शीर्षक पंक्ति: आदरणीय दिगंबर नासवा जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
शुक्रवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
यही तो चाहत
थी उसकी भी
जीवन खुशियों
में जीने की
उदासी नहीं
कभी छू पाई
यदि यही पा
लिया जीवन में
बहुत कुछ कर लिया उसने।
खिलती मिली जो धूप इरादे बदल गए…
मेरी हथेली पर जो तुम ने
अपना हाथ रखा है
उस में कितना
विश्वास है
छुपा,
कहना बहुत कठिन है,
कोई नदी तो
होगी
जो
बहने से पहले
राह देखेगी
नीयत देखेगी
बातों का
सूखापन देखेगी
और
देखेगी आदमी
में कैद आदमी
के अनंत
दुराभाव।
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
आभार,
जवाब देंहटाएंशुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
भीनी हलचल … आभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए - दिगम्बर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद रवींद्र जी।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
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