निभानी होगी हमें भी, वफ़ा की वही रीत फिर.....दिलबाग सिंह विर्क
बदनाम हो न जाए इश्क़ कहीं, मर मिटे थे लोग
निभानी होगी हमें भी, वफ़ा की वही रीत फिर।
आदमियत पर मज़हबों को क़ुर्बान करके देखो
वादियों में गूँजेगा, अमनो-चैन का संगीत फिर।
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शुभ प्रभात रवींद्र भाई..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक..
आभार.
सादर.।
सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति बहुत सुंदर रचनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संकलन !
जवाब देंहटाएंवाह क्या लिखा है आदमियत पर मजहब को कुर्वान करते देखो।वादियों में गुंजेगा अमनों चैन का संगीत अन्य सभी रचनाएँ बेहतरीन हैं सभी रचनाकारों को बधाई। सादर
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति सुन्दर पठनीय लिंक का संकलन...
जवाब देंहटाएंदो दिन से अतिव्यस्तता के चलते ब्लॉग पर न आ सकी....मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद रविन्द्र जी!
सादर आभार...
सराहनीये प्रस्तुति ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद सर ,क्षमा चाहती हूँ देर से उपस्थित होने के लिए ,सादर नमन
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