सादर अभिवादन
हलका नहीं न हुआ है मन अभी तक
होगा धीरे से ..ये मन भी न
उफनता जल्दी है...धिरियाता धीरे है
ईश्वर को जो अच्छा लगता है वही करता है
अपने मन का स्वामी है वो
चलिए चलें आज की रचनाओं की ओर...
उठो और फेंक दो तुम
जाल जो अलसा रहा
जो मिला जीवन से उसको
मन से तुम स्वीकार लो
धुँध आँखों से हटा लो
मन से सारे भ्रम मिटा लो
ज़िंदगी उर्वर जमीं है
कर्मों का श्रृंगार कर लो
पर कागज के इक टूकड़े में
ज़ोर इतना था
कि लिखावट उसकी
कहर बनकर गिरी,
कि जिसकी ठोकरों से
इमारत भरभराकर ढ़ह गई।
जिन्दा तो रहना चाहती थी
पर किसी के
चाहत की आग में
वो अनचाही ही
धू-धू कर जल गई॥
आँखों में तेज़, दहाड़ शेर -ए -हिंद की,
बौखलाहट में पाकिस्तान , दौड़ता नज़र आया,
सीमा के प्रखर प्रहरी सैनिकों का उत्साह,
आसमां की बुंलदियों को छूता नज़र आया |
सुबह-सुबह आज ... ये क्या !!..
बासी मुँह .... पर ...
स्वाद मीठा-मीठा
उनींदा शरीर ... पर ...
इत्र-सा महकता हुआ
अरे हाँ .. कल रात ..
सुबह होने तक
गले लगकर संग मेरे तुम
ईद मनाती रही और ...
उतर कर क्यूँ गगन से,
डूब जाता है सूरज,
आकर जमीं पर,
क्षितिज को,
क्यूँ चूम जाता है सूरज!
लाल से हैं भाल,
वो गगन है या है ताल,
है आँखों में हया, या नींद में ऊँघ जाता है सूरज!
अब बारी विषय की
पचहत्तरवें अंक का
विषय
इंसानियत
उदाहरण
या ये लिखूं की
पैसा पैसा और बस पैसा
कमाने की होड़ में
जीना भूल रहें है लोग
पर इन सब के बावजूद
आज भी इंसानियत कायम है
प्यार कायम है
और इसी वजह से चल रही है
ये दुनिया
तो बस मैं यही लिखना चाहती हूं
आदरणीय रेवा बहन की रचना
प्रेषण तिथि - 15 जून 2019
प्रकाशन तिथि - 17 जून 2019
प्रविष्ठियाँ ब्लॉग सम्पर्क फार्म द्वारा ही मान्य
बस आज यहीं तक
आदेश
यशोदा
बहुत अच्छी हैं दी सभी रचनाएँ।
जवाब देंहटाएंअच्छा संकलन।
मेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार।
मेरी तीन छोटी-छोटी रचनाओं को पाँचो लिंकों के आनन्द के 1425वें अंक में स्थान दे कर उत्साहवर्द्धन की लिए हार्दिक आभार आपका .... सभी ओजपूर्ण रचनाएं ... बेहतरीन संकलन ....
जवाब देंहटाएंसस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन की प्रस्तुतीकरण
बहुत सुंदर प्रस्तुति सहज भुमिका सभी रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह!!सुंदर ,मनमोहक प्रस्तुति!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन , सादर नमस्कार दी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन हलचल की प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचनाएँ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें
मेरी रचना को स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार आदरणीया दी जी |
सादर
सारे तरल तरल में घुल जायें जरूरी नहीं
जवाब देंहटाएंकुछ तैरते भी हैं और कुछ डूब जाते हैं
इस घुलने घुलाने के चक्कर में कई बार
भारी पत्थर कब खुद की तली में बैठ जाते है
पता तब चलता है जब पंख खुलते नहीं
और हम जमीन में खुद को बैठा हुआ पाते हैं
बहुत सुन्दर।
दार्शनिक भाव की भूमिका के साथ बहुत उम्दा संकलन, सादर....
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ रचनाओं का संगम।
जवाब देंहटाएंHindi Kahaniya With Moral values 100 Moral Stories in Hindi Best Collection of Moral Stories in Hindi For Kids With Moral values.
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