शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अभिलाषा चौहान जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
रविवारीय अंक में पढ़िए ब्लॉगर डॉट कॉम पर प्रकाशित चंद रचनाएँ-
कभी कुछ सोचकर नहीं
यूँही एक पल में लिया हुआ
फैसला!
वो वक़्त भी आ गया जब
सीखे हुए कला का करना है
प्रदर्शन!
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बालक संस्कारी बनें,रखें हमेशा ध्यान।
चलें सदा सद् मार्ग पर,और बनें गुणवान।
और बनें गुणवान,लक्ष्य मनचाहा पाएँ।
उत्तम रखें चरित्र,देश का मान बढ़ाएँ।
कहती अभि हिय बात,यही भावी के पालक।
करें राष्ट्र निर्माण,बनें ऐसे सब बालक।
अक्सर ढलते दिन के साथ
उतरती है भीतर एक गाढ़ी चुप्पी
तब अपने से भी पराये हुए क्लान्त मन
के पास
लाज़िम है भाषा का चुक जाना,
शब्दों का हाथ छूट जाना....
कुछ इसी तरह एक भारी सी चुप लिये
उतरती है कोई-कोई शाम भी धीरे-धीरे
जैसे हो किसी बूढ़े सपने की चादर....
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बेली-चमेली,उङहुल कलिया, तोड़ी-तोडी लैलूं डलिया
केबङिया..........
गङी-छुहाङा, दाखिल मुनक्का,भरी-भरी लैलूं थरिया
केबङिया..........
धूप-दीप-कर्पूर
जलाऊं,सभे मिली सांझ के बेरिया,
केबङिया,..............
मैया अइहा
हमर दुअरिया,अपराध से बाढ़ूं डगरिया,
केबङिया...............
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भ्रष्टाचारियों से बहुत दूर थे बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट-मनीष कौशिक
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव

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