भाई कुलदीप जी वैवाहिक कार्य में है
वे अगले सप्ताह भी नहीं रहेंगे
दुखी कर गया पिछला सप्ताह..
अनहोनिया बहुत हुई
तेल की बहुतायत है हमारे भारत में
सारे राजनीतिज्ञ अपने कानों में
और ज़ेड ब्लेक चश्मा भी पहना है
दिखाई भी नहीं देता..
हमारे लेखक लिख तो सकते हैं...पर
कानून हाथ में नहीं ले सकते
यदि आतताइयों को जनता के सामने से
पैदल गुज़ारा जाए ...तो....सच में
मॉब-लिंचिंग हो जाएगी...
चलिए चलते हैं देखते हैं ब्लॉगों की चहल-पहल..
मीठा बचपन, गुलाबी हंसी,चहकती किलकारियां...
ये मैं किसकी बात कर रही हूं, कौन सा जमाना था वो जब ये हमारी जिंदगी की खूबसूरती को बढ़ाने का अहम हिस्सा हुआ करती थी.. आसिफा,गुड़िया, फलक, ट्विंकल, कठुआ, अलीगढ़, उज्जैन... और निरंतर क्रंदन, कसक,कुत्सित कृत्य और समाज में जुड़ता काला अध्याय...ये है आज का सच... नन्ही कोपलें, ललछोहीं रेशमी किसलय अंकुरिताएं...देखने भर से जो सकुचा कर सिमट जाए.. ऐसी कच्ची कोमल पंखुरियों को कुचलने वाला हमारा आज का समाज और निरंतर उबकाई देते घृणित समाचारों के बीच बेबस से हम... आखिर कब तक?आखिर क्यों?आखिर किस हद तक... कितना बर्दाश्त करें और क्यों करें? आलम यह है कि कहीं कोई गरीब बाप अपनी बेटी को साइकल पर भी ले जा रहा होता है तो मैं शक्की हो उठती हूं, देर तक घूरती रहती हूं, कहीं कोई गलत तो नहीं होने जा रहा है, क्या इस मासूम को बचाये जाने की जरूरत है?क्या यह सुरक्षित है, क्या यह असुरक्षित है... कितने क्या, क्यों और कैसे मेरे आसपास मंडराते हैं और मैं फिर आगे बढ़ जाती हूं, ये कैसा समाज,परिवेश, मूल्य और संस्कार है मेरे आसपास?
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समस्या है..
मन भी नही है..
लिखने - पढ़ने का
और प्रस्तुति भी देनी है
सो बनानी पड़ी प्रस्तुति
बुझे मन से
सादर..
यशोदा
आज की प्रस्तुति मन में वेदना उत्पन्न करती है.. निशब्द और दुखी करती हैं ऐसी घटनाएं । मैं भी एक माँ हूँ .. स्त्री हूँ.., मन व्यथित हो कहता है -हे ईश्वर ! जीव जगत से कलुषता और पाशविकता दूर कर हृदयों में निर्मलता और करूणा का संचार करो 🙏
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ...
जवाब देंहटाएंकरना बेराब होता जा रहा।
जवाब देंहटाएंअमानविय ता के इस दौर में संवेदनाओं का जिस ढंग से पतन हो रहा है लग रहा है मानवता और न्याय सदा कटघरे में खड़ा रहेगा और पैशाचिक गतिविधियां यूं ही अट्टहास लगाती रहेगी।
जवाब देंहटाएंसामायिक अंक।
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति, सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ अनहोनी सा घटित हो रहा है। होता रहता है। बीच बीच में चिल्लाना शुरु किया जाता है और बन्द भी । नक्कारखानों की जय हो। आभार यशोदा जी 'उलूक' की बकबक को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंहर एक रचनाकारो की लेखनी ने हर नारी के तड़प ,दर्द ,तकलीफ ,क्रोध ,विवशता को शब्द दे दिया हैं ,दर्द से अंतरात्मा फटी जा रही हैं और खुद को कितना असहाय महसूस कर रहे हैं हम ,अति का अंत होता हैं और इसका भी अंत जरूर होगा ,आप सबको सादर नमन
जवाब देंहटाएंइस प्रकार की घटना होती रहती है पर किसी के कानों पर जूं तक नही रेंगती न्याय पालिका का न्याय करते करते वर्षों बिट जातें हैं।
जवाब देंहटाएंऐसी घटनाएँ मन को सुन्न और स्तब्ध कर जाती हैं।
जवाब देंहटाएंतात्कालिन घटना के रोष को दर्शाती रचनाएँ......यशोदाजी आप वाकई बधाई की पात्र है ऐसे संकलन के लिये और मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिये आपका दिल से आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंवाह क्या सुंदर कविता लिखी What Is Computer In Hindi Full Tutorial
जवाब देंहटाएंबेटी बचाओ बेटी बचाओ ये सरकारी अभियान नहीं बल्कि हम सभी की जिम्मेदारी और कर्तव्य है मैं भी आवाज उठता हूँ यहाँ hihindi
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