।
जवाब देंहटाएंसोमवारीय हमकदम के पिचहत्तरवें खूबसूरत कदम की प्रस्तुति के साथ 'उलूक' की बकवास को भी जगह देने के लिये आभार श्वेता जी।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति इंसानियत के मलबे पर धर्म और मजहब की इमारते खड़ी है. .
जवाब देंहटाएंसटीक भुमिका
सभी रचनाकारों को असाधारण सृजन हेतु हार्दिक बधाई।
मेरी पुरानी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया /आभार।
सस्नेह।
इंसानियत पर इतनी मर्मस्पर्शी रचनाएँ पढ़ यकीन हो चला हैं ,अब भी इंसानियत पूरी तरह मरी नहीं हैं ,उसे जगाया जा सकता ,बेहतरीन प्रस्तुति सभी रचनाकारों को ढेरो शुभकामनाएं ,मेरे लेख को स्थान देने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संकलन ... हमेशा की लाजवाब प्रस्तुति हमकदम की ... सभी रचनाएँ अत्यंत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंअद्भुत, अनुपम रचनाओं का संकलन आज की हलचल ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं अनंत अशेष शुभकामनाएं ! हमकदम का यह सफ़र दिन ब दिन खुशनुमां होता जा रहा है ! सप्रेम वन्दे सखी !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार श्वेता जी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन हमक़दम की प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार श्वेता दी जी |
सादर
कई सालों से आपकों पढ़ता आया हूँ सर, मैंने भी हिन्दी में लिखने की शुरुआत की हैं. hihindi
जवाब देंहटाएंसुंदर रचनाओं का संगम।वाह भई वाह।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी
जवाब देंहटाएं