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शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2023

नदी का श्वेत पत्र

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।

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क्या बसंत क्या मधुमास
मौन स्फुरण,शून्य आभास,
प्रेम प्रतीक्षारत है,खत्म हो
संवेदनाओं का अज्ञातवास।
"प्रेम" 
इस शब्द में 
छुपे व्यापक और 
गूढ़ अर्थ को शब्दों में 
परिभाषित करना आसान 
हो सकता है परंतु इसकी अनुभूति 
का लौकिक आनंद अभिव्यक्त कर पाना 
संभव नहीं। आज के युग में प्रेम एक वस्तु 
की तरह हो गया है जिसे लोग अपनी सुविधाके 
अनुसार इस्तेमाल करते हैं। स्मार्टफोन संस्कृति 
के दायरे में सिमटते विचार, डिजिटल होते 
रिश्तों के दौर में प्रेम उस फैशन की तरह 
है जिसकी गारंटी देना आपके पुरानपंथी, 
रुढ़िवादी और सड़ी-गली वैचारिक 
पिछड़ेपन की निशानी मानी 
जाती है।प्रेम का आकर्षक 
बाजारवाद युवाओं 
को आकर्षित 
करने में
पूर्णतः
सफल रहा है। तभी तो किसी भी अनुभूति और भावनाओं से बढ़कर प्रेम का प्रदर्शन ही प्रेम का पैमाना बन गया है।
पर सच तो यह भी है कि
क्रोध,लोभ,मोह अंहकार, ईष्या जैसी भावनाओं की विषाक्तता को मिटाने की एक औषधि है संसार में  वह है प्रेम। प्रेम जो मनुष्य को साधारण से विशेष होने की अनुभूति कराता है-  

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सिर्फ़ प्रेम का जाप करने से सारी परेशानी समाप्त तो होने से रही तो आइये चलिए कविताओं के
संसार के वैचारिकी तट पर
 नदियों की आत्मा निचोड़कर 
उनका दोहन कर उनके अस्तित्व को
खतरे में डालकर का हम स्वार्थी, विवेकहीन मनुष्य 
अपने लिए विनाश बो रहे है इतना भी नहीं समझते।
प्रकृति की मौन व्यथा को शब्द देती एक रचना-

आखिर नदियां खोखली क्यों हो रही हैं? 
अनुत्तरित सवाल 
अखबारों में पढ़कर 
गाड़ीवान 
अगली सुबह फिर 
नदी की छाती पर सवार हो जाता है
उसे कुरेदने...। 

कुछ रूह तलाशती रहती है 
खुशबू अपनी पसंद की
कुछ रूह प्यासी ही रह जाती है....
किसी तन के निर्जीव होते ही
रेस्ट इन पीस के संदेशों के बोझ से दबी 
एक थकी हुई रूह रह जाती है
अपनी ऐश्वर्य संपदा के बावजूद...
मन झकझोरती एक धारदार अभिव्यक्ति

हजारों ख्वाहिशे होती हैं
रूह भी कभी कभी रोती है
उलूक जाना लकड़ियों में है
जलना लकड़ियों में है
खबरें होती हैं
और हमेशा मगर
किसी गोश्त की होती हैं |


समय का शोकगीत गाने से बेहतर है
 तुम भी चिड़िया बनकर
उजले तिनके चुनकर 
 चोंच मे भरो और हमारे संग-संग
 जीवन की उम्मीद का
गीत गुनगुनाओ।
उम्मीद की किरण से सजा
एक रास्ता तुम्हे तकेगा
तुम्हे पता भी न होगा 
अंधेरों के बीच 
कब कैसे 
एक नया चिराग रोशन होगा



सूरज प्रकृति का संजीवनी है जिसकी
प्राणदायिनी किरणें जीवन का स्पंदन है
उजाले की डिबिया को भरकर
पलक भोर की खूब सजाता 
गरमी,सरदी, बसंत या बहार 
साँकल आके खड़काता सूरज
एक मनमोहक सृजन...।

नदिया ने बाहें फैलादीं ,
जल में सूरज एक उगा रे .

लहरों को मुट्ठी में भरने ,
नटखट लहरों बीच चला रे .



और चलते-चलते पढ़िए
प्रेरक और ज्ञानवर्धक लेख

दुनिया के सबसे अनुशासित देश जापान को देखें ! उसके नागरिक चाहे देश में रहें या विदेश में उनका स्वत अनुशासन सभी जगह एक सा रहता है ! इसकी एक झलक देखनी हो तो जापान जाने की जरुरत नहीं है, अपने ही देश में राजस्थान के अलवर जिले के नीमराना क्षेत्र तक ही जाना बहुत है ! यहां बहुत सी जापानी कंपनियों को उत्पादन के लिए जगह आवंटित की गई है ! नीमराना का यह इलाका काफी हरा-भरा है ! अफरात मात्रा में पेड़-पौधे हैं ! पर हर कंपनी का परिसर बिलकुल साफ सुथरा, एक तिनका तक नजर नहीं आता ! जबकि यहां जापानियों की संख्या नगण्य सी ही है, पर उनका अनुशासन, उनका समर्पण, उनकी संस्कृति, उनकी जीवनशैली यहां चप्पे-चप्पे पर नजर आती है !

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आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही है प्रिय विभा दी।
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6 टिप्‍पणियां:

  1. चिंता व अवसाद
    ये दो दुश्मन हैं
    हमेशा याद रखिए
    अच्छी सेहत बहुत बड़ी नेमत है
    सुंदर प्रस्तुति
    आभार..
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह:
    बढ़िया छुटकी
    सकारात्मक उम्दा लिंक्स का चयन

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी स्वयं की अभिव्यक्ति तो बहुत प्रभावशाली है ही श्वेता, किन्तु चयन भी शानदार है.

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी स्वयं, की अभिव्यक्ति तो प्रभावशाली है ही, रचनाओं का चयन भी शानदार है.

    जवाब देंहटाएं
  5. आभार आपका...। माफी चाहता हूँ... समय पर ग्रुप पर आ नहीं पाया....। सभी की रचनाएं और आपका चयन गहरा है ...। आभार।

    जवाब देंहटाएं

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