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सोमवार, 27 अक्टूबर 2025

4553 ..जिस दिन हम दोनों एक हुए

 सादर अभिवादन

आज फिर देखिए भूली बिसरी रचनाएं

इससे पहले दो पंक्तिया
जिस दिन हम दोनों एक हुए
उस दिन की कहानी क्या कहिये
एक नूर सा बरपा है रुख पर
लफ़्ज़ों की ज़ुबानी क्या कहिये

अब देखिए रचनाएँ


अपनी मोहब्बत को इक नाम यह भी दे दो-
ये अजनबी सी आंखों का समर्पण है बस

ना तुम हो, ना मैं हूं, ना जमाने की भीड़-
हम दोनों के बीच खड़ा गूंगा दर्पण है बस।




रंग-बिरंगे पर फड़काती,
तितली जब बगिया में आती
सब बच्चो के मन को भाती,  
सब बच्चो का जी ललचाता

फूलो के ऊपर मंडराती,
पत्तों के पीछे छिप जाती
रंगत कैसे इतनी पाती
नहीं किसी को भी बताती




ये चल चुके पटाखे हैं,
फेंक दो इन्हें कूड़ेदान में,
तब की बात और थी,
जब इनमें बारूद भरा था।



अपने
सपनों को
हकीकत
में नहीं
अगर
बदल पाओ

दिमाग
है ना
उसे काम
में लाओ

अपने
सपनों के
शेयर बनाओ



मौत तो आनी है तो फिर मौत का क्यों डर रखूँ
जिंदगी आ, तेरे कदमों पर मैं अपना सर रखूँ

जिसमें माँ और बाप की सेवा का शुभ संकल्प हो
चाहता हूँ मैं भी काँधे पर वही काँवर रखूँ


सादर वंदन
कल फिर मिलूंगा

1 टिप्पणी:

  1. जिस दिन हम दोनों एक हुए
    उस दिन की कहानी क्या कहिये
    शानदार अंक
    वंदन

    जवाब देंहटाएं

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