सादर अभिवादनसखी पम्मी जी प्रवास पर हैंसो जवाबदारी निभाना परम कर्तव्य हैदेखिए आज क्या हैये लगातार तीसरी प्रस्तुति है.....शब्दों को नाकाफी देखमैं तुम तक पहुँचाना चाहता हूंकुछ स्पर्शलेकिन केवल शब्द ही हैंजो इन दूरियों को पार करपरिन्दों से उड़ते पहुँच सकते हैं तुम तक- पुरुषोत्तम अग्रवाल
जीवन एक पहेली जैसा ! .....अनीता जी
छोटा मन विराट हो फैले
ज्यों बूंद बने सागर अपार,
नव कलिका से कुसुम पल्लवित
क्षुद्र बीज बने वृक्ष विशाल !
मूँदी पलकों से ... सुबोध सिन्हा
धुँधलके में जीवन-संध्या के
धुंधलाई नज़रें अब हमारी,
रोम छिद्रों की वर्णमाला सहित
पहले की तरह पढ़ कहाँ पाती हैं भला
बला की मोहक प्रेमसिक्त ..
कामातुर मुखमुद्राओं की वर्तनी तुम्हारी ..
आसन नहीं है पिता होना ..... अरुण साथी
हर तरह से खैरियत है ,होनी भी चाहिए,
गर, जेठ की दोपहरी में कुछ खास मिल जायें,
तो फिर क्या बात है..!!
पर....
कहॉं आसान होता है,
सुप्रभात! निज कर्त्तव्य के प्रति आपकी निष्ठा के लिए साधुवाद! शानदार अंक, 'मन पाये विश्राम जहां को' शामिल करने हेतु आभार यशोदा जी!
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति सभी लिंक्स उम्दा एवं पठनीय।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई ए्वं शुभकामनाएं ।