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शनिवार, 6 अगस्त 2022

3477... मातृभूमि

 हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...

शुचि-सुधा सींचता रात में, तुझ पर चन्द्रप्रकाश है। 

हे मातृभूमि! दिन में तरणि, करता तम का नाश है।

झुकने न दिया अन्य को,

सम्मान दिया हर विचार को।

हर वर्दी के नीचे, है नाम,

इक मात वसुंधरा का।

कमर है मध्य प्रदेश करधनी महाराष्ट्र की पहने।

छत्तीसगढ़ का झब्बा चूंदर राजस्थानी ओढ़े॥

एक भुजा गुजरात में उसकी ढोल डांडिया बाजे।

दूजी है बंगाल जहाँ पर काली माता नाचे॥

मणिपुर मेघालय मीजोरम उंगली साथ निभायें।

त्रिपुरा नागालैंड पाँच मिल मुट्ठी एक बनायें॥

कर-कंगन सोहे बिहार का झारखण्ड की चूड़ी।

सिक्किम अरूणांचल आसामी चम-चम करें अंगूठी

कोयल दादुर पंछी मधुरिम

कलरव से नित मन डोले,

प्यार जगाएँ मन में हरदम

ऐसी वाणी सब बोले।।

धन्य - धन्य हे! अचला तुझको,

सकल विश्व की महतारी।

और इससे पहले कि रोशनी ने उन्हें फिर से रोशन कर दिया,

और उनके हीरे पर जमी

ठंढ को पिघला कर किरणों में बदल दिया,

अंधेरा इस करद था की,

एक ऐसा पल भी आया जब किसी खोए हुए समंदर

को सुना जा सके.

हे हिन्दुभूमि भारत! तूने, सब सुख दे मुझको बड़ा किया;

तेरा ऋण इतना है कि चुका, सकता न जन्म ले एक बार।

हे सर्व शक्तिमय परमेश्वर! हम हिंदुराष्ट्र के सभी घटक,

तुझको सादर श्रद्धा समेत, कर रहे कोटिशः नमस्कार।।

तेरा ही है यह कार्य हम सभी, जिस निमित्त कटिबद्ध हुए;

वह पूर्ण हो सके ऐसा दे, हम सबको शुभ आशीर्वाद।

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पुनः भेंट होगी...
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6 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
    त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम् ।
    महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
    पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ।।१।।
    ----/// ---
    मातृभूमि नमोस्तुते।
    वंदेमातरम
    सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी दी।
    प्रस्तुति का अंदाज़ सराहनीय है।
    सस्नेह
    प्रणाम दी।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति । संस्कृत में लिखी रचना ब्लॉग पर पहली बार पढ़ने को मिली ।।

    जवाब देंहटाएं

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