शीर्षक पंक्ति :आदरणीय शांतनु सान्याल जी की रचना से.
सादर अभिवादन
आकस्मिक (अस्त-व्यस्त ) रविवारीय अंक में पाँच पसंदीदा रचनाओं के लिंक्स-
कविता | और हम हैं ख़ुश | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
वो सभी तर्क
दर्शन हैं सतही हिमखंड से,
टूट जाते हैं अपने
आप ही ख़ुद
के बनाए
गए
वज़नी आदर्श - मापदंड से,गूंज को धरती गगन के मौन
बरसों से था कुंठित दानव
पशुता जैसा ही था संस्कार
स्वार्थी कपटी था अंतर से
मन से दरिद्र भी था अपार.
नित्य कुकृत्य करता रहता था
नित्य बहाता रक्त की धार
अस्थि नोच खाता चंडाल
सुनता नहीं भीषण चीत्कार.
वाह.बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबेहद बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर
बेहद बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर
वाह!बहुत खूबसूरत अंक अनुज रविन्द्र जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअत्यधिक सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपका हृदयतल से आभार आदरणीया यशोदा जी, सभी रचनाएं अद्वितीय हैं शुभकामनाओं सह।
जवाब देंहटाएंजवाब देंहटाएं
सभी रचनाएं एकसे बढ़ कर एक हैं
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