1400 की ओर..बिना रुके..
सादर अभिवादन स्वीकारें..
आज अक्षय तृतिया है..अबूझ मुहूर्त
विवाह का..गाँव-खेड़े में आज भी
बाल - विवाह की परम्परा कायम है..
बालविवाह केवल भारत में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण
विश्व में होते आएं हैं और समूचे विश्व में भारत का बालविवाह में
दूसरा स्थान हैं। सम्पूर्ण भारत में विश्व के 40% बालविवाह होते हैं
और समूचे भारत में 49% लड़कियों का विवाह 18 वर्ष की
आयु से पूर्व ही हो जाता हैं। भारत में, बाल विवाह केरल राज्य,
जो सबसे अधिक साक्षरता वाला राज्य है, में अब भी प्रचलन में है।
यूनिसेफ (संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय बाल आपात निधि) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में नगरीय क्षेत्रों से अधिक बाल विवाह होते है। आँकड़ो के अनुसार, बिहार में सबसे अधिक 68%
बाल विवाह की घटनाएं होती है जबकि हिमाचल प्रदेश में सबसे
कम 9% बाल विवाह होते है।
अब चले ताजा-तरीन रचनाओं की ओर....
आत्मसमर्पण ....
सुगंध लुटाते, मुस्कुराते, लुभाते,
बलखाते, बहुरंग बिखेरे,
खिलते हैं यहाँ सुमन बहुतेरे,
नर्म-नर्म गुनगुने धूप में
जीवन के यौवन-वसंत में ।
पर तन जलाती, चिलचिलाती धूप में,
जीवन के वृद्ध-जेठ में
‘सखी’ खिलूँगा मैं बनकर ‘गुलमोहर’
तभी उधर से एक भिखारी गुजरा। उसने कटरा बढ़ाया एक- दो के सिक्के आने लगे उसने। इसके बाद सामने पेड़ के नीचे अपनी पोटली खोल वह तरमाल ( कचौड़ी एवं मिठाई ) गटकने लगा। बाबू- भैया कर यह भिखारी रोजाना सौ- डेढ़ सौ की आमदनी कर लेता है साथ ही भोजन अलग से ।
एक बूढ़ी काकी प्रतिदिन उस ठेलागाड़ी को धक्का दे, सड़क किनारे ले जाती है। जिसके टायर फटे हैं। उस पर जगह रस्सी लिपटी है। ऐसे ठेले को किस तरह से वह ढकेलती होगी , कभी आप भी हाथ लगा कर देखें न..।
वह इस पर खीरा रख कर बेचती है । एक और बूढ़ी मैया शहर कोतवाली के मोड़ पर एक छोटे से परात में पापड़ रख दिन भर बैठी रहती है। मुझे आलू के पापड़ पसंद है। सो, वहाँ ठहर जाता हूँ। डबडबाई आँखों से बुढ़िया माँ बार-बार बिक्री के उन चंद सिक्कों को सहेजते रहती है। वह कहती है - " बेटवा , तेल, आलू और जलावन लकड़ी सब का दाम बढ़ गया है। महंगाई सुरसा डाइन बनी खड़ी है। लेकिन, बिक्री घट गयी है। अब बच्चे पैकेट वाला कुरकुरे खाते हैं। बेटा कुछ दूसरा काम हो तो बता न।"
बिखरकर टूटने का डर .....
जहां के वास्ते मुझको बहुत कुछ सोचना है अब
मगर दिल तो हमेशा ही तुम्हारी राह जाता है
नहीं इसको समझ आये बना अंजान है फिरता
बहुत बेदर्द दिल मेरा मुझे हरदम रुलाता है
फल बड़े प्यारे मिलेंगे .....
शब्द मेरे दूर तुमसे
कंठ हैं अवरुद्ध ऐसे,
साँस लेना वायु के बिन
मीन हों बिन नीर जैसे;
साँसतों की कोठरी में, घुट रहा हूँ मैं अकिंचन,
ग्रास करने को सदा क्या, राह में प्यारे मिलेंगे?
गंदी सियासत ....
कभी जूते, कभी चप्पल, कभी स्याही, कभी थप्पड़,
बता हरबार क्यूँ सरजी, .यहाँ खाते तुम्हीं लप्पड़।
किया है पाप क्या तूने, किसी का दिल दुखाया है-
भला तुझको सदा ही क्यूँ, यहाँ देते सभी झप्पड़।।
ताजे अखबार की कतरन
यार
यस यस युग है
ये सारे
बुद्धिजीवी
यस यस
कर रहे हैं
‘उलूक’
की बुद्धि
भ्रष्ट हो चुकी है
यार
यस यस
नहीं कर रहा है
-*-*-*-
आज बस
अब बारी है हम-क़दम की
विषय
गुलमोहर
उदाहरण
गरमी की
अलसायी सुबह,
जब तुम बुनते हो
दिनभर के सपने
अपने मन की रेशमी डोरियों से,
रक्ताभ आसमान से
टपककर आशा की किरणें
भर जाती हैं घने गुलमोहर की
नन्हीं कलियों में,
कृति श्वेता सिन्हा
अंतिम तिथि- 11 मई 2019
प्रकाशन तिथि- 13 मई 2019
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यशोदा
आज अक्षय तृतिया है..अबूझ मुहूर्त
जवाब देंहटाएंविवाह का..
यह मुहूर्त और कुण्डली मैं समझ नहीं पाता! इन सबको ध्यान में रख सीता का राम से विवाह हुआ, फिर भी वनवास ही उनकी नियति रही।
मेरे लेख को स्थान देने के लिये धन्यवाद, प्रणाम यशोदा दी।
बेहद खूबसूरत प्रस्तुति यशोदा जी ।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगता है,
जवाब देंहटाएंघर के आँगन में,
छोटा सा मड़वा,
आम की शाखाओं से
ऊटपटांग सा बनाकर
घर के बच्चे अपने
गुड्डे-गुड़िया की शादी में
सारे मोहल्ले के बच्चों को..
आमंत्रित कर असली (वास्तविक)
कलेवा करवा कर नाच-कूद कर
आनन्दित देखकर माता पिता भी
खुशी से दहेज के रुप मे ढेरों खिलौने
दिया करते थे..
ये परम्परा आज भी जारी है
अच्छी प्रस्तुति..
सादर..
शुप्रभातम् सभी को ! आज के अंक में मेरी रचना ... सुबह-सुबह तरोताजा कर गई, ठीक गुलमोहर के फूलों की तरह। यशोदा दी' के साथ-साथ सभी लोगों को हार्दिक धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबाल-विवाह की तरह ना जाने कितनी कुरीतियों, अंधपरम्पराओं, अंधश्रद्धाओं की बदबूदार लाश की ताबूत ढो रहा है हमारा ये तथाकथित सभ्य, सुसंस्कृत और पढ़ा-लिखा समाज ....
आभार यशोदा जी 'उलूक' की बकबक को आज के सुन्दर अंक में जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंसस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना
जवाब देंहटाएंशानदार संकलन
अक्षय तृतीया की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई, बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति।
इतने सुंदर रचना संकलन के लिए आपका सहृदय आभार यशोदा जी 🙏
बेहतरीन प्रस्तुति ,यशोदा दी ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर
आदरणीय दीदी = सादर प्रणाम | आज की प्रस्तुती पर कुछ लिखने से खुद को रोक नहीं पा रही | सभी लिंक देखे बल्कि इनके साथ और भी बहुत रचनाएँ पढ़ी |सभी समाज में आज बाल विवाह बहुत ही निरर्थक प्रथा है |अछि जानकारी मिली | हमारे यहाँ हरियाणा में तो अब ये प्रथा ना के बराबर या कहें रही ही नही | अगर कोई करना चाहे तो उसके अड़ोसी पड़ोसी रिश्तेदार खड़े हो जाते हैं विरोध जताने के लिए | आज कोई चुपके से अपने बच्चो की बचपन में शादी कर भी दे तो बच्चे बड़े होकर प्रतिकार करते हैं वे इस विवाह को मानने से इंकार कर देते हैं | आज अक्षय तृतीया है पर ह मेरे मायके में इसे सतुवा तीज यानी सत्तू वाली तीज के रूप में मनाया जाता है | आज के दिन नयी गेहूं के सत्तू से शुरुआत कर नये अनाज का स्वागत किया जाता है |आज के सभी लिंक लाजवाब | सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें और आपको हार्दिक बधाई इस सुंदर प्रस्तुतिकरण के लिए |सादर --
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार प्रस्तुति भुमिका बहुत महत्वपूर्ण है सत्य के करीब। सभी रचनाकारों को बधाई
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं बहुत सुंदर है।
पंकज जी के ब्लॉग पर टिप्पणी नही दी जा रही है ।
बहुत शानदार प्रस्तुति भुमिका बहुत महत्वपूर्ण है सत्य के करीब। सभी रचनाकारों को बधाई
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं बहुत सुंदर है।
पंकज जी के ब्लॉग पर टिप्पणी नही दी जा रही है ।
शुभ साँझ दी:)
जवाब देंहटाएंआज की भूमिका मुझे बहुत पसंद आयी।
बाल-विवाह समाज की विचारणीय कुरीति है...जागरूकता
की आवश्यकता है।
सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी।
एक बेहद सुरुचिपूर्ण सराहनीय प्रस्तुति दी।
सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंShandar prastuti
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक संकलन शानदार प्रस्तुतिकरण...
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं
जवाब देंहटाएं