चांद का नूर जरा जरा सा बढ़ता जा रहा है
कोई है के पल पल दिल में उतरता जा रहा है
गुर्वत और अमिरी कि नाराजगी तो देखिए
तालाब दिन दिन सुख रहे हैं समंदर है के बढ़ता जा रहा है
मेरी लालटेन में मिट्टी का तेल नही है
आफताब है के बस ठलता जा रहा है..
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मुन्नू याने पिछले ढाई दशक से भी ज्यादा समय से मेरे जी का जंजाल.
मेरे मित्र शर्मा जी का बेटा है. पारिवारिक मित्र हैं तो सामन्यतः न पसंदगी को भी
पसंदगी बता कर झेलना पड़ता है. शायद शर्मा जी का भी यही हाल हो मगर उससे हमें क्या?
मुन्नू क्या पैदा हुए, शर्मा शर्माइन सारी शरम छोड़ कर उसी के इर्द गिर्द अपनी
दुनिया सजा बैठे. फिर क्या, मुन्नू ने आज माँ कहा, मुन्नू आज गुलाटी खाना सीख गये,
मुन्नू चलने लगे. मुन्नू सलाम करना सीख गये और जाने
बेहतरीन चयन...
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
सराहनीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसदाबहार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर..
उम्दा लिंको से सजी लाजवाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
बहुत सुंदर संकलन ।आदरणीया मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर सूत्र ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी गज़ल को जगह देने की ...