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शुक्रवार, 8 अगस्त 2025

4474....चुनना पड़ता है मृत्यु


शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
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आँखों में विकास की तिलिस्मी पट्टी लगाए 
अपनी  विलासिताओं के लिए
प्रकृति के वर्जित प्रदेशों में आतातायी बन
प्रकृति के विश्वास का जमकर दोहन किया मैंने,
दीमक के शहर बसाकर चाट रही जीवन को
मैं जानकर भी अनजान बनी रही कि...
धीरे-धीरे सिकुड़ती, सिमटती प्रकृति
अपनी बची-खुची शक्ति समेटने के लिए
जब-जब अगड़ाई लेती है
खोखली हुई धरती 
अपना संतुलन खो देती है।
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आज की रचनाएँ-

विछोह में प्राण गँवाने वालों की के प्रति खबर पढ़कर 
हम नहीं माप सकते हैं उनकी पीड़ी, उनका प्रेम 
कई बार प्रेम को साबित करने के लिए 
चुनना पड़ता है मृत्यु 
जिनकी कहानियों से भरे पड़े हैं इतिहास के पन्ने ! 

हर किसी को करना है...


कविता लिखने में
किसने कह दिया तुझसे
सवाल होने जरूरी होते हैं
रहने भी दे
होना नहीं है कुछ
कुछ भी नहीं

कुछ होने के लक्षण
कुछ करने वालों के
लक्षणों से मिलाए जाते हैं
जैसे कुण्डली के
कुछ गुण होते हैं
कुछ भी नहीं



मुझे नहीं आया प्रेम साबित करना



शायद इसलिए
हर बार तुम्हें पाने की जगह
मैंने तुम्हें होने दिया —
जैसे चुपचाप
कोई दीपक रख आता है
मंदिर की देहरी पर
बिना मन्नत माँगे।
मैंने नहीं पूछा कभी
कि तुम क्यों दूर हो,
क्योंकि नज़दीकी मापने का हुनर
मेरे प्रेम में था ही नहीं।


रक्षाबंधन

जो भी हो सावन की पूर्णिमा को मनाए जाने वाले इस त्यौहार का भाई-बहनों को साल भर इन्तजार रहता है। जो दूर-दराज रहने वालों को इसी बहाने मिलने का अवसर मुहैय्या करवा रिश्तों में फिर गर्माहट भर देता है। पर आज कहां बच पा रहा है "ये राखी धागों का त्यौहार'',  आधुनिकीकरण के इस युग में बाजार की कुदृष्टि हर भारतीय त्यौहार की तरह इस पर भी पड़ चुकी है जो सक्षम लोगों को मंहगे-मंहगे उपहार, जिनकी कीमत करोड़ों रुपये लांघ जाती है, खरीदने को उकसा कर इस पुनीत पर्व की गरिमा और पवित्रता को खत्म करने पर उतारू है। जरुरत है जागरूक होने की, इन विसंगतियों को रोकने की !


कैलाश मानसरोवर यात्रा

वैसे तो मान सरोवर के तट पर एक आश्रम बन गया है लेकिन उसमें यात्री दल रुका हुआ था । हमें टैन्टों में रुकना था । ष्शीघ्रता से ट्रक में से  सामान उतार कर ष्शेरपाओं ने टैन्ट खड़े कर दिये । चार बाई छः के इस टैन्ट में दो दो व्यक्ति के रुकने की व्यवस्था थी । एक बड़ा टैन्ट भोजन व्यवस्था के लिये ख़ड़ा कर दिया गया । शाम झुकने को आई स्नान की ष्शीघ्रता थी । हल्की हल्की हवा चल रही थी । दाहिनी ओर  कैलाष पूर्ण गरिमा से खड़ा बादलों से बात कर रहा था। टैन्ट में सामान रख स्नान के कपड़े लेकर हम मान सरोवर की ओर बढ़  लिये ।

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