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मंगलवार, 30 मई 2023

3773...मैं टकटकी बांधे देखता रहा उधर...

शीर्षक पंक्ति :आदरणीय ओंकार जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

मंगलवारीयअंक लेकर हाज़िर हूँ।

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ -

७१५.पानी में

मैं टकटकी बांधे देखता रहा उधर,

फिर भी चली गई भैंस पानी में. 

न झुकाऒ तुम निगाहे कहीं रात ढल न जाये .....




एक लम्बी अवधि के बाद फिर से प्रोग्राम बना था घूमने का और वह भी मेरी मनपसंद जगह का जिसे देखने की साध वर्षों से अपने मन में संजोये थी और जहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता के बारे में पढ़ सुन कर उसे साक्षात देखने की उत्सुकता अपने चरम पर थी ! आप समझ तो गए ही होंगे यह स्थान है उत्तर पूर्वी भारत का बेहद खूबसूरत स्थान मेघालय !

चूड़ियाँ

कब होगी..........
गोरी कलाई में झंकारती हैं चूड़ियांँ।
झनक-झनक ये पुकारती हैं चूड़ियांँ।
तेरे बिना बालमा कटती ना रात रे।

अभी तक सांसों
के पृष्ठ हैं गीले, कुछ
ख़ामोश शब्द
चाहते हैं
नए
अर्थों में ढलना
*****
फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


 

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर अंक
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  3. मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार, उन तमाम गुणी जनों का भी ह्रदय तल से आभार जो मेरे ब्लॉग तक पहुँच कर मुझे अपना आशीर्वाद दिया करते हैं, मैं कोशिश करता हूँ कि आप सभी विद्वानों की रचनाएँ पढ़ सकूँ नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  4. एक लम्बे अरसे के बाद अपनी पोस्ट यहाँ देख कर बहुत सुखद आश्चर्य हुआ ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं

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