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शुक्रवार, 4 सितंबर 2020

1876..बस मन का एक कोना है और मैं हूँ

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का 
स्नेहिल अभिवादन।
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क्यों चीजों का यथावत स्वीकार करना जरूरी है?
व्यवस्थाओं के प्रति असंतोष और प्रश्न सुरूरी है?
कुछ बदलाव के बीज माटी में छिड़ककर तो देखो
उगेंगी नयी परिभाषाएँ काटेंगी बंधन मानो छुरी हैंं 
प्रथाओं के मिथक टूटेगें और तय होगा एक दिन
धरती की वसीयत में किसके लिए क्या जरूरी है।
#श्वेता
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आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-

ये जो संगीत की लहरें
गुजर रही हैं
कानों से मन के भीतर
साथ हैं मेरे फिर भी तन्हा सा
क्यूँ हूँ
बस मन का एक कोना है
और मैं हूँ

भरेंगी खाली ताल -तलैया 
सूखे खेत हरे कर  देंगी 
अंबर से  झरती  टप- टप  बूँदें 
हरेक दिशा शीतल कर  देंगी 
धुल -धुल  होगा गाँव  सुहाना 
चलो घूम के आयें बारिश में 
चलो  नहायें बारिश में 

बेवजह ही फुदकती है
चिड़िया यहाँ वहाँ
झटक भीगे पंखों को
गर्दन को मोड़कर
टेढ़ा कर चोंच को
हेय दृष्टि का कटाक्ष
फेंकती है,
व्यस्त त्रस्त दुनिया के
लोगों पर !!!


बादलों,
इतना मत इतराओ 
चाँद को छिपाकर,
मैं देख सकता हूँ उसे 
आँखें बंद करके,
तुम्हारे होते हुए भी.



खिड़की के बाहर
लटकी हैं दो आंखें,
उमग कर करती हैं सलाम
हवा के ताजे झोंके को,
आंखें टिकी हैं ज़मीन पर 
नाचते हुए पत्ते
मृत्यु के जश्न में तल्लीन हैं।

हरि मेरे बड़े विनोदी हैं

सत्संग भवन के बाहर पहुंची तो चप्पलें उतारते हुए ख्याल आया कहीं चप्पलें इधर-उधर न हो जायें, मुझे जल्दी जाना है न, इसलिये सबसे आखिरी में सबसे हटकर अपनी चप्पलें उतारी ताकि झट से 
पहन कर आ सकूँ।

और संत्संग में भी कहाँ मन लगा, बचपन की मस्तियाँ जो याद की थी न हमने,  अनायास ही याद आकर होंठों में मुस्कराहट फैला रही थी, तभी ध्यान आता सत्संग में हूँ तो मन ही मन माफी माँग रही थी ठाकुर जी से...

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आज का अंक उम्मीद है
आपको.पसंद आया होगा।
कल.का अंक पढ़ना न भूले
कल आ रही है 
विभा दी
विशेष प्रस्तुति के साथ।

#श्वेता

9 टिप्‍पणियां:

  1. प्यारा बचपन
    भरेंगी खाली ताल -तलैया
    सूखे खेत हरे कर देंगी
    अंबर से झरती टप- टप बूँदें
    हरेक दिशा शीतल कर देंगी
    उत्कृष्ट प्रस्तुति..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर प्रस्तुति. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्कृष्ट रचनाओं से सजी लाजवाब प्रस्तुति...
    मेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रथाओं के मिथक टूटेगें और तय होगा एक दिन
    धरती की वसीयत में किसके लिए क्या जरूरी है।
    सार्थक सटीक पंक्तियाँ भूमिका में। सुंदर अंक।
    मेरी रचना को संकलन में लेने हेतु बहुत बहुत आभार प्रिय श्वेता।

    जवाब देंहटाएं
  5. सार्थक भूमिका के साथ बहुत बढ़िया प्रस्तुति प्रिय श्वेता। मेरी रचना शामिल करने के लिए कोटि आभार ।

    जवाब देंहटाएं

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