मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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स्वागतम् स्वागतम्
शीतल शरद सुस्वागतम्।
धान चुनरी,कँवल,कुमदिनी,
नीलकुंरिजी मनभावनम्।
मगन किलके अलि,तितली
खंजन खग गुंजायनम्।
शरद विहसे चंद्रिका महके
सप्तपर्णी सम्मोहनम्।
धरणी चूमे ओस मुक्ता
शिउली झरे अति पावनम्।
स्वागतम् स्वागतम्
शीतल शरद सुस्वागतम्।
#श्वेता
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आज की रचनाएं
कभी न ख़त्म होने वाला अहसास
हम दोनों का, सुख-दुःख का
इश्क़, मुहब्बत से गुज़रे हर उस वक़्त का
बुना था जिसे लम्हा-दर-लम्हा
नज़र-ब-नज़र हम दोनों के दरमियाँ ...
उड़ें हवा संग, हों काफ़ूर
बहकर यहाँ से जायें दूर,
नीला गगन स्वच्छ निर्मल पर
सदा अचल, रहे अडिग हुज़ूर !
तुम भी तो कुछ उसके जैसे
कहाँ ख़त्म होती है सीमा,
हर पल नया रूप धर आये
दिखे न परिवर्तन, हो धीमा
इतना भी ना आओ याद कि बारिश भी सहम जाए
बिन मौसम छाए बादल और भरी ऑंख बरस जाए
बिन तेरे इक पल ऐ संगदिल सनम गुजरता ही नहीं
दिल बड़ा मासूम है संभाले से भी सम्भलता ही नहीं ।
ग़ैरों ने जो सुलूक किया उसका क्या गिला
फेंके हैं दोस्तों ने जो पत्थर समेट लूँ
कल जाने कैसे होंगे कहाँ होंगे घर के लोग
आँखों में एक बार भरा घर समेट लूँ
विडंबना यह है कि घर की बुज़ुर्ग स्त्रियाँ ही उसका आकाश छोटा करती हैं। वही स्त्रियाँ जिन्होंने अपने जीवन में ऐसी ही रुकावटों का अनुभव किया था, अब अगली पीढ़ी की राह रोकने वाली चौकीदार बन जाती हैं। यह पराजय साधारण नहीं, क्योंकि यह लड़ाई पहले स्त्री और स्त्री के बीच लड़ी जाती है, फिर स्त्री और पुरुष के बीच का घमासान बनती है। जब बालिका अपनी नज़दीकी स्त्रियों, जैसे माँ, दादी या बुआ से समर्थन चाहती है, तो उसे परंपराओं का बोझ और अवरोध मिलता है।
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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
शरद पूर्णिमा का मनहर चंद्रमा और उसकी ज्योत्सना बिखरातीं सुंदर पंक्तियाँ, आभार श्वेता जी, आज के इस अनुपम अंक में 'मन पाये विश्राम जहाँ 'को शामिल करने के लिए!
जवाब देंहटाएंसुस्वागतम् शीतल शरद !
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
वंदन
सुन्दर संकलन ... आभार मुझे शामिल करने के लिए ...
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