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मंगलवार, 6 जून 2023

3780...कट गया जंगल कि जिसमें घूमती थी एक हिरणी...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ.(सुश्री) शरद सिंह जी की रचना से। 

अभिवादन।

मंगलवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ।

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

विश्व पर्यावरण दिवस | शायरी | खो गया वो घाट | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कट गया जंगल कि जिसमें घूमती थी एक हिरणी

पंछियों के साथ उसने प्रिय हिरण के स्वर सुने थे।

वो नदी, झरना, वो पोखर, सूख कर रेतिल हुए हैं

कौमुदी और शंख, सीपी भी वहीं जा कर चुने थे।

विश्व पर्यावरण दिवस पर शुभकामनाएँ

मरुथल मरुथल पेड़ लगायें

हरे भरे वन जंगल पाएँ,

बादल पंछी मृग शावक सब

कुदरत देख-देख हर्षाये!

हृदय स्पंदन बनाम पर्यावरण दिवस...

कुछेक हिम्मत करने वाले अब विद्युत शवदाह गृह में जलने की बात करते हैं, वर्ना आडम्बरी तथाकथित सनातनियों को तो सात या नौ मन लकड़ी जलाए बिना मोक्ष की प्राप्ति ही नहीं होगी .. शायद ...

घनेरी घटाओं का आलयमेघालय–4

बाहर इतनी रोशनी हो रही थी जैसी आगरा में सुबह के साढ़े छह सात बजे होती है! तब हमने इस बात को समझा कि यह तो भारत का उत्तर पूर्वी इलाका है! यह उगते सूरज का देश है! यहाँ सूर्योदय जल्दी होता है और प्रकृति के नैसर्गिक सौन्दर्य से परिपूर्ण इस अछूते हिस्से में तो और भी जल्दी होता है क्योंकि यहाँ उसकी रोशनी को रोकने के लिए गगनचुम्बी इमारतों के जंगल जो नहीं उगे हुए हैं!

चलते-चलते पढ़िए एक रोचक लघुकथा जो चित्रित करती है कि हमारा बीता समय ऐसा भी था...

आग्नेयगिरि पर गौरेया (डायरी शैली)

आज दीदी के संग मैंने युवा-बुजुर्गों के लिए सन्ध्या-रात्रि कोचिंग सेन्टर खोल लिया। अत्यधिक युवती-स्त्री-महिलाओं की उपस्थिति देखकर अच्छा लगा। पापा पर भार कम होगा और अब हम तीनों बहनें अपना पेट भर पायेंगीं। पापा के स्तर को देखते हुए कोई कल्पना भी नहीं करता होगा कि हमारे पेट में दाना नहीं होते!

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


14 टिप्‍पणियां:

  1. आडम्बरी तथाकथित सनातनियों को तो सात या नौ मन लकड़ी जलाए बिना मोक्ष की प्राप्ति ही नहीं होगी .. शायद ...
    वजनदार प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी ! सुप्रभातम् सह नमन, वो भी मन से 😊, सुबह-सुबह मेरी बतकही को वजनदार कहने के लिए .. वो भी बतकही के उस वाक्य के साथ, जिनकी चर्चा भर करने से निरक्षर बेचारे तो निरक्षर, अनपढ़ ... हमारा तथाकथित बुद्धिजीवी समाज भी झिड़क देता है या आगबबूला हो उठता है मानो वह कभी मरेगा ही नहीं .. शायद ...☺☺☺

      हटाएं
  2. शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. जी ! नमन संग आभार आपका .. मेरी बतकही को अपनी प्रस्तुति के लायक समझ कर इस प्रतिष्ठित मंच पर स्थान देने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  4. ले लोट्टा !!! हम तो भोरे-भोरे, बिहारी बोली में कहें तो .. एकदम से अलबलाइए गए आपकी भूमिका में , भूलवश ही सही, गुरुवारीय अंक पढ़ के .. दरअसल मंगलवार यानि आज मेरी धर्मपत्नी मेरी अम्मा के साथ उनको धनबाद से लेकर भाया हरिद्वार, देहरादून - वर्तमान अस्थायी निवास स्थान पर आने वाली है कुछ ही घण्टों में .. तो हम सुबह-सुबह बिहारी बोली में जाग के भकुआए हुए गुरुवारीय देखे तो .. हम एकदमे से .... कोई ना .. अब ऊपर में अचानक मंगलवार देख के धुकधुकी कम हो गयी, मने वो आएगी, आ रही है ..😊😊😊 .. इ भारतीय रेल भी ना .. ख़ाली-पीली विलम्ब हो कर मिलन की घड़ी को आगे धकेल देती है .. निगोड़ी .. शायद ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुधार करता हूँ. जल्दबाज़ी में हुई त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने हेतु सादर आभार.

      हटाएं
  5. अति उत्कृष्ट रचनाओं से लवरेज बहुत सुंदर अंक 🙏👌

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत अच्‍छी हलचल प्रस्‍तुति

    जवाब देंहटाएं
  7. मेरी रचना को पटल पर साझा करने हेतु हार्दिक आभार रवीन्द्र सिंह यादव जी 🌷🙏🌷

    जवाब देंहटाएं
  8. उत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ही सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल रवीन्द्र जी ! आपने मेरे यात्रा संस्मरण को इसमें स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  10. सुंदर अंक के लिए बहुत बहुत बधाई! सच बहुत ही लगन और मेहनत का काम है दिन भर लिखी पढ़ी जाने वाली रचनाओं को खोज कर, पढ़ कर उनमें से मोती जैसी चुनकर पाठकों के लिए प्रस्तुत करना...'पांच लिंकों का आनन्द' की समस्त टीम का बहुत बहुत आभार और धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  11. सुंदर अंक के लिए बहुत बहुत बधाई! सच बहुत ही लगन और मेहनत का काम है दिन भर लिखी पढ़ी जाने वाली रचनाओं को खोज कर, पढ़ कर उनमें से मोती जैसी चुनकर पाठकों के लिए प्रस्तुत करना...'पांच लिंकों का आनन्द' की समस्त टीम का बहुत बहुत आभार और धन्यवाद

    सादर
    मंजु मिश्रा
    www.manukavya.wordpress.com

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