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रविवार, 9 जून 2019

1423....बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के साथ साथ बहुत जरूरी है, थोड़ा थोड़ा बेटी धमकाओ भी

सादर अभिवादन
भाई कुलदीप जी वैवाहिक कार्य में है
वे अगले सप्ताह भी नहीं रहेंगे

दुखी कर गया पिछला सप्ताह..
अनहोनिया बहुत हुई
तेल की बहुतायत है हमारे भारत में
सारे राजनीतिज्ञ अपने कानों में
ढ़ेरों तेल उड़ेल लिया है...बहरे हो गए हैं
और ज़ेड ब्लेक चश्मा भी पहना है
दिखाई  भी नहीं देता..
हमारे लेखक लिख तो सकते हैं...पर
कानून हाथ में नहीं ले सकते
यदि आतताइयों को जनता के सामने से
पैदल गुज़ारा जाए ...तो....सच में
मॉब-लिंचिंग हो जाएगी...

चलिए चलते हैं देखते हैं ब्लॉगों की चहल-पहल..


मीठा बचपन, गुलाबी हंसी,चहकती किलकारियां...
ये मैं किसकी बात कर रही हूं, कौन सा जमाना था वो जब ये हमारी जिंदगी की खूबसूरती को बढ़ाने का अहम हिस्सा हुआ करती थी.. आसिफा,गुड़िया, फलक, ट्विंकल, कठुआ, अलीगढ़, उज्जैन... और निरंतर क्रंदन, कसक,कुत्सित कृत्य और समाज में जुड़ता काला अध्याय...ये है आज का सच... नन्ही कोपलें, ललछोहीं रेशमी किसलय अंकुरिताएं...देखने भर से जो सकुचा कर सिमट जाए.. ऐसी कच्ची कोमल पंखुरियों को कुचलने वाला हमारा आज का समाज और निरंतर उबकाई देते घृणित समाचारों के बीच बेबस से हम... आखिर कब तक?आखिर क्यों?आखिर किस हद तक... कितना बर्दाश्त करें और क्यों करें? आलम यह है कि कहीं कोई गरीब बाप अपनी बेटी को साइकल पर भी ले जा रहा होता है तो मैं शक्की हो उठती हूं, देर तक घूरती रहती हूं, कहीं कोई गलत तो नहीं होने जा रहा है, क्या इस मासूम को बचाये जाने की जरूरत है?क्या यह सुरक्षित है, क्या यह असुरक्षित है... कितने क्या, क्यों और कैसे मेरे आसपास मंडराते हैं और मैं फिर आगे बढ़ जाती हूं, ये कैसा समाज,परिवेश, मूल्य और संस्कार है मेरे आसपास?




" मम्मा इतनी गर्मी है फुलस्लीव्स नहीं पहनेगे हम"
पर पुचकार कर दुलारकर किसी तरह मना लेती हूँ।
जब भी कोई बड़ा लड़का,मुहल्ले के भैय्या, अंकल या दादाजी उसके गालों को स्नेह से दुलराते हैं हँसकर उसे छेड़ते हैं तो मन में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगता है। अपना सारा अनुभव उनकी हरकत उनकी मंशा को समझने में लगा देती हूँ खोद-खोदकर बिटिया से पूछती हूँ उन्होंने क्या कहा?
वैसे तो वो ख़ुद ही दूसरों से कुछ नहीं लेती पर किसी ने कुछ दिया तो घर लाकर खाना ,सबसे पहले मुझे दिखाना ऐसा सिखाया है उसे।



बेटियां होती हैं कितनी प्यारी
कुछ कच्ची
कुछ पक्की
कुछ तीखी
कुछ मीठी
पहली बारिश से उठती
सोंधी सी महक सी
दूर क्षितिज पर उगते
सतरंगी वलय सी


Doll, Art, Abstract, Vintage, Girl
अब मैंने बेटी की शादी कर दी है,
विदा कर दिया है उसे,
पर गुड़िया को अपने साथ रखा है,
मुझे बेटी से ज़्यादा गुड़िया से प्यार है.


कैसे कर जाती है वो
प्यार, स्नेह, दुलार, कर्तव्यनिष्ठा
मान सम्मान, प्रतिष्ठा,
संघर्ष, जुझारूता, आत्मनिष्ठा
दुख, दर्द की पराकाष्ठा
कैसे सह जाती है वो


सांध्य आरती में,
जलती धूप सी ।
कुछ अनुभूत यादें,
जब भी आती हैं ।
मन के भूले-भटके, 
छोर महकने लगते हैं ।


अखबार 
रेडियो दूरदर्शन 
सब देख रहे हैं 
सब सही हो रहा है 
इनमें से कोई भी 
उसके लिये 
रोने नहीं जा रहा है 

बेटी 
कहलवाने 
का भाव उसके 
सनकी हो गये 
दिमाग में से 
नहीं निकल 
पा रहा है 
उसकी समस्या है
-*-*-
समस्या है..
मन भी नही है..
लिखने - पढ़ने का
और प्रस्तुति भी देनी है
सो बनानी पड़ी प्रस्तुति
बुझे मन से
सादर..
यशोदा

13 टिप्‍पणियां:

  1. आज की प्रस्तुति मन में वेदना उत्पन्न करती है.. निशब्द और दुखी करती हैं ऐसी घटनाएं । मैं भी एक माँ हूँ .. स्त्री हूँ.., मन व्यथित हो कहता है -हे ईश्वर ! जीव जगत से कलुषता और पाशविकता दूर कर हृदयों में निर्मलता और करूणा का संचार करो 🙏

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  2. करना बेराब होता जा रहा।

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  3. अमानविय ता के इस दौर में संवेदनाओं का जिस ढंग से पतन हो रहा है लग रहा है मानवता और न्याय सदा कटघरे में खड़ा रहेगा और पैशाचिक गतिविधियां यूं ही अट्टहास लगाती रहेगी।
    सामायिक अंक।

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  4. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति, सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

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  5. बहुत कुछ अनहोनी सा घटित हो रहा है। होता रहता है। बीच बीच में चिल्लाना शुरु किया जाता है और बन्द भी । नक्कारखानों की जय हो। आभार यशोदा जी 'उलूक' की बकबक को जगह देने के लिये।

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  6. हर एक रचनाकारो की लेखनी ने हर नारी के तड़प ,दर्द ,तकलीफ ,क्रोध ,विवशता को शब्द दे दिया हैं ,दर्द से अंतरात्मा फटी जा रही हैं और खुद को कितना असहाय महसूस कर रहे हैं हम ,अति का अंत होता हैं और इसका भी अंत जरूर होगा ,आप सबको सादर नमन

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  7. इस प्रकार की घटना होती रहती है पर किसी के कानों पर जूं तक नही रेंगती न्याय पालिका का न्याय करते करते वर्षों बिट जातें हैं।

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  8. ऐसी घटनाएँ मन को सुन्न और स्तब्ध कर जाती हैं।

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  9. तात्कालिन घटना के रोष को दर्शाती रचनाएँ......यशोदाजी आप वाकई बधाई की पात्र है ऐसे संकलन के लिये और मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिये आपका दिल से आभार

    जवाब देंहटाएं
  10. सुन्दर लिंक्स. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.

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  11. बेटी बचाओ बेटी बचाओ ये सरकारी अभियान नहीं बल्कि हम सभी की जिम्मेदारी और कर्तव्य है मैं भी आवाज उठता हूँ यहाँ hihindi

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