शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का
स्नेहिल अभिवादन।
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क्यों चीजों का यथावत स्वीकार करना जरूरी है?
व्यवस्थाओं के प्रति असंतोष और प्रश्न सुरूरी है?
कुछ बदलाव के बीज माटी में छिड़ककर तो देखो
उगेंगी नयी परिभाषाएँ काटेंगी बंधन मानो छुरी हैंं
प्रथाओं के मिथक टूटेगें और तय होगा एक दिन
धरती की वसीयत में किसके लिए क्या जरूरी है।
#श्वेता
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आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-
ये जो संगीत की लहरें
गुजर रही हैं
कानों से मन के भीतर
साथ हैं मेरे फिर भी तन्हा सा
क्यूँ हूँ
बस मन का एक कोना है
और मैं हूँ
अंबर से झरती टप- टप बूँदें
धुल -धुल होगा गाँव सुहाना
चलो घूम के आयें बारिश में
मृत्यु के जश्न में तल्लीन हैं।
हरि मेरे बड़े विनोदी हैं
सत्संग भवन के बाहर पहुंची तो चप्पलें उतारते हुए ख्याल आया कहीं चप्पलें इधर-उधर न हो जायें, मुझे जल्दी जाना है न, इसलिये सबसे आखिरी में सबसे हटकर अपनी चप्पलें उतारी ताकि झट से
पहन कर आ सकूँ।
और संत्संग में भी कहाँ मन लगा, बचपन की मस्तियाँ जो याद की थी न हमने, अनायास ही याद आकर होंठों में मुस्कराहट फैला रही थी, तभी ध्यान आता सत्संग में हूँ तो मन ही मन माफी माँग रही थी ठाकुर जी से...
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आज का अंक उम्मीद है
आपको.पसंद आया होगा।
कल.का अंक पढ़ना न भूले
कल आ रही है
विभा दी
विशेष प्रस्तुति के साथ।
#श्वेता
प्यारा बचपन
जवाब देंहटाएंभरेंगी खाली ताल -तलैया
सूखे खेत हरे कर देंगी
अंबर से झरती टप- टप बूँदें
हरेक दिशा शीतल कर देंगी
उत्कृष्ट प्रस्तुति..
सादर..
संग्रहनीय सराहनीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचनाओं से सजी लाजवाब प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी।
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना संकलन
जवाब देंहटाएंप्रथाओं के मिथक टूटेगें और तय होगा एक दिन
जवाब देंहटाएंधरती की वसीयत में किसके लिए क्या जरूरी है।
सार्थक सटीक पंक्तियाँ भूमिका में। सुंदर अंक।
मेरी रचना को संकलन में लेने हेतु बहुत बहुत आभार प्रिय श्वेता।
सार्थक भूमिका के साथ बहुत बढ़िया प्रस्तुति प्रिय श्वेता। मेरी रचना शामिल करने के लिए कोटि आभार ।
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