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शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

1686..कुछ देर के लिये झूठ ही सही लग रहा है वो सुन रहा है

स्नेहिल अभिवादन
सखी श्वेता का मन
गुम है कहीं
जाएगी कहां
सुबह की भूली है
शाम होने दीजिए...आ जाएगी
अगले अंक तक

आज की रचनाओ पर एक नज़र...

इक यादों की गठरी है 
इक सपनों का झोला है, 
जो इन्हें उतार सकेगा 
उसमें ही सुख डोला है !

जो कृत्य हुए अनजाने 
या जिनकी छाप पुरानी, 
कई बार गुजरता अंतर  
उन गलियों से अक्सर ही !


पानी भरे खेतों में
धान रोपते किसान
फैक्ट्रियों में
उत्पाद तैयार करते
मज़दूर


मैं जितनी पास हूँ उतनी दूर भी हूँ,   
मैं रसोई की स्वादमय खुशबू हूँ,
मैं शिशु की दुनिया की जुस्तजू हूँ,
मैं केंद्र हूँ कवि की कल्पनाओं का, 
मैं रंग कैनवास की अल्पनाओं का ,   
मैं इस सोलर सिस्टम की धड़कन हूँ , 
मैं इकमात्र स्त्रीलिंग ग्रह धरती भी हूँ।


था गर्ब मुझे अपने कृतित्व पर    
कभी सोचा न था असफलता हाथ लगेगी
आशाओं  को तार तार करेगी
हार से  दो चार हाथ होंगे |
मनोबल टूट कर  बिखर जाएगा
सुनामी का कहर आएगा


छोड़ के जिन रास्तों को,
यह कदम आगे बढ़े थे।
लौट आना हुआ मुश्किल,
प्राण संकट में पड़े थे।
अब वजह मिलती नहीं है,
ज़िंदगी रह गई अधूरी।
शब्द जालों में उलझती,
बनी नहीं कविता पूरी।।


गोरखपुर,कोटा,लखनऊ या दिल्ली
खेल सियासती रोज उड़ाते खिल्ली
मक़्तल पर महत्वकांक्षा की चढ़ते
दाँव-पेंच के दावानल में जल मरते
चतुर बहेलिये फाँसते मासूम परिंदा है
पर ज़रा भी, हम नहीं शर्मिंदा हैं! 

चलते-चलते
एक अखबार का पुराना अँक
उलूक टाइम्स की एक कतरन
जैसे
आदमी अब
अपने घर
लौट रहा है

चोला
फट रहा है
सारा दिख रहा है

बहुत
हो गई
आतिशबाजी
धुआँ हट रहा है

धुँधला
ही सही
कुछ कुछ कहीं

कहीं से
आसमान
दिख रहा है

...
अब बस
मिलेंगे कहीं न कहीं
सादर





8 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति..
    सादर आभार..

    जवाब देंहटाएं
  2. सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना
    सराहनीय प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  3. शानदार प्रस्तुतीकरण उम्दा लिंक संकलन
    बधाई सभी रचनाकारों को...।

    जवाब देंहटाएं
  4. खूबसूरत प्रस्तुति !सभी लिंक शानदार 👌

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार यशोदा जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. उम्दा संकलन लिंक्स का |
    मेरी ५अचना को स्थान देने के लिए आप को हार्दिक धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं

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