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शुक्रवार, 3 मई 2019

1386...उम्र भर चुपचाप साथ चलती रहीं

स्नेहिल अभिवादन
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पिछले कुछ से एक नन्हीं चिड़िया पूरे घर का जायज़ा लेने में लगी थी, कभी बेडरूम की खुली खिड़की के परदों के पीछे से फुदक-फुदक कर पीली चोंच से परदे हटा-हटाकर झाँकती , फिर धीरे से इधर-उधर देखकर ट्यूब लाईट के ऊपर, कभी सिलिंग फैन के फैले डैनों पर, कभी कबर्ड के ऊपर की सँकरी जगह पर चक्कर लगाती,कभी रसोई की खिड़की से आकर वाटरप्यूरीफायर के पीछे घुसने का प्रयास करती ,ड्रॉइंग रुम की दीवार पर लगी बड़ी-सी घड़ी और लगभग हर शो-पीस का निरीक्षण कर चुकी थी अंततः
उसे पसंद आया बाथरूम के रोशनदान के नज़दीक लगा हुआ गीज़र।
बस शुरु हो गया घोंसला बनाने का सिलसिला,खूब चहक-चहक कर चुन-चुनकर मनोयोग से तिनके जोड़ने लगी  
पर कल सुबह मेरी सेविका ने कब उसे झाडू से बुहार दिया पता भी न चला।
पर चिड़िया कहाँ हार मानने वाली थी दुबारा तिनका जोड़ने लगी थोड़ी देर बाद और इस बार ड्रांइंग रुम की बड़ी-सी पेंटिंग के पीछे,जानती हूँ ये घोंसला भी टिकेगा नहींं पर ये भी पता है चिड़िया हार नहीं मानेगी कहीं भी और घोंसला जरूर बनायेगी।

कितनी प्रेरक होती है न एक नन्ही छोटी चिड़िया
धैर्य,मेहनत और लगन से हर परिस्थिति को अनुकूल करने का प्रयास करती है
और हम इंसान पलभर में ही अधीर हो जाते है। भाग्य,कर्म परिस्थितियों को कोसकर बदले की भावना से पीड़ित होकर मानवता भी याद नहीं रखते।

चलिये आज की रचनाएँ पढ़ते है-

स्वप्निल यात्रा

गंगोत्री के पारदर्शी जल-सा
तुम्हारे बहते मन में पल-पल
तलहट में लुढ़कता पाषाण-खण्ड-सा
अनवरत दिखूँगा मैं
ढलते सुरमई शाम की
धुंधलके की चादर में लिपटे
खोकर दोनों एक-दूसरे की
मासूम पनीली आँखों में
मुग्ध पलकें उठाए निहारेंगे

★★★★★

मैं तृष्णा की रौ में
जब भरता अँजुरी भर रेत
कंठ सिसक उठता
प्यासे नयनों में विरक्तता
बस एक आह् लिये
मन ही मन
दबाता रहता
उठते हुए ग़ुबार को !!!
★★★★★


अहसास होगा अपनी ख़ता का कभी तुम्हें
रूह इस खयाल से, बहल रही है मेरे दोस्त !

बहला रहे हैं दिल को गलतफहमियों से हम
कैसी बुरी आदत ये पल रही है मेरे दोस्त !
★★★★★

अगर तुम्हारे जीने का कोई मकसद नहीं, तो तुम मुर्दा हो ।
अगर तुम्हारे भीतर किसी के लिए संवेदना नहीं,
तो तुम मुर्दा हो ।
अगर इंद्रधनुष देखकर तुम कभी नहीं झूमे,
कोई कौतूहल नहीं उठा तुम्हारे मन में,
तो तुम मुर्दा हो ।
पैसे से बढ़कर यदि तुम्हें जीवन का अर्थ समझ में नहीं आया,
तो तुम मुर्दा हो ।
★★★★★

जो व्यस्त रहे नई मंज़िलों की तलाश में
भटकते रहे घाट-घाट
जबकि उन्हें याद रखना चाहिए था
उन दुआओं को
जो उम्र भर चुपचाप साथ चलती रहीं
लेकिन हुआ यूँ कि
वे सभी पल जो मिलकर जिए जा सकते थे कभी 
★★★★★

ख्वाब की तरह आ बसते हो आँखों में
भोर के साथ स्मृतियाँ भी धुंधला जाती हैं

बस…,आँखों की चुभन तुम्हारा अहसास जताती हैं
★★★★★
और चलते-चलते

इन सारे तर्क वितर्क में एक बात मुझे अच्छे से समझ आ गयी कि -हम मनुष्य जाति बड़े ही समझदार हैं ,ज्ञानी से ज्ञानी और मूर्ख से मुर्ख तक को और कुछ आये ना आये अपना दामन दोषमुक्त करना और दुसरो पर दोषारोपण करना बहुत अच्छे से आता हैं। "जी , हमने कुछ नहीं किया फला व्यक्ति और परिस्थिति की वजह से मेरे जीवन में ये दुःख ये परेशानी हैं "ये शब्द रोजमर्रा के दिनचर्या में हम कितनी बार बोलते होंगे हमे खुद भी याद नहीं रहता। हम अपनी हर परिस्थिति के लिए कभी अपने रिश्तेदारों को ,कभी अपने प्रिये जनो को ,कभी समाज को ,कभी सरकार को दोषी बता खुद का पला झाड़ लेते हैं और दुखो का रोना रोते रहते हैं।  दुसरो के किये कर्म हमारे  भाग्य को कैसे प्रभावित कर सकता हैं?
★★★★★
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#श्वेता सिन्हा

14 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात ! मन मोह लिया आपकी चिड़िया के प्रसंग
    ने । बहुत सुन्दर प्रस्तुति । मेरे सृजन को इस प्रस्तुति में स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर संकलन
    सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छूटकी
    प्रकृति से हम सीख लें तो ना अवसाद हो और ना आत्महत्या

    जवाब देंहटाएं
  3. कहीं भली है कटुक निबोरी
    कनक कटोरी की मैदा से
    ...
    हम बहता जल पीनेवाले
    हम पंछी उन्मुक्त गगन के..... इस प्रस्तुति की भूमिका के प्राणी कि यहीं ज़िन्दगी है। बस लगे रहना अद्भुत धैर्य के साथ नीड़ के निर्माण में, ठीक पांच लिंक के सुरुचिपूर्ण चर्चाकारों की तरह। बधाई और आभार इस सुंदर संकलन में।

    जवाब देंहटाएं
  4. गौरैये वाली प्रेरक रचना के सन्दर्भ में ..............
    इनकी हम मानव की तरह ना तो मांसल गद्देदार हथेली होती है और ना ही ...तथाकथित भाग्य की रेखा .. और ना ही रेखाओं को मात देने वाली क़ीमती पत्थरों की अँगूठी ..... शायद इसी लिए ये पशु-पक्षी तो स्वयं के भरोसे ही ज़िन्दादिली से जीते हैं... इनका भगवान भी तो नहीं होता है ... बस होती संग-संग प्रकृति ... है ना !?��

    जवाब देंहटाएं
  5. स्वप्निल यात्रा को इस अंक में स्थान दिलवाने और देने के लिए क्रमशः पाठकगण के मन और सम्पादन-दल को मेरे मन के अपार हर्ष में पूरी की पूरी साझेदारी ...☺

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह!!श्वेता ,सुंदर भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति । सही में हमें इन पक्षियों से बहुत कुछ सीखना चाहिए ।

    जवाब देंहटाएं
  8. भुमिका मतलब नित्य के कलापों पर विहंगम दृष्टि। कितने मनोयोग से प्रस्तुत किया है एक चिड़िया का कलाप और प्रबुद्धता से उसे पेश किया।
    शानदार लिंकों का शानदार संकलन बेमिसाल प्रस्तुति ।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  9. चिड़िया के इस क्रियाकलाप को हममे से शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने नहीं देखा हो लेकिन हम इंसान कहते तो अपने आप को ज्ञानी हैं लेकिन इतनी छोटी सी बात भी नहीं समझ पाते , " इनकी हम मानव की तरह ना तो मांसल गद्देदार हथेली होती है और ना ही ...तथाकथित भाग्य की रेखा .. और ना ही रेखाओं को मात देने वाली क़ीमती पत्थरों की अँगूठी ..... शायद इसी लिए ये पशु-पक्षी तो स्वयं के भरोसे ही ज़िन्दादिली से जीते हैं... इनका भगवान भी तो नहीं होता है ... बस होती संग-संग प्रकृति ... है ना !?�� " ये बात वाकई शानदार कही हैं आदरणीय ने। आपने बड़े ही खूबसूरती से इस प्रसंग की व्याख्या की हैं स्वेता जी ,बहुत ही उन्दा प्रस्तुति ,मेरी रचना को मान देने के लिए ,सहृदय धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत खूबसूरत भूमिका और चयनित सारी रचनाएँ भी मन पर छाप छोड़नेवाली हैं। मेरी रचना को मंच पर पाकर बहुत खुशी हुई। सस्नेह आभार प्रिय श्वेता।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत ही शानदार लिंक्स एवम प्रस्तुति ...

    जवाब देंहटाएं
  12. शानदार प्रस्तुतिकरण बेहद उम्दा लिंक संकलन...
    छोटी चिड़िया और उसके नीड़ पर बहुत ही सार्थक चिन्तन...।

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत अच्छी प्रस्तुति. मेरी पोस्ट को साझा करने के लिए आभार!

    जवाब देंहटाएं

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