शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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हम मनुष्य सदैव अनुसरण करते हैं,स्वयं के विचारों और जीवन को बेहतर बनाने के लिए ऐसे व्यक्तित्व का चुनाव करते हैं जो समाज के आईने में झिलमिलाते हैं, पारदर्शी, देखने,सुनने या समझने में उच्च आदर्श और मापदंड स्थापित करते हैं हम भावनात्मक रूप से स्वयं को उनसे जोड़ लेते हैं किंतु अनुकरण करने के लिए अपने बुद्धि, विवेक और तर्क की आँखें मूँदना सिवाय मूर्खता के और कुछ नहीं शायद...।
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अपनी-अपनी तृष्णाओं के रेगिस्तान में
भटकते ताउम्र इच्छाओं के बियाबान में,
चकाचौंध के अंधानुकरण में गुम किरदार
वैचारिकी साँसें धुकधुका रही अनुदान में,
अच्छेपन का अभिनय करते बीता जीवन
ख़ुद का चेहरा भूल गये समय के श्मशान में।
-श्वेता
आज की रचनाएँ
सोए इस तरह की उम्र भर न -
जगे, कभी सजल लम्हों
में उतरती रही रोशनी
तेरी निगाह से,
कभी तेरी
आंखों
में बहुत धुंधला सा आसमां लगे,
मैंने पूछा है तेरा पता डूबते
तारों से, उभरते सुबह
के उजालों से,
कभी तू
जल-दर्पण में मधुर मुस्कान का जादू नयनाभिराम
पुरवाई फिर बही सरसराती
अनमने शजर की उनींदी शाख़ का
एक सूखा पत्ता गिरा नदिया के पानी में
बेचारा अभागा अनाथ हो गया
पलभर में दृश्य बिखरा हुआ पाया
समय से पिछड़ी तब महत्त्वाकाँक्षा ने दाग़ी
भावों का अभाव विवेक ने न लाज रखी
ज़िंदगी के ज्वर से जूझती ज़िंदा है कहीं
संयम सहारा कहता! प्रीत खो गई कहीं।
कल बाजार में एक चोर को पीटते देखा
घेरी थी दर्जनों की भीड़, मारो साले को...
पूछा मैंने सामान इसने क्या हाथ लगाया है
झट बोले, चुराए मोबाइल के साथ धराया है
रजत ने बात अनन्या की तरफ मोड़ दी थी उसे पता था अनन्या निर्णय लेने में हमेशा दूसरों की सलाह पर निर्भर रहती हैं इस लंबी होती बहस में अगर किसी का नुकसान हो रहा था वो टेबल पर रखी आइसक्रीम का जो पिघल रही थी और अपना स्वाद खोती जा रही थी,पहले आइसक्रीम तो खत्म कर लो और कूल हो जाओ अनन्या ने रजत से कहा दोनों आइसक्रीम खा ही रहे थे तभी अनन्या ने अपना सेल फोन निकला अरे ये तो प्रीति की कॉल है
"प्रीति रजत की छोटी बहन थी"
....
कल मिलिए विभा दीदी से
उनकी अनोखी रचना के साथ
-श्वेता
बेहतरीन चयन..
जवाब देंहटाएंसाधुवाद..
सादर..
सूंदर चयन
जवाब देंहटाएंअपनी-अपनी तृष्णाओं के रेगिस्तान में
जवाब देंहटाएंभटकते ताउम्र इच्छाओं के बियाबान में,
चकाचौंध के अंधानुकरण में गुम किरदार
वैचारिकी साँसें धुकधुका रही अनुदान में,
अच्छेपन का अभिनय करते बीता जीवन
ख़ुद का चेहरा भूल गये समय के श्मशान में।
- आदरणीया श्वेता जी की आज की प्रस्तुति की प्रारंभिक इन पंक्तियों से प्रभावित हुए बिना रह पाना आसान नही था। उनकी विलक्षणता ही उनकी विरासत है और हमारी धरोहर।
शुभ प्रभात व शुभकामनाएँ। ।।।।।।
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ....
सुन्दर प्रस्तुति व संकलन, मुझे शामिल करने हेतु आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंशानदार भूमिका... सराहनीय प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंश्वेता जी सराहनीय प्रस्तुतिकरण बहुत शानदार।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने हेतु आभार स्वेता जी
जवाब देंहटाएंसराहनीय लिंक्स
सुंदर संकलन !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति।मेरी रचना को स्थान देने हेतु सादर आभार श्वेता दी। सभी रचनाकारो को हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंसादर
अच्छेपन का अभिनय करते बीता जीवन
जवाब देंहटाएंख़ुद का चेहरा भूल गये समय के श्मशान में।
सुन्दर सार्थक भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुति
सभी लिंक बेहद उम्दा एवं उत्कृष्ट।
हर बार की तरह इस बार की भी इंद्रधनुषी प्रस्तुति की भूमिका में अनुकरण या अंधानुकरण करने के लिए बुद्धि और विवेक के साथ-साथ तर्क की भी की गई पैरवी तर्कसंगत लगी .. शायद ...
जवाब देंहटाएंभूमिका की पद्यात्मक रचना वाली छः पंक्तियों को क्षमायाचना सहित विस्तार ..
स्वयं की आत्मशक्ति और क़ुदरत से तो रहे सदा अन्जान,
आस लगाए रहे हर बात में, बस पत्थर के भगवान में। ...
अपनी-अपनी तृष्णाओं के रेगिस्तान में
जवाब देंहटाएंभटकते ताउम्र इच्छाओं के बियाबान में,
चकाचौंध के अंधानुकरण में गुम किरदार
वैचारिकी साँसें धुकधुका रही अनुदान में,
अच्छेपन का अभिनय करते बीता जीवन
ख़ुद का चेहरा भूल गये समय के श्मशान में।
बहुत खूब प्रिय श्वेता 👌👌तुम्हारे इस बौद्धिक बढिया सृजन् के साथ प्रस्तुति मनभावन है। अब ब्लॉग पर भी आ जाओ , बस यही आग्रह है। हार्दिक शुभकामनाएं और प्यार। देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।