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बुधवार, 4 दिसंबर 2019

1601..आड़ी-टेढ़ी पगडंडी ,और उसके दो छोर ..


।। उषा स्वस्ति।।
" कोई भी तो नहीं दूध का है धुला
है प्रदूषित समूचा ही पर्यावरण
कोई नंगा खड़ा वक्त की हाट में
कोई ओढ़े हुए झूठ का आवरण
सभ्यता के नगर का है दस्तूर ये
इनमें ढल जाइए या चले आइए। "
जगदीश व्योम
इनमें ढल जाइए या चले आइए..उपर्युक्त शब्द वर्तमान परिप्रेक्ष्यों को समेटे परिस्थितियों से अवगत करती है..और हम आज लिंकों में शामिल रचनाकारों के नाम क्रमानुसार प्रस्तुत कर रहे हैंं...✍
🍁🍁

आ० डॉ टी एस दराल जी
आ० उर्मिला सिंह जी
आ० मीना भारद्वाज जी
आ० अनिता सुधीर जी
आ० लोकेश नदीश जी
🍁🍁


ये सियासत का मारा  ....



चुनावों तक का साथ था इनका , जीतने तक की यारी,
आज यहाँ तो कल उस दल में , घुसने की तैयारी।
नगरी नगरी , होटल होटल --

🍁🍁


रूप सलोना हृदय बसाऊँ
बिन उसके जीवन बेकार
क्यू सखि साजन?न सखि माधव!..

🍁🍁



और उसके दो छोर ।
एक दूजे से मिलने की ,
आस लिए चले जा रहे हैं ।
उबड़-खाबड़ रास्तों से  ,
कभी पास-पास , कभी दूर-दूर ।
हमें आपस में बाँधने को ,
ना पगडण्डी है..
🍁🍁


जब उष्णता में आये कमी
अवशोषित कर वो नमी
रगों में सिहरन का
एहसास दिलाये
दृश्यता का ह्रास कराता
सफर को कठिन बनाता है
कोहरा चारों ओर फैलता जाता है।


🍁🍁


खिज़ां के रोजो-शब भी आजकल सुहाने लगे



तेरी यादों की दुल्हन सज गई है यूँ दिल में
किसी बारात में खुशियों के शामियाने लगे..

हम-क़दम का नया विषय

यहाँ देखि

🍁🍁
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍

9 टिप्‍पणियां:

  1. कोई नहीं है धुला दूध का..
    बेहतरीन प्रस्तुति...
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा भूमिका और बेहतरीन लिंक्स संयोजन । मुझे संकलन में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक
    आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
    सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह!!बहुत सुंदर प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति पम्मी जी भुमिका में बहुत अभिनव रचना दी है आपने जगदीश व्योम जी की ।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  6. पसंद और शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं

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