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बुधवार, 17 जनवरी 2018

915..अभी शेष है समानता का संघर्ष ...



🙏
अभी शेष है समानता का संघर्ष 
नहीं थम रहा बच्चियों के साथ हैवानियत(हरियाणा में घटित घटना)
आखिर ये किस मिट्टी के बने इतनी क्रूरता धृणित कुकृत्य कर आराम से चल पड़ते.. उफ..
क्या संयम, संवेदना, मानवीय भावनाएँ जैसे शब्द विलुप्त होते जा रहे है?
चलो..एक और कानून भी बना ले पर वो संवेदनशील सोच कहाँ से लाए..
बताओं कितने सालों में 
हमारा अब हाल बदलेगा..
जरा आप बताएंगे..✍


चलिए अब रौशनी डालते हैं आज की लिंकों पर...
रचनाकारों के नाम क्रमानुसार पढ़ें
आदरणीय राजेश कुमार राय जी, 
आदरणीय देवेन्द्र पाण्डेय जी,
आदरणीय रवीन्द्र कुमार यादव जी,
आदरणीय अरुण साथी जी
एवम्
आदरणीया नीतू ठाकुर जी



                    (1)
इंसान हूँ मगर मैं मुकम्मल न हो सका
शायद मेरे रक़ीब की कुछ बद्दुआ भी है।

                    (2)
दिन भर हराम कहता रहा मैंकशी को वो
शाम जब ढली तो मैकद़े पहुँच गया।

                    (3)
तेरा एहसान मुझ पर है इसे मैं भी समझता हूँ


एक बार बलिया के पशु मेले में गए थे, एक बार दिल्ली के पुस्तक मेले में। दोनों मेले में बहुत भीड़ आई थी। जैसे पशु मेले में लोग पशु खरीदने कम, देखने अधिक आए थे वैसे ही पुस्तक मेले में भी लोग पुस्तक खरीदने कम, देखने अधिक 


चलते-चलते 
आज यकायक 
दिल में 
धक्क-सा हुआ 
शायद आज फिर 
बज़्म में आपकी 
बयां मेरा अफ़साना हुआ


चार माननीयों ने जब लोकतंत्र के लिए खतरे की बात कही तो स्वघोषित कट्टरपंथी और देशद्रोही साबित करो गैंग सक्रिय हो गई है। सोशल मीडिया पर तरह तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं। वह भी तब जबकि सुब्रमण्यम स्वामी जैसे स्पष्टवादी व्यक्ति ने भी कह दिया है कि 



रात तन्हाइयों में जाती है 
किसी वीरान हवेली की तरह ज़िंदा हूँ 
ऐसा लगता है जैसे कैद में परिंदा हूँ 

इसी के साथ आज की प्रस्तुति समाप्त 
कल मिलते हैं 
रवीन्द्र जी की प्रस्तुतिकरण के साथ
।। इति शम ।।
पम्मी सिंह
धन्यवाद..✍

एक क़दम आप.....एक क़दम हम
हम-क़दम का दूसरा कदम 
इस सप्ताह का बिषय है
"बवाल"
उदाहरणः
एक औचक विषय
पर...
कवि का क्या
कहीं भी अपनी नाक
घुसेड़ देगा
आने वाले दिनों में
देखिएगा...उनकी
हर कविता में
बवाल पर
बवाल मचा दिखाई देगा


आप अपनी रचनाऐं शनिवार (20  जनवरी 2018 ) 
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक 
(22 जनवरी 2018 ) में प्रकाशित होंगीं। 
इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी हेतु हमारा पिछले गुरुवारीय अंक 
(11 जनवरी 2018 ) को देखें या नीचे दिए लिंक को क्लिक करें 

909...एक क़दम आप.....एक क़दम हम बन जाएँ हम-क़दम







17 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात सखी
    बहुत ही उम्दा सोच
    अच्छी रचनाएँ
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभातम् पम्मी जी,
    बेहद संवेदनशील भूमिका लिखी है आपने इस क्यों और कबतक का जवाब तलाशते हुये और न जाने कितनी मासूमों को ऐसी नरक भोगी यंत्रणाओं से गुजरना होगा मात्र इसलिए क्योंकि नारी जाति में जन्म हुआ है न।
    बहुत अच्छी रचनाएँ है सभी,सराहनीय अंक आज का।

    जवाब देंहटाएं
  3. संवेदनशील विषय के साथ शुरुआत.... बहुत ही चिन्तनीय विषय है ये...सजा की परवाह किए बगैर ऐसी नीचता....क्या होगा इस समाज का...
    सुन्दर प्रस्तुतिकरण के साथ उम्दा लिंक संकलन...

    जवाब देंहटाएं
  4. हम तो शुतुरमुर्ग बनते जा रहे हैं सवाल के जबाब जब मिलेगा तब तक हमारी पीढ़ी इतिहास बन चुकी होगी
    17-1-18 हो गया
    उम्दा प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रसंशनीय प्रस्तुति आदरणीया पम्मी जी की। बधाई। रचनाओं का चयन सराहनीय है ।
    अग्रलेख में समाज के विकृत हो चेहरे को पेश किया है जोकि हमारी संवेदना को झिंझोड़ता है।
    कविवर मैथलीशरण गुप्त की ये पंक्तियाँ हम भूल चुके हैं -

    "अधिकार खोकर बैठ रहना यह महा दुष्कर्म है ,

    न्यायार्थ अपने बंधु को भी दंड देना धर्म है। "

    स्त्री के प्रति कलुषित सोच रखने वाली पुरुष मानसिकता उसे भोग्या समझती है जिस पर हथौड़े से वार करना होगा तभी जागेगा विवेक।

    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं।

    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार पम्मी जी।




    जवाब देंहटाएं
  6. गंभीर‎ और ज्वलंत विषय पर भूमिका और खूबसूरत रचना‎एँ. बहुत बढ़िया संकलन पम्मी जी.

    जवाब देंहटाएं
  7. खूबसूरत लिंक संयोजन ! बहुत खूब ।
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार आदरणीया ।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर प्रस्तुती
    बहुत गंभीर विषय पर अच्छी चर्चा
    मेरी रचना को स्थान देने के लिये आभार
    मनुष्य को कितना भी प्रवचन क्यों ना दे दें
    कुछ लोगों के अंदर का पशू कभी नही मरता

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति पम्मी जी ...
    विषय बहुत गंभीर है ..आखिर कब तक चलता रहेगा ये सब ?

    जवाब देंहटाएं
  10. विचारनीय प्रश्न देती सशक्त भुमिका के साथ शानदार प्रस्तुति।
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सुन्दर प्रस्तुति आज के पांच लिंकों के आनंद की. बधाई..

    जवाब देंहटाएं
  12. बूढ़ा इंतज़ार

    उस टीन के छप्पर मैं
    पथराई सी दो बूढी आंखें

    एकटक नजरें सामने
    दरवाजे को देख रही थी

    चेहरे की चमक बता रही है
    शायद यादों मैं खोई है

    एक छोटा बिस्तर कोने में
    सलीके से सजाया था

    रहा नहीं गया पूछ ही लिया
    अम्मा कहाँ खोई हो

    थरथराते होटों से निकला
    आज शायद मेरा गुल्लू आएगा

    कई साल पहले कमाने गया था
    बोला था "माई'' जल्द लौटूंगा

    आह : .कलेजा चीर गए वो शब्द
    जो उन बूढ़े होंठों से निकले।

    जवाब देंहटाएं
  13. सुंदर संकलन आदरणीय पम्मीजी, देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थी । सादर ।

    जवाब देंहटाएं

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