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पिछले कुछ से एक नन्हीं चिड़िया पूरे घर का जायज़ा लेने में लगी थी, कभी बेडरूम की खुली खिड़की के परदों के पीछे से फुदक-फुदक कर पीली चोंच से परदे हटा-हटाकर झाँकती , फिर धीरे से इधर-उधर देखकर ट्यूब लाईट के ऊपर, कभी सिलिंग फैन के फैले डैनों पर, कभी कबर्ड के ऊपर की सँकरी जगह पर चक्कर लगाती,कभी रसोई की खिड़की से आकर वाटरप्यूरीफायर के पीछे घुसने का प्रयास करती ,ड्रॉइंग रुम की दीवार पर लगी बड़ी-सी घड़ी और लगभग हर शो-पीस का निरीक्षण कर चुकी थी अंततः
उसे पसंद आया बाथरूम के रोशनदान के नज़दीक लगा हुआ गीज़र।
बस शुरु हो गया घोंसला बनाने का सिलसिला,खूब चहक-चहक कर चुन-चुनकर मनोयोग से तिनके जोड़ने लगी
पर कल सुबह मेरी सेविका ने कब उसे झाडू से बुहार दिया पता भी न चला।
पर चिड़िया कहाँ हार मानने वाली थी दुबारा तिनका जोड़ने लगी थोड़ी देर बाद और इस बार ड्रांइंग रुम की बड़ी-सी पेंटिंग के पीछे,जानती हूँ ये घोंसला भी टिकेगा नहींं पर ये भी पता है चिड़िया हार नहीं मानेगी कहीं भी और घोंसला जरूर बनायेगी।
कितनी प्रेरक होती है न एक नन्ही छोटी चिड़िया
धैर्य,मेहनत और लगन से हर परिस्थिति को अनुकूल करने का प्रयास करती है
और हम इंसान पलभर में ही अधीर हो जाते है। भाग्य,कर्म परिस्थितियों को कोसकर बदले की भावना से पीड़ित होकर मानवता भी याद नहीं रखते।
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चलिये आज की रचनाएँ पढ़ते है-
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स्वप्निल यात्रा
तुम्हारे बहते मन में पल-पल
तलहट में लुढ़कता पाषाण-खण्ड-सा
अनवरत दिखूँगा मैं
ढलते सुरमई शाम की
धुंधलके की चादर में लिपटे
खोकर दोनों एक-दूसरे की
मासूम पनीली आँखों में
मुग्ध पलकें उठाए निहारेंगे
रूह इस खयाल से, बहल रही है मेरे दोस्त !
बहला रहे हैं दिल को गलतफहमियों से हम
कैसी बुरी आदत ये पल रही है मेरे दोस्त !
अगर तुम्हारे भीतर किसी के लिए संवेदना नहीं,
तो तुम मुर्दा हो ।
अगर इंद्रधनुष देखकर तुम कभी नहीं झूमे,
कोई कौतूहल नहीं उठा तुम्हारे मन में,
तो तुम मुर्दा हो ।
पैसे से बढ़कर यदि तुम्हें जीवन का अर्थ समझ में नहीं आया,
तो तुम मुर्दा हो ।
भटकते रहे घाट-घाट
जबकि उन्हें याद रखना चाहिए था
उन दुआओं को
जो उम्र भर चुपचाप साथ चलती रहीं
लेकिन हुआ यूँ कि
वे सभी पल जो मिलकर जिए जा सकते थे कभी
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कल का अंक पढ़ना न भूले
कल आ रही हैंं विभा दी
अपनी खास प्रस्तुति लेकर।
#श्वेता सिन्हा
सुप्रभात ! मन मोह लिया आपकी चिड़िया के प्रसंग
जवाब देंहटाएंने । बहुत सुन्दर प्रस्तुति । मेरे सृजन को इस प्रस्तुति में स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार ।
बहुत सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंसस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छूटकी
प्रकृति से हम सीख लें तो ना अवसाद हो और ना आत्महत्या
कहीं भली है कटुक निबोरी
जवाब देंहटाएंकनक कटोरी की मैदा से
...
हम बहता जल पीनेवाले
हम पंछी उन्मुक्त गगन के..... इस प्रस्तुति की भूमिका के प्राणी कि यहीं ज़िन्दगी है। बस लगे रहना अद्भुत धैर्य के साथ नीड़ के निर्माण में, ठीक पांच लिंक के सुरुचिपूर्ण चर्चाकारों की तरह। बधाई और आभार इस सुंदर संकलन में।
गौरैये वाली प्रेरक रचना के सन्दर्भ में ..............
जवाब देंहटाएंइनकी हम मानव की तरह ना तो मांसल गद्देदार हथेली होती है और ना ही ...तथाकथित भाग्य की रेखा .. और ना ही रेखाओं को मात देने वाली क़ीमती पत्थरों की अँगूठी ..... शायद इसी लिए ये पशु-पक्षी तो स्वयं के भरोसे ही ज़िन्दादिली से जीते हैं... इनका भगवान भी तो नहीं होता है ... बस होती संग-संग प्रकृति ... है ना !?��
स्वप्निल यात्रा को इस अंक में स्थान दिलवाने और देने के लिए क्रमशः पाठकगण के मन और सम्पादन-दल को मेरे मन के अपार हर्ष में पूरी की पूरी साझेदारी ...☺
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर
वाह!!श्वेता ,सुंदर भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति । सही में हमें इन पक्षियों से बहुत कुछ सीखना चाहिए ।
जवाब देंहटाएंभुमिका मतलब नित्य के कलापों पर विहंगम दृष्टि। कितने मनोयोग से प्रस्तुत किया है एक चिड़िया का कलाप और प्रबुद्धता से उसे पेश किया।
जवाब देंहटाएंशानदार लिंकों का शानदार संकलन बेमिसाल प्रस्तुति ।
सभी रचनाकारों को बधाई।
चिड़िया के इस क्रियाकलाप को हममे से शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने नहीं देखा हो लेकिन हम इंसान कहते तो अपने आप को ज्ञानी हैं लेकिन इतनी छोटी सी बात भी नहीं समझ पाते , " इनकी हम मानव की तरह ना तो मांसल गद्देदार हथेली होती है और ना ही ...तथाकथित भाग्य की रेखा .. और ना ही रेखाओं को मात देने वाली क़ीमती पत्थरों की अँगूठी ..... शायद इसी लिए ये पशु-पक्षी तो स्वयं के भरोसे ही ज़िन्दादिली से जीते हैं... इनका भगवान भी तो नहीं होता है ... बस होती संग-संग प्रकृति ... है ना !?�� " ये बात वाकई शानदार कही हैं आदरणीय ने। आपने बड़े ही खूबसूरती से इस प्रसंग की व्याख्या की हैं स्वेता जी ,बहुत ही उन्दा प्रस्तुति ,मेरी रचना को मान देने के लिए ,सहृदय धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत भूमिका और चयनित सारी रचनाएँ भी मन पर छाप छोड़नेवाली हैं। मेरी रचना को मंच पर पाकर बहुत खुशी हुई। सस्नेह आभार प्रिय श्वेता।
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार लिंक्स एवम प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुतिकरण बेहद उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंछोटी चिड़िया और उसके नीड़ पर बहुत ही सार्थक चिन्तन...।
बहुत अच्छी प्रस्तुति. मेरी पोस्ट को साझा करने के लिए आभार!
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