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सोमवार, 29 जुलाई 2019

1473...हम-क़दम का इक्यासिवाँ अंक.....सिगरेट...धूम्रपान निषेध अंक

स्नेहिल अभिवादन
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सोमवारीय विशेषांक में आप सभी का स्वागत है।
सिगरेट
प्रोफ़ेसर वेस्ट कहते हैं कि सिगरेट की लत पड़ने की वैज्ञानिक वजह है. असल में तंबाकू में एक केमिकल होता है जिसका नाम है-निकोटिन. जब आप सिगरेट का धुआं अपने अंदर खींचते हैं, तो आपके फेफड़ों की परतें, इस धुएं से निकोटिन सोख लेती हैं. कुछ ही सेकेंड के अंदर ये निकोटिन आपके दिमाग़ की नसों तक पहुंच जाता है. निकोटिन के असर से हमारा दिमाग़, डोपामाइन नाम का हार्मोन छोड़ता है. इससे हमें बहुत अच्छा एहसास होता है.
तंबाकू में पाया जाने वाला निकोटिन हमारे दिमाग़ के उस हिस्से पर नियंत्रण कर लेता है, जिसके ज़रिए हम सोच-विचार करते हैं. फ़ैसला लेते हैं. जब निकोटिन दिमाग़ तक पहुंचता है, तो ये बस हमारे दिमाग़ की सोचने-समझने की ताक़त छीन लेता है. फिर ये हमारे दिमाग़ को बार-बार सिगरेट-बीड़ी या तंबाकू का दूसरा नशा करने के लिए उकसाता है.
अतः सिगरेट पीना
अनेक प्रकार की असाध्य और कष्टकारी शारीरिक और मानसिक बीमारियों को न्योता देना है।

आज की लिखी उपर्युक्त भूमिका संकलित है।
यह अंक यशोदा दी के  सहयोग के द्वारा 
संयोजित किया गया है। 
★★★
तो चलिए पढ़ते है हम
आज की रचनाएँ

शुरुआत कालजयी रचनाओं से
स्मृतिशेष अमृता प्रीतम..
1919-2005
यह आग की बात है
तूने यह बात सुनाई है
यह ज़िंदगी की वो ही सिगरेट है
जो तूने कभी सुलगाई थी

चिंगारी तूने दे थी
यह दिल सदा जलता रहा


आदरणीय सजीव सारथी
तलब से बेकल लबों पर,
मैं रखता हूँ - सिगरेट,
और सुलगा लेता हूँ चिंगारी,
खींचता हूँ जब दम अंदर,
तो तिलमिला उठते हैं फेफडे,
और फुंकता है कलेजा,
मगर जब धकेलता हूँ बाहर,
निकोटिन का धुवाँ,
वक़्त कलम पकड़ कर
कोई हिसाब लिखता रहा

क्यों मौत बुला रहे हो? ... शम्भूनाथ
क्यों कश लगा रहे हो, 
धुआं उड़ा रहे हो।   
अपने आप अपनी, 
क्यों मौत बुला रहे हो।।

क्यूं यार मेरे खुद ही, 
खुद का गला दबा रहे हो। 

◆◆◆◆◆◆◆

ब्लॉग सम्पर्क प्रारूप द्वारा प्राप्त रचनाएँ
आदरणीय सुबोध सिन्हा

दोषी मैं कब भला !?
साहिब !
मुझ सिगरेट को कोसते क्यों हो भला ?
समाज से तिरस्कृत ... बहिष्कृत ...
एक मजबूर की तरह
जिसे दुत्कारते हो चालू औरत या
कोठेवाली की संज्ञा से अक़्सर ....

◆◆◆◆◆◆◆◆

आदरणीया अनुराधा चौहान
रोगों से जब घिरे
तब आँखें खुली और आया याद
यह बीमारी नहीं
यह तो सिगरेट की है सौगात
हीरोगिरी के चक्कर में
बनाते रहे धुंए के छल्ले

◆◆◆◆◆◆◆◆

आदरणीया साधना वैद
धूम्रपान ....

लग जानी है
अब उपचार में
दौलत सारी

नहीं निशानी
सिगार सिगरेट
मर्दानगी की

◆◆◆◆◆◆

आदरणाया आशा सक्सेना
सिगरेट  .....

अधरों के बीच दबा सिगरेट 
खूब धुएँ के छल्ले निकाले 
पर कभी न सोचा कितना धुआँ
घुसेगा शरीर के रोम रोम में !
श्वास लेना भी दूभर होगा 
खाने में भयानक कष्ट 
◆◆◆◆◆◆◆

आदरणीया अभिलाषा चौहान
जिंदगी सिगरेट- सी

धीमे-धीमे सुलगती,
जिंदगी सिगरेट-सी।
तनाव से जल रही,
हो रही धुआं-धुआं।
◆◆◆◆◆◆

आदरणीया अनीता सैनी

सिगरेट के कस का कमसिन दम
सिगरेट के कस  का  कमसिन दम,
महकते  जीवन  में लगा  कम, 
धुँए   में  उड़ा  ज़िंदगी, 
ज़ालिम धुँए में  गया   रम  |

◆◆◆◆◆◆◆
आशा है आपको हमक़दम का यह अंक
अच्छा लगा होगा।
आप सभी की प्रतिक्रिया अपेक्षित है।
हमक़दम के नये विषय में जानने के लिए 
कल का अंक पढ़ना न भूलें।
कल आ रही हैं यशोदा दी।

#श्वेता सिन्हा

18 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात...
    सिगरेट..
    तंबाकू में पाया जाने वाला निकोटिन हमारे दिमाग़ के उस हिस्से पर नियंत्रण कर लेता है, जिसके ज़रिए हम सोच-विचार करते हैं.
    सच है कि अधिकांश ख्यातिप्राप्त लेखक बिना पिए लिख ही नही पाते थे...मसलन..चाय-वाय..
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह !प्रिय श्वेता दी बेहतरीन प्रस्तुति 👌,आज के वक़्त में घुल गया निकोटिन हवा में पूरा समाज न जाने किस नसे झुम रहा है|अधिकांश ख्यातिप्राप्त लेखक बिना पिए लिख ही नही पाते थे...मसलन..चाय-वाय..वाह ! सर बहुत ख़ूब फ़रमाया 😅😅
    शानदार रचनाएँ, मुझे स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  3. सिगरेट पीने वाले से ज्यादा उनके द्वारा छोड़े गए धुएं के सम्पर्क में आने वाले/वाली प्रभावित होते हैं... समाज के लिए हानि पहुंचाने वाले के लिए भी सज़ा मुकर्रर होना चाहिए...

    बहुत सुंदर संग्रहनीय संकलन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सरकार ने सार्वजनिक स्थल पर धूम्रपान निषेध कर रखा है। दंड भी मुकर्रर है।
      लोग ही नहीं मानते, दहेज़ की तरह।
      हाँ , हैरानी की बात तो तब होती है, जब अपने बच्चों के समक्ष पीते हैं।

      हटाएं
  4. मन से शुक्रिया श्वेता जी .. मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए। ज्ञानवर्द्धक और मन को छूती रचनाएँ।
    शुरुआत मेरी पसंदीदा रूमानी रचनाकार से यानि अमृता जी से है तो दो वाक्य उनके लिए बोलना लाज़िमी है।
    उनके 'रसीदी टिकट' के एक अंश का आशय है कि " जैसे कृपाण का काम है हिंसात्मक कर्म करना पर वही जब गुरूद्वारे के हलवे के कड़ाह में फिराया जाता है तो वह पाक प्रसाद बन जाता है। ठीक वैसे ही सिगरेट आम लोगों के फेफड़े को जलाता है पर मैं जब पीती हूँ तो मेरे ज़ेहन में अच्छी-अच्छी नज़्में जन्म लेती हैं। "
    उनकी बात वो जानें, बड़े लोग हैं, पर मुझे मेरी एक गलती सबों के सामने स्वीकार करने में हिचक नहीं हो रही कि मैं इन्हीं पंक्तियों को पढ़ कर प्रेरित हुआ था और कॉलेज के आखिरी दिनों में सिगरेट पीना शुरू किया था, किसी गलत सोहबत में नहीं।
    वैसे मेरे जैसे रूखे और 'आत्मकेंद्रित' लोगों के गलत या सही दोस्त कम ही बन पाते हैं।
    अहसास तो थी कि ये गलत है ... वैसे कॉलेज के दिनों में नाटक के अभ्यास के दरम्यान अहसास हुआ कि कुछ लड़कियों को सिगरेट पीने वाले लड़के और सिगरेट धुएँ की गंध अच्छी लगती है, कुछ को नहीं। मैंने ये तय किया था कि अगर पत्नी या प्रेमिका (प्रेमिका तो मिली नहीं) को प्ससैंड नहीं होगा तो छोड़ दूँगा। अन्ततः उस बुरी आदत या लत की दाह-संस्कार एक झटके में किया ... शादी के ठीक तीसरे दिन ... अपनी धर्मपत्नी के कहने पर क्योँकि उसे यह पसंद नहीं था।
    शुक्र है मेरे आत्मशक्ति, उसकी फरमाइश और मेरी आत्मचेतना की , जिसकी वजह से आज 24 साल हो गए उसे होठों से सुलगाए हुए।
    फिर भी लिख रहा हूँ ... अब आप ही तय करें कि बिना पिए कैसा लिख रहा हूँ ...☺

    जवाब देंहटाएं
  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  6. सिगरेट पीने वाला ही उसके जहर से प्रभावित नही होता वरन धुवें से प्रभावित लोगों के लिये भी नुकसान दायकहै ।
    सुन्दर संकलन।

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह!!श्वेता ,बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  8. सिगरेट ! एक तरफ आग, दूसरी तरफ आत्मघाती

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी

    जवाब देंहटाएं
  10. ज्वलंत समस्या पर शानदार संकलन। सभी जानते हैं कि सिगरेट और सभी तम्बाकू युक्त पदार्थ कितने विनाशकारी हैं पर फिर भी सेवन करते हैं तम्बाकू ,सिगरेट कम्पनियां फिर दवा डाक्टर और हास्पिटल इन को अरबों खरबों की आमदनी और स्वयं स्वास्थ्य जान,धन, दौलत सभी से हाथ धो परिवार को रोता बिलखता कर्ज में छोड़ परलोक गमन ‌।
    सभी रचनाएं बहुत ही सटीक और उपदेशात्मकता लिए है ।
    सभी रचनाकारों को बधाई और संदेश कि अपने आस-पास सक्रिय प्रयास से इस जहर से लोगों को बचाए ।
    साधुवाद।

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  11. संवेदनशील विषय पर बहुत सुन्दर रचनाएं आज के अंक में ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !

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  12. शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा सराहनीय लिंक संकलन
    सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत ही सार्थक प्रस्तुति प्रिय श्वेता |जानदार भूमिका जो धूम्रपान के खतरे से आगाह करती है , पर धूँआ- सेवन के शौक़ीन सब भूल इसकी मस्ती में मस्त रहते हैं , जब तक मौत की आहट उन्हें पस्त ना करने लगे | इसके पीछे तड़पने वाले परिवार की व्यथा को कौन लिखे , जिनका सब कुछ इस सिगरेट की बदौलत स्वाहा हो जाता है | पर सिगरेट खुद तो आकर मुंह में नहीं लग जाती , डिबिया पर भी चेतावनी का प्रावधान है , किसी का मन नहीं मानता तो कोई क्या कर सकता है ? पर जीवन की बेहतरी इसी में है कि इस दुर्व्यसन से दूर रहकर जिया जाए | सार्थक अंक के लिए तुम्हे बहुत- बहुत बधाई | सभी रचनाकारों ने खूब लिखा और सिगरेट जैसे दुर्लभ विषय को बहुत ही रोचक बना दिया सबने | सभी को हार्दिक शुभकामनायें | सुबोध जी के भावपूर्ण , बेबाक शब्दों ने अंक की शोभा को बढ़ा दिया है | सस्नेह --

    जवाब देंहटाएं
  14. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार प्रिय सखी श्वेता,सादर

    जवाब देंहटाएं

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