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सोमवार, 7 दिसंबर 2020

1970 ..जाने क्यूँ अब मस्त मौला मिजाज नहीं होते

सादर अभिवादन
सात दिन बीत गए
दिसम्बर के 
बाकी के भी बीत जाएँगे
जो भी हो..
चलें रचनाओँ की ओर...

अनदिखे में तुम्हारे होने का आभास
दिल को इतना भी बुरा नहीं लगता 
बुरा नहीं लगता इंतज़ार के दरमियाँ
पनपने वाले प्रेम को पोषित करना।





ये शाम जब भी आती हैं
तेरी यादों का 
सैलाब उमड़ जाता हैं
और हम तेरी यादों के 
समुंदर में डूबते 
ही चले जाते हैं





अलसते चूल्हे उनींदे
आग जलती पेट में
चीथडों से दर्द झाँके
शून्य मिलता भेंट में
भीख जीवन माँगता है
मौत से उद्धार तक।।


सर्द रातों में जले बन के अलाव जो
वो नहीं थे किसी अख़बार के रद्दी पन्ने
उनमें कुछ ख़त थे 
थीं उनमें हसीं तस्वीरें 
उनमें कुछ हर्फ़ थे, 
कुछ जुमले,
कई वादे भी
ज़िंदगी मिल के बिताने के
इरादे भी।





जाने क्यूँ
अब शर्म से,
चेहरे गुलाब नहीं होते।

जाने क्यूँ
अब मस्त मौला 
मिजाज नहीं होते।

पहले बता दिया करते थे, 
दिल की बातें,
....
बस
कल की कल 
सादर


10 टिप्‍पणियां:

  1. सस्नेहाशीष असीम शुभकामनाओं के संग छोटी बहना
    उम्दा लिंक्स चयन..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर रचनाओं से सजी प्रस्तुति ।।।।
    शुभ प्रभात।

    जवाब देंहटाएं
  3. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार यशोदा अग्रवाल जी,
    यह मेरे लिए सुखद अनुभूति है कि आपने मेरी रचना को ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शामिल किया है।
    - डॉ शरद सिंह

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुंदर रचनाओं से परिपूर्ण लिंक्स इस एक ही पटल पर उपलब्ध कराने के लिए आपका आभार 💐

    जवाब देंहटाएं
  5. अत्यंत सुंदर रचनाओं से भरपूर प्रस्तुति। मन को आनंदित करने वाली और विभिन्न रचनाओं वाली आज की हलचल बहुत सुखद और प्रेरणादायक थी। सुंदर प्रस्तुति के लिए आभार और आप सबों को प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतर संकलन आदरणीय दी।मुझे स्थान देने हेतु दिल से आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सुन्दर रचना संकलन, बेहतरीन प्रस्तुति,सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बधाई मेरी नन्हीं सी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार 🌷🌷🙏

    जवाब देंहटाएं

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