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शुक्रवार, 5 मई 2023

3748...हमारी रुग्न मानवता...

शीर्षक पंक्ति:आदरणीया भारती दास जी के लेख से। 

सादर अभिवादन।

बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ। 

चित्र:साभार गूगल 
        आज बुद्ध जयंती है। बैसाख पूर्णिमा को ही बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है। महात्मा बुद्ध सांसारिक मोह-माया त्यागकर ज्ञान की खोज में निकल पड़े थे। अंततः बिहार स्थित गया में बोधि-वृक्ष के नीचे बैठकर घोर तपस्या की और सत्य को जाना। करुणा को संसार के लिए सर्वोच्च मूल्य के रूप में स्थापित किया और जीवन में अतिशययता से परे मध्यमार्गी रास्ता सुझाया जिसमें पाखंड के लिए कोई स्थान नहीं है। सामाजिक समरसता पर आधारिक उनका दर्शन विश्वभर में अत्यंत लोकप्रिय हुआ। बौद्ध धर्म भारत से अधिक विदेशों में विकसित हुआ। महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं में करुणा,प्रेम,शांति,सत्य और अहिंसा जैसे सामाजिक मूल्य प्रमुखता से समाये हुए हैं।  

सिद्धार्थ, गौतम,बुद्ध और तथागत नाम हमें जीवन का सरलतम मंत्र देता है: 

"अप्प दीपो भव" अर्थात अपना प्रकाश स्वयं बनो।   

शुक्रवारीय अंक में पढ़िए कुछ पसंदीदा रचनाएँ-

अपनी सफलता पर

अपनी सफलता पर मन हुआ प्रसन्न

देख कर अपना आयोजन

संतुष्टि आई अपनी सफलता पर

यही अपेक्षा थी सबको मुझसे

जिसमें मैं सफल हुई

सब ने आशीष दिया मुझे और हिम्मत बधाई। 

अन्तःस्थल में कहीं

मध्य रात के बाद
सदियों की प्यास भी
रहस्यमय रूप में
है गहराती,

मखमली कोशों में बंद होते हैं,
अनगिनत प्रसुप्त स्वप्नों
के अंकुरण,

मैं का अंकुर

'तू'-'तू' के इस खेल में

'मैं' के बीज का अंकुर फूटने लगे

भावों की नदी अविरल

दिन-रात उसे सींचने लगे

तब तुम थोड़ा-सा

लाओत्से को पढ़ लेना।

रुग्ण मानवता के वैद्य

आज भी मानव जीवन के लिए बुद्ध उतने प्रेरणाप्रद है जितने सदियों पूर्व थे. जिन ओजस्वी वाणी को सुनकर दैत्य अंगुलिमाल का जीवन बदला, बर्बर अजातशत्रु में बदलाव आया, सम्राट अशोक में परिवर्तन हुआ वही सन्देश आज भी हमें प्रेरित करते है. हमारी रुग्न मानवता को नव जीवन प्रदान करने के लिए भगवन बुद्ध के उपदेशों को अपनाना ही होगा। 

चलते-चलते पुस्तक-चर्चा:

मारीना- किताब इन दिनों

इस जीवनी को एक पश्चिमी महिला लेखिका की लेखन प्रक्रिया व चुनौतियों को समझने के लिए भी पढ़ सकते हैं। मारीना की जीवनी को एक ऐसे इंसान के जीवन संघर्ष के रूप में भी पढ़ा जा सकता है, जो अपने जीवन को आसान व सुविधाजनक बनाने के लिए दायें या बायें का हिस्सा बनने के बजाय सही का पक्ष चुनना पसंद करता है और इसकी कीमत चुकाता है।

*****

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव


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