इंसान चाहता है कि
उसे उड़ने को पर मिले
परिन्दा चाहता है कि
उसे रहने को घर मिले
यथायोग्य सभी को
प्रणामाशीष
क्षमता तुम में हर समाधान की
आज़मा लो जीवन गतिमान की
“किसी के काम आ जाऊँ यही ईमान रखता हूँ ,
बिखरूँ फिर सिमट जाऊँ यही उन्वान रखता हूँ ।
सदा ही साथ चलने की कसम खाई जो हमने है,
तेरी किस्मत बदल जाऊँ यही अरमान रखता हूँ।”
– डॉ. आरके राय “अभिज्ञ”
“ए परिंदे तेरे हौसले की क्या दाद दूँ,
उड़ ले तेरा पूरा आसमान है।
मगर सुन ले मुझमें पर नहीं हौसले हैं,
उड़नें के लिए पूरा हिन्दुस्तान है।”
– सौम्या यादव
“हौसलों में उड़ान रखते हैं।
हम भी इक आसमान रखते हैं।
हमको माज़ूर न समझा जाए।
हम भी अपना जहान रखते हैं।”
– लाएब नूर
यथार्थ पर धरातलसाहित्य सदैव अपनी विपुल सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण-संवर्धन और अपने परिवेश,समाज और देश के मानसिक विकास की धारा को उन्नत बनाने की दिशा में अग्रसर रहा है । मगर हाल के वर्षों में पाठकों की उदासीनता हमें काफी हैरान और बेचैन करती है । कुछ तो कारण है ? लेखकों और पाठकों के बीच पारदर्शिता का अभाव या लेखकों की संवादहीनता । जिस कारण लेखकों और पाठकों के सम्बन्धों में तनाव पैदा हो रहे हैं । अगर यही स्थिति रही तो इसके अंजाम क्या होंगे,कोई नहीं जानता।
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पुन: भेंट होगी
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शुभ प्रभात दीदी
जवाब देंहटाएंएक अनूठी प्रस्तुति..
आभार..
सादर नमन..
इंसान चाहता है कि
जवाब देंहटाएंउसे उड़ने को पर मिले
परिन्दा चाहता है कि
उसे रहने को घर मिले
बेहतरीन पंक्तियां दी।
हमेशा की तरह एक से बढ़कर एक रचनाओं से सजी सुंदर प्रस्तुति दी।
सादर।
बहुत बढियाँँ।
जवाब देंहटाएंसादर
सदाबहार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर नमन
बहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति आदरणीया दी ।
जवाब देंहटाएंसादर
लाजवाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं