हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त, 1924 को हुआ था।
वे हिंदी साहित्य में अपने व्यंग्य और कटाक्ष के लिए जाने जाते हैं। उनके विचारों में समाज, राजनीति, और मनुष्य के जीवन के प्रति गहरी समझ और आलोचनात्मक दृष्टिकोण झलकती है। उन्होंने अपने व्यंग्य के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों, भ्रष्टाचार, और पाखंड पर तीखा प्रहार किया है।
व्यंग्य लेखन अपेक्षाकृत कठिन विधा है, जिसमें अगर सावधानी न बरती जाए, तो यह भौंडा हास्य बन जाता है। लेकिन हरिशंकर परसाई ने इसमें संतुलन बैठाकर उसे हल्के-फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से बाहर निकालकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में केवल गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं, बल्कि वे हमें सामाजिक वास्तविकताओं के बारे में सोचने पर मज़बूर करती हैं।
आइये उनके लिखे कुछ उद्धरण पढ़ते हैं -
* "इस देश के बुद्धिजीवी शेर हैं, पर वे सियारों की बरात में बैंड बजाते हैं"।
*"राजनीति में शर्म केवल मूर्खों को ही आती है"।
*"न्याय को अंधा कहा गया है, मैं समझता हूं न्याय अंधा नहीं, काना है, एक ही तरफ देख पाता है".
*"बेइज़्ज़ती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लो तो आधी इज़्ज़त बच जाती है".
* ईमानदारी कितनी दुर्लभ है कि कभी-कभी अख़बार का शीर्षक बनती हैं।





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ईमानदारी कितनी दुर्लभ है कि
जवाब देंहटाएंकभी-कभी अख़बार का शीर्षक बनती हैं।
बेहतरीन अंक
आभार माल देने के लिए
वंदन
ईमानदारी कितनी दुर्लभ है कि
जवाब देंहटाएंकभी-कभी अख़बार का शीर्षक बनती हैं।
बेहतरीन अंक
आभार मान देने के लिए
वंदन
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार श्वेता जी सादर
जवाब देंहटाएंआप यह अलख अभी भी जगाए बैठे हैं, जानकर प्रसन्नता हुई। सादर 🙏
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