जय मां हाटेशवरी....
इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा
आज विश्व पर्यावरण दिवस है.....
पानी की कीमत हम तब तक नहीं समझ पाए,
जब तक कि वह बोतलों में बिकने न लगा,
ऑक्सीजन की कीमत तब तक नहीं समझ पाए,
जब तक कि इसका लेवल कम न हो गया
और ये भी डब्बों में बिकने लगा…
स्वच्छ और शुद्ध पर्यावरण की कीमत को समझे,
अन्यथा इसके भयंकर परिणाम हो सकते हैं.
विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
अब पढ़िये आज के लिये मेरी पसंद.....
किससे शर्म है
कुछ तुम भुला देना ख़ताएँ,कुछ हम भी भुलाएंगे ,
रिश्ते की टूटती साँसों में,नए प्राणों को बसाएंगे ,
जब लड़ने में न थी झिझक,तो मिलने में कैसी है?
ये किसकी है परवाह तुम्हें,और किससे शर्म है?
जिन्दगी ! समझा तुझे तो मुस्कराना आ गया
क्यों कहें संघर्ष तुझको, ये तो तेरा सिलसिला ।
नियति निर्धारित सभी , फिर क्या करें तुझसे गिला ।
सत्य को स्वीकार कर जीना जिलाना आ गया ।
जिंदगी ! समझा तुझे तो मुस्कुराना आ गया ।
चाँद निकलने से पहले - -
लहराकर, उड़ चली हों जैसे रंगीन
तितलियाँ पंखों में समेटे
निशिगंधा की सुरभि,
न रहो सीमान्त
की तरह
उदास,
कंटीली झाड़ियों में उलझ कर, कि मैंने
बड़ी चाहत से देखा है तुम्हें शाम
ढलते, ज़िन्दगी मुख़ातिब
आग्नेयगिरि पर गौरेया (डायरी शैली)
आज छोटी की भी शादी हो गयी। दीदी की शादी 2004 में हो चुकी है। ससुराल से माँगकर ले गयी बहनें मायके के हिस्से का सुख पा रही हैं। दीदी और छोटी दोनों बहनों
की जिम्मेदारी अच्छे से निभा लेने का सुकून है। आसानी से दोनों का पेट भर रहा है
बस! अब अपनी नौकरी से केवल अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी है। शादी में आए नकारा चचेरे भाईयों ने संग रहने की इच्छा प्रकट की। सोचना होगा क्या किया जाए। माँ के
दोनों लाड़ले फ़ुर्र हो चुके हैं। जबसे संघ लोक सेवा आयोग में मेरी नौकरी लगी है तबसे मैं पूजनीय हो गयी हूँ। क्या सच में दया का सबसे छोटा कार्य सबसे बड़े इरादे
से अधिक मूल्यवान है!
एक प्रेम गीत -दरपन ही देख रहा सोलह श्रृंगार
हरे -भरे
मौसम का
रंग बियाबान का,
इत्र -फूल की
खुशबू
रंग चढ़ा पान का,
शानदार
जवाब देंहटाएंवजनदार
बेहतरीन अंक
आभार आपका
सादर
शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउम्दा एवं पठनीय लिंकों से सजी लाजवाब प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु सादर आभार एवं धन्यवाद ।