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शनिवार, 6 मई 2023

3749... पेटीकोट



 हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो... 

 

विचारणीय प्रश्न यह कि कुछ भाभियों की इतनी मजबूत स्थिति कैसे हो जाती है?
भाई पेटीकोट शासन को आसानी से स्वीकार कर लेता है....
यूँ तो 1560 से 1564 तक का जो शासन काल है
उसे पेटीकोट शासन के नाम से जाना जाता है क्योंकि
उस समय अकबर की धाय माँ महामअनगा उनका शासन में विशेष दखल था
शुरुआती दिनों में लोग मुझे पेटीकोट वाली छड़ी के रूप में जानते थे।
समय के साथ-ही-साथ मेरा रूप-रंग बदलता गया।
मेरा निर्माण मानवजाति की सेवा के लिए हुआ था। 
किसी का क़द बढ़ा देना किसी के क़द को कम कहना
हमें आता नहीं ना-मोहतरम को मोहतरम कहना
चलो मिलते हैं मिल-जुल कर वतन पर जान देते हैं
बहुत आसान है कमरे में बन्देमातरम कहना।
घर-परिवार का मैल धोते हुए 
कितना चीकट जम चला है 
आत्मा की उजली सतह पर 
जिसे संसार का कोई साबुन नहीं धो सकता 
इससे बिल्कुल बेख़बर है 
अलगनी पर सूखता पेटीकोट
आदिवासी औरत पोल्का नहीं पहनती 
एक चीर से ढँक लेती है शरीर
आप सर आप मेडम 
आप सदियों से नहीं आए हमारे देस 
आपने कहा बैठा नहीं सकता कोई दरोगा 
किसीको चार दिन चार रात थाने पर
आप सर आजादी से पहले आए होगे 
हमारे गाँव

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पुनः भेंट होगी...
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5 टिप्‍पणियां:

  1. हमेशा की तरह आश्चर्यचकित करती प्रस्तुति
    आभार दीदी
    सादर वन्दे

    जवाब देंहटाएं
  2. पेटीकोट शासन !
    एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाएं
    लाजवाब प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  3. एक अत्यंत उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आभार आपका प्रिय दीदी।पेटी कोट जैसे कथित वर्जित विषय पर जब जब लिखा गया तहलका मच गया।नारी के सम्मान के कथित प्रतीक की कीमत कोई सन्वेदनशील मन ही आँक सकता है ।जब कोई अपनी संघर्ष की अगन में निरंतर तप रही माँ के तार तार पेटी कोट को देखता है तो मानस पटल पर उभर आती हैं साहस और संघर्ष की खट्टी-मीठी स्मृतियों की अन्तहीन शृँखला।तो वहीं किसी कथित असहाय स्त्री के पेटी कोट के पार यदि कोई नराधम झांकने का कुत्सित प्रयास करता है तो इस भोगे नारकीय यथार्थ की बखियाँ उधेड़ने कोई दोपदी सिन्धार प्रकट हो जाती है दुर्गा बनकर वो भी शव्दों को तीखी कटार सरीखी कविता थामकर।आदिवासी समाज का जो कडवा सत्य उसकी कविताओं में उभरा है उसे कविता मेँ ढालने की कला कोई छोटा जोखिम नही। ये सभ्य समाज से इतर उस दुनिया का स्याह पक्ष है जिससे सबने आँखें चुरायी हैं।गुनाहगारों की अनकही कहानी रौंगटे खड़े कर देती हैं।इन्हें सब्को पढ्ना चाहिये।कोटि कोटि धन्यवाद और प्रणाम 🙏🙏🌹🌹

    जवाब देंहटाएं
  4. आह से उपजी मर्मांतक अभिव्यक्ति 😞

    कविता को बिस्तर बना लूँगी
    और सोऊँगी दिनभर की मजूरी-मारपीट के बाद
    कविता को दूध बनाऊँगी
    बेटा तुझे पिलाऊँगी
    कविता को रोटी बनाऊँगी
    गाँव भर दुनिया भर को जिमाऊँगी
    पापा सुन लो
    कविता को खसम करूँगी मैं
    और कविता को रख दूँगी
    जहाँ अपनी बिटिया की लाश रखी थी
    दिया नहीं कविता जलाऊँगी मैं
    जिसने सोलह साल में देख ली
    नौ मौत छह डिलेबरियाँ
    उसके लिए
    अँधेरा कविता है
    मार कविता है झगड़ा कविता है
    घाव कविता है घर कविता है
    तुम लोगों को बहुत परनाम
    कविता बनाना बतलाया
    इस कविता से मिज़स्ट्रेट के दफ़्तर
    आग लगाऊँगी मैं ।



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