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रविवार, 10 अगस्त 2025

4476 ...कबूतर है सोच ही लेना खाली

 सादर अभिवादन


राखी कह या श्रावणी, पावन यह त्योहार।
कच्चे धागों से बँधा ,भाई बहन का प्यार।।

थाली लेकर शगुन की,बहन सजाये भोर।
रोली से टीका किया, बाँधी रेशम डोर।।

और भी है... वो भी आएगा पर शैनेः शैनेः



‘उलूक’ देखना तुझ को भी है
आंखें खुली भी रखनी है
कबूतर है सोच ही लेना खाली
कह नहीं देना जरा सा भी
मंजूरे खुदा होता है |




“अरे ! नहाए नहीं अभी तक ? जल्दी राखी बँधवा लो देखो तुम्हारी छोटी बहन सुबह से भूखी बैठी है !”
बड़ी खातिर होती थी उस दिन हमारी ! राखी बाँधने के बाद शगुन के पाँच रुपये मिला करते थे ! पाँच रुपये भैया देते पाँच रुपये बाबूजी ! कुछ अपनी गुल्लक से बचत किये हुए पैसे निकाल कर हम दूसरे ही दिन बाज़ार पहुँच जाते  उन दिनों आजकल की तरह मँहगे-मँहगे सूट साड़ियों या उपहारों का फैशन नहीं था






आप हुक्मरान हैं मालिक हैं आपकी कलम में बहुत ताकत है साब एक हस्ताक्षर पर कितनी ज़िंदगियां टिकी हैं एक गुज़ारिश है साब कलम को स्याही में डुबोइए रक्त में नहीं दुआ मिलेगी साब आह नहीं




अगर आदमी ठान ले, तो वह कुछ भी कर सकता है। वह समाज का भला कर सकता है। यदि वह बुरा आदमी हुआ, तो वह समाज का नुकसान भी कर सकता है। यह व्यक्ति के स्वभाव पर निर्भर करता है। कभी एक समय था कि पोलियो वायरस का पूरी दुनिया में आतंक था। कारण यह था कि उसका कोई इलाज नहीं था। पूरी दुनिया में लाखों लोग हर साल पोलिया का शिकार होकर अपंग जीवन व्यतीत करते थे। उस समय लोग यह भी सोचते थे कि पोलियो रोगी के संपर्क में आने से यह वायरस फैलता है। उन्हीं दिनों 28 अक्टूबर 1914 को न्यूयार्क में डेनियल और डोरा साल्क के घर में बेटे का जन्म हुआ। उन्होंने अपने बेटे का बड़े प्यार से नाम रख






नहीं साध सका भद्र जिस दनुज को
वो बनता खुद सब्यसाची है,
लगे है दिल्ली दानव सी जिनको
उन्हें जन्नत लगे कराची है।






आज बस
सादर वंदन

3 टिप्‍पणियां:

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