शीर्षक पंक्ति:आदरणीय ओंकार जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
अब ढोलक की
बारी आई
गीत हुए
महिलाओं के मन में सोचे गीत गाए
हवा में उड़
जाने का बहाना लिया
हुआ समापन
सालगिरह का।
अच्छा नहीं लगा देखकर,
तुम घुली रहा करो मुझमें,
चाहे सुबह हो या शाम,
दिन हो या रात.
झुलस गये पेङ पौधे
गर्म हवाओं से
ठूठ रहा खङा निहारता
जीने की आस लिए
बरस जाओ फिर इक.बार
भर कर गहरे रंग
बन जाओ फिर काले बादल
अहं अनन्तं स्वप्नं पश्यामि - -
पुनर्जीवित हों सभी सुप्त
इच्छाएं जागृत हों स्वप्न
जो नदी तट ने ग्रास
किए श्रावणी
अझर वृष्टि
पूर्व,
यामिनी' वह विरहिणी है
अपना सर्वस्व समर्पित करने हेतु
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
शानदार अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
खूबसूरत अंक. आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
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